“कौमी झंडा फहराए फर फर,
दुश्मन का सीना कांपे थर थर।
आया विजय का ज़माना,
चलो शेर जवानों।।”
इन क्रांतिकारी पंक्तियों को गाते हुए जब एक 8 वर्ष के बच्चे से पूछा जाता कि ऐसी पंक्तियां क्यों गाते हो ?
तो उस बच्चे का जवाब होता, “मैं भी वीर भगतसिंह की तरह देश की खातिर हँसते हँसते अपना जीवन समर्पित करना चाहता हूँ”
मात्र 8 वर्ष की आयु में ही ऐसे विचार रखने वाले और भगतसिंह को अपना आदर्श मनाने वाले वो महान क्रांतिकारी थे – हेमू कालाणी।
Forgotten Indian Freedom Fighters लेख श्रृंखला की तेईसवीं कड़ी में आज हम पढ़ेंगे उन्हीं वीर क्रांतिकारी के बारे में जिन्हें “सिंध का भगतसिंह” कहा जाता है।

हेमू कालाणी का जन्म 23 मार्च 1923 (भगतसिंह को फांसी दिए जाने के ठीक 8 वर्ष पूर्व) को तत्कालीन सिंध प्रांत के सख्खर जिले में हुआ था। परिवार में शुरू से ही देशभक्ति का माहौल देखते हुए हेमू के मन में भी अंग्रेजों से देश को आज़ाद कराने की ज्वाला धधक रही थी। हेमू को बचपन में भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों के किस्से कहानियां सुनाए जाते थे। इससे वे बहुत प्रभावित हुए और उनमें बचपन से ही देश पर कुर्बान होने की भावना उत्पंन हो चुकी थी। इसी कारण कम उम्र में ही हेमू अपने चाचा डॉ. मंघाराम द्वारा गठित स्वराज्य सेना के सदस्य बन गए थे।
हेमू गांव की गलियों में अपने दोस्तों के साथ तिरंगा झंडा लिए देश प्रेम का गीत गाते और भारत माता की जय के नारे के साथ लोगों में जोश भरने का कार्य करते और अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी दल बनाकर उनका नेतृत्व करते।

स्वराज्य सेना में अपनी सक्रियता के कारण हेमू जल्द ही संगठन के रीढ़ की हड्डी बनकर उभरे। हेमू अपने साथियों के साथ विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने के लिए लोगों में चेतना जगाने का कार्य करते, वे विदेशी कपड़ो को इकट्ठा करने के बाद उसे जला देते और अंग्रेजों के अत्याचारों के विरुद्ध नागरिकों को जागरूक करते।
इस निडर आज़ादी के सिपाही का बस एक ही सपना था कि देश की खातिर फांसी के फंदे पर झूल जाएँ। इसके लिए वे अपने गले में फांसी का फंदा भी डाले रखते थे और शहीदों को याद करते थे। वे कहते थे कि ऐसा करने पर उनके अंदर देश के लिए मर मिटने का जज्बा पैदा होता है।
हेमू को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों, वाहनों को जलाने व क्रांतिकारी जुलूसों वाले क्रांतिकारी के तौर पर पहचाना जाने लगा था।

वर्ष 1942 में जब गांधी के द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया तो हेमू कालाणी भी अपने साथियों के साथ इस आंदोलन में कूद पड़े।
अक्टूबर 1942 को हेमू कालाणी को एक गुप्त सूचना मिली कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए हथियारों और सिपाहियों से भरी हुई एक विशेष ट्रेन रोहिड़ा शहर जा रही है तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर पटरी की फिश प्लेट खोलकर रेल को पटरी से उतारने का प्लान बनाया।
हेमू अपने दो साथियों नन्द और किशन के साथ पटरियों पर लगी फिश प्लेट को खोलने में लग गए। इस दौरान गश्ती सिपाहियों की नज़र हेमू और उनके साथियों पर पड़ गई। हेमू ने अपने साथियों को तो इन सिपाहियों से बचा लिया लेकिन खुद पकड़े गए।

हेमू पर सख्खर कोर्ट में मुकदमा चला और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। ब्रिटिश पुलिस ने हेमू कालाणी को इस षड्यंत्र में शामिल अपने साथियों का नाम उगलवाने के लिए कठोर यातनाएं दीं, पर 19 वर्षीय हेमू से कुछ न उगलवा सके।
अंततः ब्रिटिश अधिकारी कर्नल रिचर्डसन ने अनुमोदन हेतु आये सख्खर कोर्ट के फैसले को फांसी की सजा में बदल दिया।

उस समय के सिंध प्रान्त के गणमान्य लोगों ने एक याचिका दायर की और वायसराय से हेमू को फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि यदि हेमू अपने साथियों का नाम और पता बताएं तो फांसी की सजा माफ हो सकती है पर वीर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी।
कहा जाता है कि सिंध के नेताओं ने गवर्नर जनरल से मिलकर हेमू के वजन के बराबर सोना देने का प्रलोभन भी दिया पर सब व्यर्थ रहा।

21 जनवरी 1943 को मात्र 19 वर्ष की आयु में भारत माँ के इस महान सपूत को फांसी की सजा दे दी गई। फाँसी वाले दिन हेमू की आँखों में एक चमक दिख रही थी और ऐसा होता भी क्यूँ नही, उनके बचपन का जो यह सपना था कि अपने आदर्श शहीद भगत सिंह की तरह वो भी देश की आज़ादी में ख़ुशी-ख़ुशी फांसी के फंदे पर झूल जाएं।
जब फांसी से पहले हेमू से आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ हेमू ने अपना जीवन इस राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया।

देश को आज़ादी सिर्फ चरखे से नही मिली थी, अनेक देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी तब जाकर आज़ादी का महान स्वप्न पूर्ण हो पाया था।
हेमू कालाणी जैसे भारत माँ के महान सपूत, वीर क्रांतिकारी एवं राष्ट्रभक्त नायक को हमारा शत् शत् नमन।
जय हिंद
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भारत माँ के महान सपूत हेमू कालाणी को शत् शत् नमन

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