पिछले दिनों एक अजीब सा चलन /प्रवृत्ति देखने में आ रही है वो न सिर्फ लोकतंत्र में केंद्र और राज्य के दायित्व और शक्ति संतुलन पर प्रश्न चिन्ह लगाती हैं बल्कि राज्य सरकारों द्वारा केंद्रीय संस्थाओं विशेषकर नियंत्रण व नियामक संस्थाओं के विरुद्ध अपनाया रुख खुद उन राज्य सरकारों की मंशा को कटघरे में खड़ा कर देता है
सीबीआई , प्रवर्तन निदेशायल , नारकोटिक्स , आय कर और यहाँ तक कि चुनाव आयोग तक पर जिस तरह से रोज़ विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा आरोप लगाए जाते हैं विशेष केंद्र की भाजपा सरकार से विरोध रखने वाली राज्य सरकारों ने जैसे ठान ही रखा है कि कभी इन पर आरोप आक्षेप लगाना है तो कभी , अपने अन्वेषण , जाँच , घोर व्यावसायिकता और निष्पक्षता के लिए दुनिया भर में अपना नाम और साख रखने वाली सीबीआई को अपने राज्य में किसी भी जाँच अन्वेषण करने से प्रतिशेधित कर देती है .
वो भी तब जब राज्य सरकार की पुलिस के नुमाइंदों के सामने बाकायदा वीडियो बना कर वहशी भीड़ दो निरपराध साधुओं की बड़ी बेरहमी से हत्या कर देती है . एक नहीं , दो दो फिल्मी सितारों की सदिंग्ध मौत हो जाती है , मगर जाँच होती है केंद्र सरकार और देश के पक्ष में बोलने वालों की .
जाति ,भाषा ,क्षेत्र , आरक्षण जैसे मुद्दों पर तुच्छ राजनीति के दम पर अवसरवाद और स्वार्थ की राजनीति के बल पर जोड़-तोड़ करके सत्तासीन हुए कुछ लोग अक्सर ही क्षेत्रीय क्षत्रप बनाकर वंशवाद की रवायत को ही निभाते चले जाते हैं . हालात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव के परिवार में कमोबेश 22 लोग जनसेवा के इन्हीं मलाईदार लाभ के पदों पर हैं . निचले स्टार से लेकर ऊपर तक , सबको अपनी हैसियत के हिसाब से बाँटा गया है . उनके समधी लालू यादव ने भी अपनी दर्जन भर संतानों के हाथों राज्य का बहुत कल्याण करवाया ,खैर .
ये राज्य सरकारें ,जब भी इन केन्द्रीयय संस्थाओं के विरोध में इस तरह का मनमाना और पक्षपाती व्यवहार करते हैं , ऐसे निर्णय लेते हैं तो कानून , व्यवस्था , संविधान के ही दोषी बन जाते बल्कि समाज और लोगों की नज़र में संदिग्ध और दोषपूर्ण भी हो जाते हैं .
सरकार अपने आप में बहुत सी व्यवस्थाओं को सुसंगत और सुव्यवस्थित करके एक ऐसी शासन पद्धति का निर्माण करना होता है जो सबके प्रति उत्तरदायी हो और अनिवार्य रूप से कल्याणकारी हो .
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