देश के लिए अपने प्राणों को समर्पित करने वालों की वो लिस्ट बहुत लंबी है जो वामपंथी इतिहासकारों की सोच के कारण अभी तक गुमनामी में रही।
उसी लिस्ट में से एक नाम है – अनंत लक्ष्मण कन्हेरे।
Forgotten Indian Freedom Fighters लेख की बारहवीं कड़ी में आज हम उन्हीं लक्ष्मण कन्हेरे के बारे में पढ़ेंगे जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की अल्पायु में अपना जीवन मातृभूमि के लिए न्यौछावर कर दिया।

लक्ष्मण कन्हेरे का जन्म वर्ष 1891 में इंदौर में हुआ था।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में ही हुई और बाद में उच्च शिक्षा हेतु वो औरंगाबाद चले गए।
उस समय भारत की राजनीति में दो विचारधाराएँ स्पष्ट रूप से उभर रही थी।
एक ओर कांग्रेस अपने प्रस्तावों के द्वारा भारतवासियों के लिए अधिक से अधिक अधिकारों की मांग कर रही थी और अंग्रेज़ सरकार इन मांगों की उपेक्षा करती जाती थी।
दूसरी ओर क्रान्तिकारी विचारों के युवक थे, जो मानते थे कि सशस्त्र विद्रोह के ज़रिये ही अंग्रेज़ों की सत्ता उखाड़ी जा सकती है।

महाराष्ट्र में भी क्रांतिकारी युवाओं का एक संगठन “अभिनव भारत” बनाया गया। इस संगठन के प्रमुख क्रांतिकारी वीर विनायक सावरकर एवं गणेश सावरकर जी थे, अनंत लक्ष्मण कन्हेरे भी इसी क्रांतिकारी संगठन के सदस्य बन गए। इस संगठन के माध्यम से महाराष्ट्र में भी युवाओं को सशस्त्र क्रांति के लिए तैयार किया जा रहा था।

नासिक षड्यंत्र केस के तीन नायक

वर्ष 1909 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सामग्री प्रकाशित करने के अभियोग में जब श्री गणेश सावरकर को आजन्म कारावास की सज़ा हो गई तो क्रान्तिकारी और भी उत्तेजित हो उठे। उन्होंने नासिक के ज़िला अधिकारी जैक्सन, जो कि हमेशा क्रांतिकारियों का विरोधी था, की हत्या करके इसका बदला लेने का निश्चय कर लिया।
लक्ष्मण कन्हेरे को इस कार्य की जिम्मेदारी दी गई।
अनंत लक्ष्मण ने अपने अन्य दो साथियों धोन्डो कृष्ण कर्वे और विनायक देशपांडे के साथ एक योजना बनाई।
अनंत की योजनानुसार, “मैं जैक्सन को मारूंगा और अपने साथ जहर ले जाऊंगा ताकि मुझे जिंदा गिरफ्तार ना किया जा सके। जिंदा पकड़ा नहीं जाऊंगा तो किसी का भी नाम सामने नहीं आएगा, लेकिन अगर वो किसी वजह से कामयाब नहीं हो पाया तो दूसरा हमला विनायक करेगा और मान लीजिए कि विनायक को भी कामयाबी हाथ नहीं लगती तो कृष्ण के पास भी पिस्तौल होगी, जैक्सन के तीन तीन हमले में बचने की तो कोई सम्भावना ही नहीं थी”
इन तीनों युवा क्रांतिकारियों ने बचने या भागने पर फोकस नही किया, इनका मुख्य उद्देश्य था जैक्सन की हत्या।

पिस्तौल का प्रबंध हुआ और 21 दिसम्बर 1909 को जब जैक्सन एक मराठी नाटक देखने के लिए आ रहा था, तभी कन्हेरे ने नाट्य-गृह के द्वार पर ही उसे अपनी गोली का निशाना बनाकर ढ़ेर कर दिया।
एक भारतीय और एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी ने तुरन्त अनंत पर हमला बोल दिया, अंनत को जहर खाने का मौका भी नही मिला।
इस घटना के बाद उन तीनों क्रांतिकारियों सहित कुल 38 व्यक्तियों को गिरफ़्तार किया गया, यहाँ तक कि लंदन में रह रहे वीर सावरकर को मास्टर ब्रेन के तौर पर आरोपी मानकर गिरफ्तार किया गया।

मुंबई कोर्ट में उन सभी पर केस चलाया गया और 38 में से केवल 8 को छोड़ा गया, बाकी सबको सजा हुई।
वीर सावरकर की सारी सम्पत्ति जब्त कर काला पानी की सजा दी गई और उन तीनों युवा क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा सुनाई गई।

तारीख 19 अप्रैल 1910 को माँ भारती के तीनों सपूतों को फाँसी पर लटका दिया।
उस समय लक्ष्मण कन्हेरे मात्र 19 वर्ष के थे, इतनी छोटी-सी आयु में ही शहीद होकर भारत माँ के इस सपूत ने भारतीय इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया।
वीर क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कन्हेरे को शत् शत् नमन।
जय हिंद
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