कितने संयोग की बात है कि , आज यानि 26 अक्टूबर को देश के इतिहास में शायद पहली बार इतने व्यापक पैमाने पर “जम्मू कश्मीर विलय दिवस ” के रूप में देख ,पढ़ , जान और समझ रहे हैं |जबकि आज ही उधर कुछ लुटे पिटे निज़ाम दोबारा से अपनी मुगलिया सत्ता पाने का ख़्वाब देखने भी लगे हैं |

यहां और ठीक यहीं पर ये बात कह देना बहुत जरूरी हो जाता है कि आज नीचे इस लेख को पढ़ के देखियेगा और सोचिएगा कि क्या आज के दिन इतिहास में घटा हुआ जो कुछ असाधारण था वो कांग्रेस की किस नीति के तहत कभी भी लोगों को समझने जानने लायक तथ्य भी नहीं समझा गया |

अंग्रेज जो यहां पर आते आते तक समझ गए थे कि, आपसी फूट और रंजिश के लिए भारत में ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी सो शुरू से लेकर भारत से जाते समय तक अलगाव बँटवारे ,अलग अलग देश जैसे वो नासूर दे गए जिससे आए दिन खून और आतंक रिसता रहता है |

जम्मू कश्मीर की वो रियायास्त जो राजा गुलाब सिंह जी ने ब्रिटिश हुकूमत से खरीदी थी वो कभी भी ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन नहीं रही और आजादी के बाद भी स्वतन्त्र रियासत की स्थति में ही थी |इधर जब बंटवारे के सुगबुगाहट शुरू भी नहीं हुई थी तभी दूरदर्शी महाराज हरि सिंह ने वर्ष 1930 के गोल मेज सम्मलेन में ही घोषणा कर दी थी यदि कभी ऐसा निर्णय लेना पड़ा तो वे भारत का अंग बनेंगे |

लेकिन जब वास्तव में इस तरह की परिस्थितियां बनीं तब तक इस पूरे परिदृश्य में शेख अब्दुल्ला आ गए जो जवाहर लाल नेहरू के प्रिय थे | तब प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल के समय में भारत में विलय का सीधा अर्थ था प्रशासनिक प्रमुख के रूप में सारी शक्ति शेख अब्दुल्ला के हाथों में जाना |

इसी सब के बीच , 22 अक्टूबर 1947 के दिन पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों के वेश में काश्मीर पर हमला बोल दिया |घबराकर महाराजा ने भारत से सहायता मांगी और अगले ही दिन गृह सचिव मेनन महाराजा के साथ बैठक कर रहे थे |

भारतीय सेना के महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह जी के अपरिमित साहस और पराक्रम के कारण , जैसा कि महाराजा हरि सिंह को उनहोंने वचन दिया था ” एक इंच जमीन और एक भी आदमी ” जाने नहीं देंगे , पूरे पांच दिनों तक पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह मार काट कर हारने भगाने के बाद उसे शांतिपूर्वक भारत में मिलाया जा सका |

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन के साहित्य की मानें तो , संघ के दूसरे सर संघचालक पूजनीय गोलवलकर जी गुरूजी ,कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष्य श्री आचार्य कृपलानी के आग्रह करने पर , महाराजा हरि सिंह से भारत में विलय करने की बात समझाने के लिए खुद कश्मीर गए थे  और उन्होंने वहां महाराज को इस बात के लिए राजी भी कर लिया था |

अब इस पूरे घटनाक्रम का सबसे महत्वपूर्ण पहलू | महाराजा हरि सिंह और भारत के बीच विलय की ये संधि बिना किसी शर्त के थी | यानि जम्मू कश्मीर ने कभी नहीं कहा कि भारत में विलय के बदले में उन्हें धारा 370 से उपकृत किया जाए |

तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने चहेते शेख अब्दुल्ला और उनकी मुस्लिम परस्ती को बनाए रखने के कारण इतने सालों तक धारा 370 को जबरन भारत और भारत के संविधान पर लादे रखा |

विलय के बावजूद भी , अगले कुछ वर्षों में होने वाले युद्धों के समय तक भी स्थानीय लोगों को मुख्य धारा और प्रशासन में लाने के बदले उन्हें धीरे धीरे साइड लाइन ही लगा दिया गया |

आने वाले सारे वर्षों में स्थानीय राजनीतिक दलों , छुटभैये नेताओं , आतंकियों तक से साँठ गाँठ के कारण , राज्य और निवासियों को देश से जोड़ने , साथ लाने ,वाली नीतियों के बदलने उन्हें निरंतर अलग करने , अलग होने ,महसूस करने वाली नीतियां नियम बनाए जाते रहे |

एक बात और , ऐसे जाने कितने ही सच हैं जो कांग्रेसी सिलेबस के इतिहास और भूगोल से जानबूझ कर गायब कर दिए गए हैं |खैर अब ये ज़माना पोल खोल ज़माना है जिसका जैसा जो भी सच होगा झूठ होगा वो वैसा ही सामने आ जाएगा | सोचिये कि किस तरह से एक एक समस्या को पूरी आधी आधी शताब्दी तक पाल पोस कर रखा गया वो भी किसलिए , ताकि सियासत का धंधा चलता रहे |

बहरहाल आज जब कोई ये कह रहा था , रूठी हुई खाला जान की तरह कि कश्मीर में तिरंगा नहीं लहराया जाएगा , देखिये क्या हाल हुआ

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