मैं भी किसान के साथ हूँ। बचपन में दादाजी के साथ खेत जाता था । पूरे 5 बीघा खेत था, जो पिताजी के हिस्से आया 5/3 बीघा । खेत का क्षेत्रफल आस-पास अधिकांश के इतना ही था या इससे भी कम। इसीलिए यहा की महिलायें “बड़े खेतों” वालों के यहा मजदूरी भी किया करती थी। हम भी “सीमान्त किसान” परिवार हुए। पर इससे गुजारा सम्भव नही था। तब कोई सुध लेने आया नही (हालांकि सूद लेने वाला कोई तारिख नही चुकता था), इसलिये छोटे से खेत वीरान हुए और हम भूतपूर्व किसान हुए । इसलिये किसी ने बड़े शहर की तरफ पलायन किया तो किसी ने अन्य छोटे काम शुरु कर किस्मत आजमाई ।

सुना है अब तो केंद्र सरकार 6000 रूपये साल के खाते मे भेजने लगी है । फसल का बीमा भी हुआ है । केंद्र सरकार द्वारा लाये गये 3 कृषि कानूनों से फसल को निजी क्षेत्र में बेचने की स्वतन्त्रता मिली हैं। हालांकि इस पर MSP की गारंटी, APMC मंडियों के अस्तित्व, राज्य सरकारों के टेक्स और बिचौलियों की दलाली खत्म होने को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई थी। जिसको लेकर विरोध हुआ। लेकिन पंजाब सरकार ने 20 अक्टूबर को विधानसभा में 4 बिल लाकर MSP से कम मूल्य पर फसल खरीदने पर न्यूनतम 3 वर्ष की जेल और जुर्माने का प्रावधान किया गया।

अब पंजाब के किसानों का आन्दोलित होकर दिल्ली कुच करना अचम्बित करता है, और पंजाब सरकार की भुमिका भी ! हम उनके साथ है, यदि किसानों के हितों की बात है। पर उनकी मांगे क्या हैं? MSP को लेकर तो पंजाब विधानसभा कानून बना ही चूकी! अब जो रह गया वो बिचौलियों की दलाली हैं। तो क्या बिचौलियें होने चाहिये? क्या यही इस आन्दोलन की जड़ है या अन्य कुछ और !

आन्दोलन में खालिस्तान समर्थन के नारे लगने के बाद कनाडा में खालिस्तानी जगमीत सिंह के भाई गुररतन सिंह ने ओन्टारियो विधानसभा में भारत के कृषि कानूनों की आलोचना की। खालिस्तान समर्थक अन्ग्रेज क्रिकेटर मोंटी पानेसर की प्रतिक्रिया असहज करती हैं। 2 महिने पहले जो किसानों के दुग्ध उत्पादक सहकारी संगठन अमूल का बहिष्कार कर रहे थे, स्वरा भास्कर जैसे लोग यकायक किसान हितैषी कैसे हो गये! किसानों की फसलों में सिंचाई के लिए पानी का स्त्रोत ‘सरदार सरोवर बान्ध’ के निर्माण का विरोध करने वाली मेधा पाटकर कब से किसान हो गई! AISA, PFI अन्य वामपंथी संगठन इसे एक नया रुप देने लगे हैं। साम्प्रदायिक छवि वाले नेता अमानुतुल्ला की मौजूदगी में घोर आपतिजनक भाषण हो रहे हैं। यहा तक PM को ठोकने की बात तक कह दी गई एक अन्य भाषण में! और जब केंद्र सरकार ने बातचीत के लिये बुलाया तो आमंत्रण अस्वीकार कर दिया ! तो क्या आन्दोलन के आयोजकों के पास कुछ अन्य समाधान हैं? या उनकी मंशा कुछ समाधान की है ही नहीं! दिल्ली ब्लॉक करने की धमकी से तो सिर्फ यही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि शाहीन बाग सी एक और अराजकता फैलाने की योजना हैं।


एक पक्ष तो यह है ही कि आन्दोलन में मोदी विरोध की राजनीति हो रही है, पर दुसरा घातक पक्ष यह है कि खालिस्तानी इसे भारत विरोध के अवसर के रुप में ले रहे हैं। इन स्थितियों में तो गैर राजनैतिक किसानों को नेतृत्व हाथ में ले लेेना चाहिये। खालिस्तान और अन्य अवसरवादियों से पृथक हो जाने का स्पष्ठ संदेश देना चाहिए। यदि यह संभव ना हो तो उन्हे फिर इस आन्दोलन से अलग हो जाना चाहिए! क्योकिं प्रत्येक नागरिक किसान के प्रति एक सम्मानजनक आस्था रखता हैं। ये वो देश है जो जय जवान जय किसान का नारा लगाकर गौरवान्वित महसूस करता हैं। यहाँ किसान दिल्ली क्या, पुरा भारत घूम सकता हैं। अपनी बात उँची आवाज में रख सकता हैं। पर इनके आन्दोलन मे घुस जाने वाले “अवैध” लोग कौन हैं! आन्दोलन में राजनैतिक एजेंड़े पर चलने वाले संगठनों का क्या काम! ट्रेक्टर जलाने वाले किसान तो नहीं हो सकतें ! किसानों में जो राजनैतिक हित और राष्ट्र विरोध का अवसर साधने का मौका तलाशे या यू कहे उन्हें Use करने का प्रयास करे, उनका पर्दाफाश स्वयं किसानों को करना चाहिए !कोई भी कोई भी नागरिक किसान आन्दोलन को खालिस्तानी, वामपंथी और इस्लामिक कट्टरपंथ के कॉकटेल के रुप में पसंद नहीं करेगा! मुुुझ जैसा किसान परिवार का सदस्य किसानों की मांगों का समर्थन कर सकता है, पर राष्ट्र द्रोह युक्त अराजकता का नहीं !

भारत की जान – जय जवान जय किसान

AISA Activists with Farmers in protest!

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