कैसे आंदोलनकारी हो रे खालिस्तानी खरगोशों :जेल जाने से बचने के लिए चूहे के बिल में छिप गए?

बचपन से जैसे एक झूठ को बार बार रटाया जाता रहा है कि “दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल ” (वैसे जिनकी शान में ये गाया बघारा जाता रहा है उसको तो आज तक खड्ग ढाल तलवार और बन्दूक तो दूर कभी एक चमाट और लट्ठ तक का सामना नहीं करना पड़ा ) , तो वैसे ही किसान आंदोलन के नाम पर उपद्रवियों का उत्पात मचाने वालों के लिए भी किया गाया जा रहा है।
अरे भाई किसान जी , खेत छोड़कर अपने ट्रैक्टर पर तरह तरह के राजनीतिक , खालिस्तानी , वामपंथी पोस्टरों , नारों चेहरों को चिपका कर दिल्ली की सड़कों पर सर्कस करते फिर ही रहे थे , एक दिन अचानक लालकिले पर चढ़कर तिरंगे और राष्ट्र का अपमान करने में अपनी बहादुरी दिखाई , ट्रैक्टर स्टंट किए , पुलिस, सेना, रक्षा के जवानों को मार पीट कर वीरता का प्रदर्शन किया और सेल्फी सेल्फी ,”लालकिला फतह ” भी खेल लिया।
लेकिन हाय रे तुम्हारी बहादुरी , और हाय रे तुम्हारी हिम्मत। तुम तो सबके के सब अपने अपने बिलों में जाकर छुप गए। पहले कहते रहे कि हम किसान हैं खालिस्तानी नहीं -26 जनवरी को रोने लगे , वो खालिस्तानी थे किसान नहीं। बस इसी बेपेंदे के लोटे की तरह सड़कों पर लोटते फिर रहे हो ??
पुलिस और जांच एजेंसियों को , तुम्हें तलाश तलाश कर , छापा मार कर , खदेड़ कर तुम्हें पकड़ना पड़ रहा है। सैकड़ों चूहे तो पकड़ में आ गए हैं और अब “कागज़ दिखाने ” की तैयारी में हैं। मगर अब भी बहुत से सेल्फी और स्टंट बहादुर दड़बे के कबूतरों की तरह घुसे छिपे बैठे हैं ? क्यों भाई?
अरे हिम्मत दिखाओ , कम से कम इतनी तो जरुर ही कि कह सको -हाँ तुमने ही किया था वो सब और इसके लिए कानून के सामने , पुलिस के पास और जेल जाने से ज़रा भी हिचक झिझक नहीं है तुम्हें। बोलो कह सकोगे ?? कर सकोगे ये सब ?
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