पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ खुद जहाँ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर में माहौल शांत करने के लिए कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राज्य में हिंसा का दौर जारी है. आलम ये है कि उपद्रवी थाना सहित कई जगहों पर हमला और आगजनी कर रहे हैं। इतना ही नहीं। इसके अलावा बीजेपी के नेता के घर को आग के हवाले कर दिया। इससे पहले केंद्रीय मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के घर को भी उपद्रवियों ने आग के हवाले कर दिया था. दरअसल अनुसूचित जनजातीय का दर्जा को लेकर पिछले लगभग डेढ़ महीने से मणिपुर जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। जिसमें 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं.

जिस तरह से मणिपुर धधक रहा है ऐसा लग रहा है मानो यह सब कुछ एक एजेंडे और सोची समझी साजिश के तहत किया जा रहा है. “मणिपुर में 53 फीसदी जनसंख्या वाला मैती हिंदू समुदाय अपने प्रदेश के मात्र आठ प्रतिशत भूभाग में रहने को अभिशप्त है। जबकि कुकी या नागा समुदाय के इंफाल घाटी में बसने पर कोई कानूनी बंदिश नहीं। अब इस सवाल का जवाब तो भारत के भाग्य-विधाता ही दे सकते हैं कि ऐसा क्यों किया गया?

कहने को तो मैती हिंदू मणिपुर में बहुसंख्यक हैं, लेकिन वे सिर्फ इंफाल घाटी में रहने को मजबूर हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन पर उनके ही प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में संपत्ति खरीदने और खेती करने आदि पर कानूनी रोक है। इन पहाड़ी इलाकों में ईसाई बन चुके कुकी और नगा रहते हैं। यानी मैती अपने ही राज्य में वैसी स्थिति से जूझ रहे हैं जैसी स्थिति जम्मू-कश्मीर में एक समय अनुच्छेद 370 के कारण बनी रही।

दरअसल भारत में सिर्फ कश्मीरी हिंदू ही इकलौते नहीं हैं जिन्हें अपनी धार्मिक पहचान की वजह से अपना सब कुछ छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा था। रिपोर्ट के मुताबिक पिछली सदी के अंतिम दशक में ऐसे ही एक पलायन की त्रासदी ईसाई बाहुल्य मिजोरम के रियांग हिंदुओं को भी झेलनी पड़ी थी। रियांग हिंदुओं पर 1997 में टूटी इस त्रासदी को राष्ट्रीय विमर्श में शायद ही कोई जगह मिली हो, क्योंकि उन दिनों पूर्वोत्तर को दिल्ली में दूर और कटा हुआ देखा जाता था.

लेकिन पूर्वोत्तर को अनदेखा करने का यह सिलसिला मोदी सरकार के दौर में टूटा। मोदी सरकार ने 2017 में एक राजनीतिक समझौते के अंतर्गत मिजोरम में हिंदुओं के पुनर्वास का प्रावधान किया। जो कुछ मिजोरम में रियांग हिंदुओं के साथ हुआ कुछ वैसा ही इस समय मणिपुर में मैती समुदाय के साथ हो रहा है। मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा मैती समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग स्वीकार करने के बाद मैती समुदाय निशाने पर आ गया और बड़े पैमाने पर हिंसा जारी है। सेना की तैनाती के बाद भी करीब 35,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए.

मणिपुर में हालात को सामान्य करना होगा, भारत सरकार को मणिपुर में हालात सामान्य करने के लिए कड़े और सख्त कदम उठाने होंगे. नहीं तो मणिपुर को बंगाल बनते देर नहीं लगेगी!

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