ये बदलते हुए समय का बदलता हुआ भारत है | परिवर्तन का एक स्पष्ट नियम है आप चाहते हैं जो ,कि ये होना चाहिए तो उसके लिए सबसे पहले आपको ही वैसा होना चाहिए ,यानि शुरुआत खुद से होनी चाहिए |

बरसों से इस देश की आत्मा पर जोंक कर तरह चिपके कानूनों की समय के अनुसार कसौटीकरण का जो जरूरी काम हाथ में लिये है , चमत्कार देखिये सिर्फ इन निर्णय लेने भर सार्वजनिक सहमति और घोषणा करने के कारण बाकी सब जैसे छटपटा कर बिना आगे पीछे देखे , पहले ही मंजूर नहीं मंजूर नहीं कहने लगते हैं |

उन्हें पता है शासक और उसके समर्थकों का रुख अब बिलकुल स्पष्ट होकर ,प्रखर होकर ,निडर होकर हर मोर्चे ,हर मुसीबत पर अपने देश के साथ डट कर खड़ा होने वाला हो गया है | ये अब चुप नहीं बैठता , और चुपचाप बैठा भी नहीं रहता , अपने ही अंदाज़ में , तर्कों तथ्यों से आईना दिखा देता है |

असम की सरकार ने स्पष्ट निर्णय लेकर पूरे देश को नया सन्देश देने का खूबसूरत प्रयास किया है | सरकारी अनुदान से विशेष वरीयता देते हुए सिर्फ मदरसा छाप शिक्षा देना न्यायोचित नहीं है इसलिए ये सब बंद किये जाते हैं | अन्यथा मंदिरों और गुरुद्वारों में भी ऐसे शैक्षणिक अनुदानों की बात होगी |

नहीं , तो अब इसमें हैरानी क्यों हो ? सरकार अपने खजाने से , वो खजाना जो हमारे दिए गए टैक्स से बना हुआ है ,उसमें से बार बार रकम दी जाए ,किसलिए ,मदरसा की पढ़ाई करने के लिए वैसे पढ़ाते क्या हैं , कौन सा विषय ???

जी वो वाले जो सिर्फ और सिर्फ इनके अपने मानसिक विश्विद्यालय में चलते हैं , न साहित्य से वास्ता न विज्ञान से सरोकार ,न विधि का डर न समाज की बंदिश | इनका अपना एक अलग ही है सिलेबस से लेकर को करिकुलर एक्टिविटीज़ तक सब कुछ |

चलिए वो भी ठीक है , आपको वही ठीक लगता है तो वही सही लेकिन इस करतूत में सरकार को। लोगों को , उनके धन को लगना , कितना ठीक लगता है , अब धीरे धीरे जनता सब तय कर लेगी , लोकतंत्र की ये सबसे बड़ी खूबसूसरती है |

असल में दिक्कत ये है कि कबीलाई सभ्यता के पक्षधर मुग़ल सोच वालों को हमेशा से ही सामाजिक कानूनी बंदिशों से नफरत रही है , वो अनुशासित और सभ्य होने का पर्याय हो जाती हैं न इसलिए | तो जैसे ही कानून में कोई बदलाव हुआ , शिकंजा ज़रा सा भी सख्त हुआ ,पुराने लूप होल को भरने की तैयारी हुई सब बिना सोचे समझे लगे विरोध करने |

मदरसे चलाने के लिए लोगों द्वारा दिए गए टैक्स के खजाने से अनुदान लेकर चलो पढ़ाना भी है मान लिया , लेकिन फिर वन्दे मातरम् से लेकर सूर्य नमस्कार तक में भौत जोर की दर्द उठ जाता है न जो तुम्हारे ,बस वही , वही एक सारी हकीकत बयान कर जाता है |

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