देश बदल चुका हैं। हिंदुओं को अपनी कन्जयूमर शक्ति का अहसास हैं। आप हिंदुओं को गाली देकर ना मूवी चलवा सकते, ना किताब बिकवा सकते, ना सोना, चांदी, टीवी, फ्रिज, कार कुछ भी नहीं बेच सकते।

सन्देश साफ हैं – खुली अर्थव्यवस्था में बहुसंख्यक हिंदुओं का अपमान कर कोई कम्पनी नहीं चल सकती

तनिष्क माफी मांग चुका है, उसे समझ आ गया ये विज्ञापन आत्महत्या के समान साबित होगा। विज्ञापन हटा लिया गया हैं। लेकिन कुछ नकली धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदारों को आग लगी हैं। होली, दीवाली, करवाचौथ सब पर हिन्दू धर्म का अपमान जैसे फैशन बना लिया गया था। अब ये संभव नहीं। अब हिन्दू मुखर है और हिन्दू विरोध की इकोनॉमिक्स बहुत महंगी पड़ने लगी हैं।

एक महामूर्ख चम्पू को लगा कि वो नकली सेकुलरिज्म की चादर ओढ़कर तनिष्क के घटिया विज्ञापन के पक्ष में बोलेगा तो ज्ञानचंद कहलायेगा। बस तपाक से बोल पड़े। तनिष्क का विज्ञापन का विरोश करने वालो कि औकात नहीं मार्किट को प्रभावित करने की।

सहित्य के माफियाओं की ये गलतफहमी अभी थोड़े दिन पहले ही दूर हुई थी जब इस माफ़िया ने दिल्ली दंगो का सच बताने वाली किताब को रोकने की कोशिश की और रातोरात उस किताब की 50 हजार प्रतियां बुक हो गयी।

तनिष्क को समझ आ गया, लेकिन ढपोरशंख चेतन भगत को समझ नहीं आया। सिंपल सी बात है औकात किसकी है ये इसी बात से समझ लो कि ये विज्ञापन दीवाली से पहले आया है, ईद से पहले नहीं।

देश बदल चुका हैं। हिंदुओं को अपनी कन्जयूमर शक्ति का अहसास हैं। आप हिंदुओं को गाली देकर ना मूवी चलवा सकते, ना किताब बिकवा सकते, ना सोना, चांदी, टीवी, फ्रिज, कार कुछ भी बेच सकते।

भारत में धंधा करना है तो हिन्दू धर्म का अपमान करने की सपने में भी मत सोच लेना।

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