“घंटा का रिपोर्टर” की दर्दनाक कहानी – एक तरफ गरीबी, भुखमरी और एक तरफ जिहाद की जिद्द

घन्टा का रिपोर्टर रिफात मियाँ चिल्ला रहा था – आओ साथियों अमूल बटर खाना बंद कर दें। आज से कोई अमूल बटर नहीं खायेगा। पीछे से भूखा बच्चा चिल्ला उठा – क्या पापा, बटर खाना बंद तो तब करेंगे जब कभी खाया होगा। दो साल हो गए घर में बटर आये।

रिफात मियाँ की बीबी का दर्द छलक उठा – अब तो आपको AAP से भीख भी कम मिलती हैं। दाने दाने को मोहताज हैं, बच्चें बटर तो छोड़िए, मटर खाये सालों हो गए। पिछले मंगलवार को अपना बेटा छोटू हनुमान मंदिर के बाहर खड़े होकर बूंदी मांगकर खा रहा था और रिफात मियाँ चले अमूल बंद करवाने।

घन्टा का रिपोर्टर चुप था, एक तरफ फटे कपड़ो में खड़ी बीबी का दर्द और दूसरी तरफ ट्विटर पर आ रहे लगातार नोटिफिकेशन। रिफात भाई हम आपके साथ हैं। दिखा दो अब हम अमूल नहीं खरीदेंगे। आप आगे बढ़ो, शुरुआत करो भाईजान।

अचानक रिफात मियाँ की आँखों में एक चमक आई, वाह क्या आईडिया है। घंटा का रिपोर्टर ने गूगल से ब्रिटानिया बटर की फ़ोटो डाउनलोड करी , सस्ते इंटरनेट के लिए मोदी को थैंक यू बोला और तुरंत ट्वीट कर दिया – As promised, we’ve moved to a new brand of butter! No hard feelings @Amul_Coop. We all are free to make our choices. To me, I can never support a brand or individual who support hate.

घंटा का रिपोर्टर खुश था, भूखे बच्चों की चीख, ट्विटर के नोटिफिकेशन के लगातार आती बीप में कुछ देर के लिए दब चुकी थी।

(व्यंग्य)

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