चीन की कम्युनिस्ट सत्ता सदा से अति महत्वाकांक्षी होने के साथ ही विश्व की महाशक्ति बनने के लिए लालायित रही है। चीन में मानवाधिकारों की बात करना बेमानी है वहाँ की वामपंथी सरकार केवल अपने ही कानून चलाती है और जहां भी वामपंथी सरकारें सत्ता में रहीं या हैं वहाँ भी कमोबेश हालत यही है। वामपंथी सरकारों का एक विस्तृत रक्तरंजित इतिहास है जहां से वो आजतक बाहर नहीं निकल पाई हैं। चीन के नरसंहार की दास्तां 4 जून 1989 ‘थियानमेन चौक’ की घटना शायद ही कोई नहीं जानता हो, जिसमें 10 हजार से ज्यादा छात्रों की समूहिक हत्या चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने कारवाई थी। आज वही चीन फिर से पूरी दुनिया पर कोरोना नामक वायरस की मदद से कहर बरपा रहा है।

वुहान लैब में चीन ने बनाया जैविक हथियार

चीन की दुनिया में शीर्ष पर जाने की ललक ने पूरे विश्व की मानव सभ्यता को ही खतरे में डाल दिया है। दुनिया भर में हो रहे शोध इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि कोरोना वायरस प्राकृतिक नहीं बल्कि लैब में विकसित किया गया है। डेली मेल में प्रकाशित एक खबर के अनुसार एक अध्ययन में यह दावा किया गया है कि चीन की वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में चीनी वैज्ञानिकों ने ही कोरोना के खतरनाक वायरस को तैयार किया और फिर इसके बाद इस जानलेवा वायरस को रिवर्स-इंजीनियरिंग वर्जन से ढकने की कोशिश की, जिससे यह लगे कि कोरोना वायरस चमगादड़ से प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ है। एचआईवी वैक्सीन पर काम कर चुके ब्रिटिश प्रोफेसर एंगस डल्गलिश और नार्वे के वैज्ञानिक डॉ बिर्गर सोरेनसेन ने साथ मिलकर कोरोना वायरस की वैक्सीन पर एक स्टडी की। जब ये दोनों वैक्सीन बनाने के लिए कोरोना के सैंपल्स का अध्ययन कर रहे थे उसी दौरान उन्हें वायरस में एक यूनिक फिंगरप्रिंट मिला, जो किसी भी वायरस में बिना लैब छेड़छाड़ के नहीं मिलता ।

नार्वे के वैज्ञानिक डॉ बिर्गर सोरेनसेन के मुताबिक, कोरोना वायरस के स्पाइक में 4 अमीनो एसिड हैं, जो पॉजिटिव चार्ज रखते हैं। इससे वायरस के स्पाइक मानव कोशिकाओं के नेगेटिव चार्ज वाली हिस्सों को मजबूती से जकड़कर संक्रमण फैलाते हैं। प्राकृतिक रूप से तीन अमीनो एसिड एक स्पाइक पर मिलना बहुत दुर्लभ है। मौजूदा वायरस में यह चार हैं, जो कृत्रिम रूप से बनाए जाने पर ही संभव है। इससे यह बात पूरी तरह से साफ हो जाति है कि कोरोना प्राकृतिक नहीं बल्कि कृत्रिम वायरस है।

अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया कि चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के तीन शोधकर्ता नवंबर 2019 में कोरोना वायरस कि चपेट में आने से बीमार पड़ थे जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। चीन ने कोरोना को लेकर पूरी दुनिया से झूठ बोला जबकि उसे पता था कि कोरोना वायरस उसकी लैब से बाहर आ चुका है।

चीन के वैज्ञानिक वुहान लैब में दुनिया को घुटनों पर लाने के लिए कोरोना वायरस जैसे जैविक हथियार पर काम कर रहे थे जिसका खुलासा दुनिया भर के तमाम शोधों में हो चुका है। चीन के वैज्ञानिकों ने वायरस के मूल स्वरूप के साथ लैब में प्रयोग किए और उसे एक जैविक हथियार के रूप में विकसित किया। लेकिन वायरस के लीक हो जाने कि खबरों के बाद भी चीन इस बात से इंकार करता रहा और अपने ही देश के डाक्टरों और वैज्ञानिकों जिन्होंने भी सच बताने कि कोशिश की या तो उनकी हत्या हो गई या वो गायब करा दिए गए। चीन ने कोरोना वायरस की खबरों को सेंसर कर दिया कि कहीं दुनिया को सच का पता न चल जाए। चीन में मीडिया पूरी तरह से कम्युनिस्ट सरकार के इशारों पर ही काम करती है। यही वजह है कि चीन की खबरों से दुनिया अनजान रहती है।

चीन से जान बचाकर अमेरिका गई एक शोधकर्ता ली ने दावा किया कि कोरोना वायरस जैसे कई अन्य जैविक हथियार चीन विकसित करने में लगा है। जो पूरे मानव अस्तित्व के लिए खतरा है। चीन की वामपंथी सरकार ने डबल्यूएचओ पर भी दबाव बनाकर वायरस के सच को बाहर आने से रोक दिया। दुनिया में ये पहली बार है जब किसी वायरस ने दुनियाभर के लगभग 37 लाख लोगों की जान ले ली और अभी तक आधिकारिक रूप से डबल्यूएचओ ने उसकी उत्पत्ति के बारे में कोई घोषणा नहीं की। ये बातें डबल्यूएचओ के ऊपर भी सवाल खड़े करती हैं।

चीन की वामपंथी सरकार की विचारधारा पूरे विश्व के लिए एक खतरा है। जैविक हथियारों को विकसित करना और उस पर शोध करना पूरी मानव सभ्यता के अस्तित्व को चुनौती देने जैसा है। चीन ने न केवल वायरस के बारे में खबरें बाहर आने से रोका बल्कि दुनिया को तबतक गुमराह किया जबतक कि कोरोना वायरस ने पूरे विश्व में मौत का तांडव नहीं शुरू किया। चीनी वायरस महामारी की चपेट में आने से लाखों बच्चे अनाथ हो गए, लाखों घरों के चिराग बुझ गए लेकिन अभी भी चीन केवल झूठ बोलने और अपनी चीनी वैक्सीन के माध्यम से दुनिया भर से मुनाफा कमाने में जुटा हुआ है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार पूरे विश्व को एक बाजार मानती है और बाजार में संवेदना का कोई स्थान नहीं होता। चीन की स्थिति में सुधार तभी संभव है जब वहाँ लोकतन्त्र की स्थापना हो। इसके लिए पूरे विश्व को चीन के नागरिकों के साथ खड़ा होना चाहिए, जो कम्युनिस्ट शासन से आजादी पाना चाहती है। चीन में लोकतन्त्र की स्थापना ही विश्व को भविष्य में आने वाले चीनी खतरों से बचा सकती है।

लेख

अविनाश त्रिपाठी
स्वतंत्र पत्रकार एवं पीएचडी शोधार्थी
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग

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