भारत देश में कांग्रेस के बैनर तले कलंक का निजाम हमेशा से काम करता रहा है यह वही मशीनरी है जो बिहार दंगे बाबरी मस्जिद और 2002 दंगों पर गला फाड़ फाड़ कर विधवा विलाप करती है मगर उन कत्लेआम की बात नहीं करती जो इनके खिलाफ जाते हैं। ये लोग 2002 गुजरात दंगों पर खूब राजनीति खेल रहे हैं, लेकिन मोहनदास करमचंद गाँधी हत्या के बाद पुणे में चितपावन ब्राह्मणों के हुए नरसंहार पर आज तक सबकी बोलती बंद है, क्यों? क्या चितपावन ब्राह्मण इन्सान नहीं थे? उस समय भारत में केवल कांग्रेस का ही राज था। चितपावन मूलत: कोंकण के ब्राह्मण होते हैं, जिनकी मुंबई और महाराष्ट्र के कुछ दूसरे इलाकों में अच्छी-खासी आबादी थी। महादेव रानाडे, गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान्य तिलक और वीर सावरकर जैसी मशहूर हस्तियां इसी समुदाय से आती हैं। ये पूरा हत्याकांड तबके महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं की देखरेख में हुआ था, जो खुद को अहिंसावादी और गांधीवादी बताते हैं। इसके बाद बेहद प्रायोजित तरीके से लोगों के बीच यह बात फैलाई गई कि चितपावन ब्राह्मण होते ही नहीं हैं। 
उस दौर के लोगों के दावों के अनुसार मुंबई, पुणे, सातारा, कोल्हापुर, सांगली, अहमदनगर, सोलापुर और कराड जैसे इलाकों में 1000 से 5000 चितपावन ब्राह्मणों को बर्बर तरीके से मौत के घाट उतार दिया गया। कुछ जगहों पर यह संख्या 8000 होने का भी दावा किया जाता है।

मरने वालों में कई महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इस कत्लेआम में 20 हजार के करीब मकान और दुकानें जला दी गईं। इसके शिकार हुए लोगों में मशहूर क्रांतिकारी वीर सावरकर के तीसरे भाई नारायण दामोदर सावरकर भी थे। गांधी के अहिंसक चेलों ने ईंट-पत्थरों से हमला करके नारायण सावरकर को मौत के घाट उतार दिया था। पुणे यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे अरविंद कोल्हटकर ने लिखा है कि “तब मैं पांच साल का था। हम सातारा में रहा करते थे। जहां पर हमारा घर था वहां ज्यादातर गैर-ब्राह्मण लोग ही रहा करते थे। यहां लोगों के बीच बहुत भाई-चारा था, लेकिन उस हिंसा में हमारा परिवार भी बुरी तरह से शिकार बना। 1 फरवरी 1948 की दोपहर को हमारा घर और प्रिंटिंग प्रेस जला दिया गया।” जाहिर है ये हिंसा किसी गुस्से का नतीजा नहीं, बल्कि एक सोची-समझी कार्रवाई थी, जिसके पीछे कांग्रेस को चुनौती देने वाली एक जाति को पूरी तरह से खत्म कर देने का इरादा था। यही कारण है कि लोगों के कारोबार और संस्थानों को निशाना बनाया गया। धनी लोगों के व्यापारिक संस्थान जला दिए गए।


चितपावन ब्राह्मणों के इस नरसंहार को आज पूरा देश भूल चुका है एकाएक कांग्रेस के इशारे पर पूरे महाराष्ट्र में चितपावन ब्राह्मणों की दुकानें उनके दफ्तर उनकी मिल उनके शिक्षण संस्थान उनके घर जला दिए गए आखिर क्यों?

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