जर्मनी में फिर से हिटलर की तरह तानाशाही सरकार ।भारतीय मां बाप को नहीं दिया जा रहा है अपने 17 महीने की बच्ची से मिलने के लिए, कहा गया है उन्हें “फिट टू पेरेंट्स “लाने के लिए !
भावेश जैन और धारा की शादी 2018 में हुई और वह जर्मनी में नौकरी के लिए चले गए, जहां एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में वह काम करते थे ।जर्मनी का बर्लिन उन्हें खूब भा रहा था ,2021 में उनके घर में खुशियों की बहार आ गई जब उनके आंगन में एक बिटिया का जन्म हुआ ।इस खुशी का पल देखने के लिए बच्ची के नाना नानी 9 महीने बाद जर्मनी आ जाते हैं, जहां 1 दिन किसी कारण से बच्ची के गुप्त अंगों से खून निकलने लगता है जिसे लेकर कि वह डॉक्टर के पास जाते हैं, जहां डॉक्टरों ने एक सामान्य घटना बताकर उपचार करके उन्हें वापस भेज देता है ,परंतु दूसरे दिन खून निकलता है अपनी बच्ची को लेकर डॉक्टर के पास जाती है जहां से डॉक्टर बाल यौन शोषण का मामला समझकर चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी को फोन करके सूचना दे देता है ,जो एकाएक वहां पहुंच करके उस नन्ही सी जान 17 महीने की बच्ची को जो अभी भी अपनी मां के दूध पर जिंदा रह रही थी ,उसे उसके मां-बाप से छीन कर के अपने कब्जे में ले जाती है और उसके बाद उन्हें मां बाप से मिलने भी नहीं दिया जाता है। वह इससे बाल यौन शोषण का मामला बताते हैं और इसके लिए जांच करने की बात कहते हैं, जिसके बाद उसके नाना नानी उसके मां-बाप कई बार सफाई देते हैं ।भारतीय दूतावास में शिकायत करते हैं परंतु उन्हें कोई कोई मदद नहीं मिल पाती।
फिर जांच में पाया जाता है यह बाल यौन शोषण की घटना नहीं है परंतु चाइल्ड प्रोटेक्शन की एजेंसी उन्हें पहले “फिट टू पेरेंट्स” का सर्टिफिकेट लाने के लिए बोलती है, उसके बाद ही वह उससे उन्हें मिलने के लिए समय देगी इसके बाद भावेश और धारा सर्टिफिकेट लाने के लिए दो बार कोर्ट का सेसन भी अटेंड करते हैं परंतु सर्टिफिकेट नहीं मिल पाता ।इसके बाद वह कोर्ट में केस कर देते हैं। बच्चे की मां धारा का रो रो कर बुरा हाहै, वह कहती है कि जर्मनी में यह कौन सा कानून है ? क्या यह हिटलर की तरह बर्ताव कर रहे हैं कि एक 17 महीने की बच्ची को उसके मां-बाप से मिलने नहीं दिया जा रहा है ?एक मां को अपने बच्चे को दूध पिलाने नहीं दिया जा रहा है ?एक मां बाप को अपने बच्चे को देखने नहीं दिया जा रहा है?
जर्मन अथॉरिटी को पता है कि बच्चे जैन धर्म की है इसके बावजूद उसे मांसाहार दिया जा रहा है खाने को, साथी साथ उसे पाश्चात्य संस्कृति में पालन पोषण किया जा रहा है जिसको भी ले कर के उसके मां-बाप और नाना-नानी में रोष है जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाल अधिकार मामले में यह लिखा है किसी भी बच्चे को उसके धर्म की संस्कृति उसकी भाषा और उसकी सभ्यता के अनुसार ही उसे बढ़ाया जाएगा ,उसका पालन किया जाएगा भले ही दुनिया के किसी भी देश में इसके बावजूद पूरी तरह से रखा जा रहा है।
वैसे भी जर्मनी का बच्चा छीनने का इतिहास पुराना है चाहे द्वितीय विश्व युद्ध के समय में पॉलिश बच्चों को उनके मां-बाप से छीन कर के युद्ध कार्यों में लगाना हो या फिर यहूदियों का बहिष्कार के कारण लगभग 200000 यहूदी बच्चों को जिंदा जलाकर मार देना इस मामले में जर्मनी हमेशा आगे रहे !हमेशा मां-बाप से बच्चों को छीन ते हैं उनके साथ अन्याय करते हैं उनका शोषण करते हैं।
जब भारतीय दूतावास ने भी अपील की और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी जर्मनी सरकार से बच्ची को रिहा करने की अपील की इसके बावजूद भी जब जर्मन सरकार इस मामले में नहीं मान रही है, यह पूरी तरह से माना जाए कि जर्मनी की सरकार अब बिल्कुल हिटलर की तरह व्यवहार कर रही है । वैसे भी करे क्यों ना हो भ्रष्टाचार के मामले में जर्मनी भी कम अव्वल नहीं है, यहां चाइल्ड प्रोटेक्शन एक्ट के नाम पर बच्चों को मां-बाप से छीन लिया जाता है, उनके मां-बाप को बोला जाता है कि वह अपने बच्चे का लालन पालन नहीं कर सकते और उसके बाद वह बच्चों को अपनी संस्था में रखते हैं जहां सरकार से वह मोटी रकम वसूलते हैं और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं इस कार्य में कोई सरकारी अधिकारी पुलिस के लोग और प्रोटेक्शन कमेटी के लोग शामिल होते हैं।
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