पिछले मात्र कुछ ही वर्षों में इतने अच्छे दिन आ जाएंगे किसने सोचा था। अब तक जो विपक्ष चुनाव में बार बार हारने का ठीकरा बेचारे इवीएम के सर पर फोड़ता था इस बार तो डिजिटल चुनाव प्रचार का नाम सुन कर चित्त हो कर उलटा पड़ गया है।

और सबसे बड़ा कमाल तो ये देखिये की वर्तमान में दुनिया के दो सबसे बेहतरीन प्रशासक मोदी /योगी को विपक्ष चाय वाला /गाय वाला कहकर ताना मारने वाला विपक्ष और उनके चश्मोचराग -सब के सब एक से एक फॉरेन रिटर्न हैं और बावजूद इसके वे आधुनिक तकनीक के नाम पर थर थर काँप रहे हैं।

मगर ये क्या – जो लोग लैपटॉप बाँट बाँट कर प्रदेश में समाजवाद की तकनीकी क्रान्ति लाने का दम भर रहे थे वो ही अब कह रहे हैं कि -न बाबा न -डिजिटल वाला तो हमसे न हो पाएगा।  दूसरे होनहार बिरवान हैं कोट पर जनेऊ पहनने और छुट्टियों में सिंगापुर जाने के बीच चीन और  पाकिस्तान को खुश करने वाले ट्वीट करते कांग्रेस युवराज उर्फ़ ट्रोल प्रिंस।

असल में डिजिटल दुनिया में अजा आम जनता ुर जनप्रनिधियों के बीच द्विपक्षीय संवाद होने तक की असीमित स्वतंत्रता हासिल होने के कारण अधिक पारदर्शी और अधिक ताकतवर मंच हो गया है।  दूसीर बात ये भी है की यहाँ कुछ भी छुपाया/दबाया/और भुलाया नहीं जा सकता।

आधे एक घंटे की टीवी डिबेट हो या , पूरे दिन चलने वाला कॉन्क्लेव हो , पांच दस मिनट का वीडियो क्लिप हो या सिर्फ 140 शब्दों तक सीमित रहने वाला ट्विटर।  सभी जगह पर विपक्ष की बोलने , कहने , लिखने का खालिस बौड़मपन बाहर निकलकर छलक जाता है। 

 

आज भी कांग्रेस ने लिखा है -कांग्रेस भारत की पहचान है।  और उस पर पूरा भारत उस कुँए में ढेला मार मार के इस कुँए के कांग्रेसी मेंढक की खिंचाई कर रहा है।

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