अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर बने इस अभिलाषा में कई पीढ़ियाँ प्रतीक्षारत रहीं, कई पीढ़ियों ने प्रयास किए, आक्रांताओं के आतंक झेले, कई आक्रमण और अन्याय और न जाने कैसी कैसी विपत्तियों का सामना किया। आज हमारी पीढ़ी को यह गौरव मिल रहा है जो श्री भूमि के शिलान्यास और सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के सबसे बड़े प्रमाण के पुनर्स्थापित होने का साक्षात दर्शन हमें मिलेगा। यह गौरव का क्षण है, इसका आनंद शब्दों में लिख पाना असंभव है। आज हर घर अयोध्या होगी, हर घर में राम नाम कीर्तन गूंजेगा और न जाने किस रूप में साक्षात श्री बजरंगबली पृथ्वी पर विराजमान होंगे।
आज धुर विरोधी को भी राम नाम जपते देख रहा हूँ, किसी जमाने से कांग्रेसी और मंदिर आंदोलन के विरोधी भी आज श्री राम नाम जप रहे हैं। राम देश की आत्मा हैं, हिन्दुओं के जीवन शैली का आधार हैं। आप स्वयं ही सोचिये न कि यह ऐसी जीवन पद्धति है जहाँ राम-राम सामान्य सामाजिक सम्बोधन है, आदर सूचक शब्द है, कोई दुर्घटना हो जाए या किसी को चोट लग जाए तो भी यह कहना कि हे राम क्या हो गया, या राम नाप जपो सब ठीक होगा। ऐसा क्यों है? ऐसा क्यों है कि पाँच सौ साल के बाद सूर्यवंशी क्षत्रियों ने पगड़ी नहीं पहनी? आख़िर राम का देश के साथ यह कैसा जुड़ाव है? आख़िर क्यों पाँच सौ सालों के संघर्ष में लाखों लोगों ने आहुति दी लेकिन सामाजिक प्रयास सतत चलते रहे।
मित्रों, हिंदुत्व कोई व्यक्ति आधारित धर्म नहीं है, यह एक दर्शन है जहाँ परमेश्वर के कई साकार स्वरुप हैं और यह वेदों पुराणों से होता हुआ, श्रीरामचरितमानस, गीता, शिवपुराण इत्यादि ग्रंथों के प्रसंगों से घर घर सुनाए गए क़िस्सों कहानियों से होता हुआ घर घर में फैला है। हर उलझन का उत्तर इन ग्रंथों में है, रामायण विशेष है क्योंकि यहाँ भगवान के मानवीय स्वरूप में मानवीय जीवन की श्रेष्ठ सिद्धांतों का वर्णन है – यहाँ धैर्य है, संतुलन है, ज्ञान है, सत्य है, शक्ति है, सामर्थ्य है, नीति है, प्रेम है सद्भाव है और सत्यमेव जयते का उद्घोष है। पिता की आज्ञा पर समस्त सुखों का त्याग कर देने वाले राम हैं तो उसी बड़े भाई के सम्मान के लिए चौदह वर्षों तक तपस्वी जीवन जीने वाले भरत का आदर्श भी तो है, भाई को ग़लत मार्ग पर जानकर भी उसका साथ किसी भी परिस्थिति में देने वाले कुंभकरन भी हैं, रामायण में सीता का आदर्श है तो उर्मिला का त्याग भी है, सती अनुसुइया का सतीत्व है। रामायण हर मायने में एक सम्पूर्ण आचार संहिता है।
मित्रों, हर व्यक्ति अपनी मानसिक शांति के लिए या यूँ कहिए कि धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए किसी शक्ति का उपासना करता है, यह शक्ति मानव मस्तिष्क में सुप्त है लेकिन इसका आह्वान मात्र मनुष्य को ऊर्जावान बना देता है, यह शक्ति और संतुलन का आह्वान ॐ में निहित है, यह शक्ति मंदिर के घंटों, शंखनाद में निहित है और यही शक्ति “जय श्री राम” या “जय श्री कृष्ण” के उद्घोष में भी है। अन्य पंथों से विपरीत सनातन धर्म विस्तारवाद की नीति पर नहीं चलती बल्कि यह तो वसुधैव कुटुंबकम की नीति का पक्षधर है – यहाँ जीव ब्रम्ह का रूप है, यह एक जीवन शैली है जो गऊ और गंगा को माँ कहती है, पिता/माता को इश्वर का स्थान देती है, बड़े भाई को पितृतुल्य कहती है, जहाँ भोर में उठने पर पृथ्वी माता को धन्यवाद देने का नियम है, जहाँ समस्त वसुंधरा पर मनुष्य, पशु पक्षी, वनस्पति, नदी, पर्वत इत्यादि सभी के जीवन चक्र को बनाये रखने के लिए नियम हों और सामाजिक सेवा भावना का विधान हो, वहाँ इस धर्म आधारित जीवन पद्धति को बनाये रखने की ऊर्जा के स्त्रोत हैं यह रामायण और गीता।
मित्रों, आज के स्वरुप में भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है लेकिन वह नास्तिक नहीं है, और देश की आत्मा सत्य सनातन धर्म ही है।
थोड़ा सा विचार मंथन कीजिए और एक प्रश्न पूछिए कि इस दुनिया में सबसे अधिक शक्तिशाली वस्तु क्या है? मेरे विचार में सिर्फ़ और सिर्फ़ धर्म – सोच कर देखिये आज ईसाईयों के लिए कितने देश हैं? और इस्लामिक देश कितने हैं? धर्म का शासन प्रणाली और विदेश नीति पर क्या असर दीखता है इसके लिए यह समझिये कि अमेरिका और ब्रिटेन दो अलग अलग देश हैं लेकिन भयंकर विरोधों में भी यह हमेशा एक साथ रहे क्यों? क्योंकि अमेरिका और ब्रिटेन को जोड़ने वाला ईसा एक है। इन्हें उस बारे में कोई संदेह नहीं है सो यह एक हैं। इसीलिए अलग अलग भाषाओं और देशों में बंटा हुआ यूरोप भी एकजुट दिखता है। परस्पर विरोध होते हैं लेकिन उनकी धार्मिक आस्था एक होने के कारण ने उनकी हर उलझन को सुलझा दिया है और अब वह शांति पूर्वक एक साथ अपने विकास के लिए प्रगतिशील हैं। हर धर्म और पंथ में अपनी पुण्य पवित्र भूमि के प्रति प्रेम रहना स्वाभाविक है – उदाहरण के लिए: किसी मुसलमान का प्रेम मक्का/मदीना के लिए या फिर येरूसलम के प्रति किसी इज़राइली का प्रेम? ईसा के लिए किसी भी ईसाई का प्रेम? अब अगर मातृभूमि और पवित्र भूमि के बीच चुनना हो तो कोई किसे चुनेगा? उदाहरण के लिए यह समझिये कि अगर किसी मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति को कहीं भी किसी भी देश में उनके मोहम्मद या किसी और प्रतीक के अपमान की खबर दिखे तो वह चुप नहीं बैठेगा। ठीक ऐसा ही ईसाइयों और बौद्धों के लिए भी होगा लेकिन क्या ऐसा हिंदुओं के लिए है? शायद नहीं… यह समझने की बात है लेकिन जिस प्रकार ईसाइयों के लिए ईसा है, बौद्धों के लिए बुद्ध हैं, मुस्लिमों के लिए मक्का और मदीना है ठीक उसी प्रकार हिंदुओं के लिए श्रीराम और अयोध्या हैं और श्रीकृष्ण और वृन्दावन हैं या भोलेनाथ और उनकी काशी है। हिंदुओं की पवित्र भूमि और मातृभूमि भारत ही है और यही हिंदुत्व इस देश का असली राष्ट्रवाद भी है।
आज राम मंदिर बनने की आशा ने हिन्दू जनमानस को एक सूत्र में पिरो दिया है, लोगों ने अपने अपने सामर्थ्य से अपनी शक्ति लगा इसके निर्माण के लिए सहयोग किया है, यह आनंद और उल्लास का समय है लेकिन सामाजिक तौर पर बड़े संयम के प्रदर्शन का भी समय है। सैंकड़ों वर्षों तक हिन्दू अपने धर्म और धर्म की अभिव्यक्ति को लेकर हीन भावना से ग्रसित रहा है, इसका कारण है, सैकड़ों वर्षो का उत्पीड़न और अत्याचार और उसमें भी आंतरिक और पारस्परिक मतभेदों में हिन्दुओं का असंगठित होना और राजनैतिक तौर पर अप्रसांगिक होना। जी बहुसंख्यक होने के बावजूद भी हिन्दू इस देश में राजनैतिक तौर पर इतने टुकड़ों में बंटा हुआ था कि उसकी कोई पहुँच सुनवाई थी ही नहीं। लेकिन आज हिन्दुओं ने अपनी प्रासंगिकता को समझ लिया है, और उसे अपनी विरासत पर गर्व करने का समय है, अब देश में धर्म-निरपेक्षता की परिभाषा को ठीक करने का समय भी है। असली धर्मनिरपेक्षता समाज को आस्तिक बनाती है, धर्म और आध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करती है, देश के हर वर्ग में शांति और सद्भाव का भाव रखते हुए वसुधैव कुटुम्बकम के मार्ग पर चलना सिखाती है।
मेरा विश्वास है कि भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण भारत की सामाजिक व्यवस्था के लिए एक मील का पत्थर सिद्ध होगी, यह समाज की चेतना, विश्वास और मानव मूल्यों में मर्यादा के सर्वोच्च स्थान का निर्माण करेगी। यह गौरव का क्षण है, यह अमूल्य है, इस क्षण का आनंद संयम के साथ लीजिये और श्री राम के आदर्शों का जीवन में आत्मसात कीजिये ताकि अगली पीढ़ी को यह नैतिक शिक्षा मिल सके।
। । जय श्री सीता राम। ।
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