किसान आंदोलन की आड़ में देश को नीचा दिखाने , गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय महत्व के दिन ही भारत को अपमानित करने और भाजपा विशेषकर मोदी सरकार द्वारा एक के बाद एक लिए जाए रहे जनहित के फैसलों के विरूद्ध अपनी खीज़ ,अपना गुस्सा , अपनी हताशा और अपनी घोर कुंठा निकालने के लिए जिस दिन ये तय किया गया था कि 26 जनवरी 2021 यानी गणतंत्र दिवस के दिन , राजधानी दिल्ली को सरकार द्वारा पारित किसी कानून से असहमति रखने वाले लोग लाखों की संख्या में नेतृत्वहीन होकर राजधानी में अराजकता फैलाएंगे ,उस समय से लेकर अब तक हर एक व्यक्ति राष्ट्र के प्रति आज किए गए इस अक्षम्य अपराध का दोषी है।

ये शायद ही किसी को संदेह था कि , किसान आंदोलन के नाम पर पिछले कुछ समय से लगातार देश और सरकार विरोधी रुख रखने वाले कुछ वामपंथी विपक्षी और अलगाववादी सोच रखने वाले गुट बना बना कर हर उस मुहीम के साथ जुड़ कर अपने एजेंडे चला रहे हैं जो सरकार के विरोध में होता है। इतना ही नहीं एक से अधिक अवसरों पर यह प्रमाणित हो चुका है कि आज देश की बहुमत जनता का प्रखर राष्ट्रवाद हताश निराश और आपस में ही लड़ते झगड़ते विपक्षी असंतुष्ट लोगों को किस कदर चुभ रहा है कि वे शहर , गाँव ,स्कूल अस्पताल पुलिस सरकार सब कुछ ख़त्म कर देने की शर्त पर भी यही करना चाह रहे हैं।

इस पूरे मार्च का प्रस्ताव रखने वाले से लेकर ,योजना बनाने वाले , स्थान समय तय करने वाले तमाम व्यक्तियों पर गणतंत्र दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिवस पर , कोरोना काल जैसी असाधारण परिस्थतियों में , राजधानी दिल्ली जैसे अति संवेदनशील राज्य क्षेत्र में , लाल किला जैसी राष्ट्रीय महत्व के समारक पर जबरन कब्जा जमा कर तिरंगे के स्थान पर दूसरे झंडों को फहराने जैसे एक एक द्रोहपूर्ण कृत्य के लिए इन सब पर गंभीरतम आपराधिक धाराओं में मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

सबसे बड़ी विडम्बनापूर्ण बात ये है कि , ये सब तब किया गया जब , न सिर्फ केंद्र सरकार दर्जन बार बैठ बैठ कर विमर्श कर चुकी थी और इस क़ानून को फिलहाल स्थगित तक करने की बात शपथपूर्वक कह चुकी थी , मामला स्वयं न्यायपालिका के संज्ञान में था तो ऐसे में लालकिले पर यूं अराजकता का प्रदर्शन आखिर किस तरह से किसी भी आंदोलन को न्यायोचित ठहरा सकता है।

आज जिस तरह का अपराध किया गया है और जिस वीभत्स तरीके से उसका प्रदर्शन किया गया है उसे किसी भी तरह अब इस नए बदलते तेवर वाले भारत में बख्शा नहीं जाना चाहिए , जाएगा भी नहीं।

कोरोना तो ख़त्म हो ही रहा था अब आंदोलन का बोरिया बिस्तर भी समेटा जाने वाला है , भाई लोगों ने लाल किले पर बासमती बो कर ,गणतंत्र दिवस के दिन अपने उसी जाहिलपन का प्रमाण दे दिया जिसका वे पिछले दो महीनों से दिल्ली की सीमा पर दे रहे थे।


अब पुलिस तमाम उन आश्वासन और शपथ पत्रों , और उल्लंघन किए गए एक एक कानून की तमाम धाराओं में मुकदमा दर्ज़ कर कार्रवाई करने की तैयारी में है , तो अगले कुछ दिनों तक यदि फिर से “आजादी ,आजादी “का चित्कार सुनाई देने लगे तो समझियेगा की वार्ता का अगला राउंड अब शुरू हुआ है और कायदे से हुआ है।


यही तो होना था जो हुआ है , किया गया है , इसी के लिए तो ये सब प्रपंच रचा जा रहा रहा ,कहीं से एक शब्द भी संवाद ,विमर्श , समाधान का सुना कहा गया गया , कोई ट्रैक्टर से स्टंट कर रहा था तो कोई तलवार और भाले से लालकिले पर चढ़ाकर करतब दिखा रहा था। ये सब कुछ किसान आंदोलन के नाम पर किया गया है।


इस देश को और यहां उद्दंड हो चुके कुछ उपद्रवियों को अभी बहुत कुछ सिखाया जाना बाकी है , और ये तो सिर्फ शुरुआत भर है। ये सरकार क़ानून पर कानून लेकर तैयार खडी है , इसे बनाया ही इसलिए गया है कि बस अब यही जहर ,यही विष बाहर ला ला कर बिलकुल ख़त्म कर देना है। यही होगा , सिर्फ यही होगा।

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