सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे । उनकी आस्था की गवाही आज भी अयोध्या में मौजूद उन हथियारों से मिलती है जिसका इस्तेमाल निहंग सिखों की सेना ने मुगलों को धूल चटाने के लिए किया था । रामभक्त सिखों के दसवें गुरू गोबिंद जी को भी रामजन्मभूमि की रक्षा के लिये पटना से अयोध्या आना पड़ा था। इतिहास ये भी कहता है कि 1672 में अयोध्या में गुरु गोविंद सिंह जी का आना बाल्य काल में हुआ था। उन्होंने यहां राम जन्मभूमि के दर्शन करने के बाद बंदरों को चने खिलाए थे।

अयोध्या के गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में मौजूद एक ओर जहां गुरु गोविंद सिंह जी के अयोध्या आने की कहानियों से जुड़ी तस्वीरें हैं तो दूसरी ओर उनकी निहंग सेना के वे हथियार भी मौजूद हैं जिनके बल पर उन्होंने मुगलों की सेना से राम जन्मभूमि की रक्षा के लिये युद्ध किया था। राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए यहां गुरु गोविंद सिंह की निहंग सेना से मुगलों की शाही सेना का भीषण युद्ध हुआ था जिसमें मुगलों की सेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त दिल्ली और आगरा पर औरंगजेब का शासन था।

इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह की निहंग सेना को चिमटाधारी साधुओं का साथ मिला था। मुगलों की सेना के हमले की खबर जैसे ही चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णवदास को लगी तो उन्होंने गुरु गोविंद सिंह जी से मदद मांगी और उन्होंने तुरंत अपनी सेना भेज दी थी। युद्ध में पराजय के बाद औरंगजेब बहुत ही क्रोधित हो गया था।

मुगलों से लड़ने के लिये सिखों की सेना ने सबसे पहले ब्रह्मकुंड में ही अपना डेरा जमाया था। गुरुद्वारे में वे हथियार आज भी मौजूद हैं जिनसे मुगल सेना को धूल चटा दी गई थी। अयोध्या की रक्षा के लिये सिखों का बड़ा जत्था आया था जिन्होंने राम जन्मभूमि को आजाद कराया और हिन्दुओं को सौंपकर वापस चले गए। निहंग सेना और चिमटाधारी साधुओं की जीत से मुगल शासक औरंगजेब इतना भौचक्का रह गया था कि अगले कई वर्षों तक मुगलों ने अयोध्या की तरफ आंख उठाकर देखने की कोशिश भी नहीं की।

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