भारत के राजनीतिक इतिहास में शायद ही कोई ऐसा मुख्यमंत्री हुआ हो जो इस स्तर का तानाशाह हो, जैसी ममता बनर्जी हैं। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी TMC ने अपने राजनीतिक विरोधियों से प्रतियोगिता के लिए बर्बरता और निरंकुशता की तमाम हदें पार कर दी हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद उस नृशंसता और नरसंहार का नंगा नाच पूरी दुनिया ने देखा है।

देखा जाए तो बंगाल कभी शांत रहा ही नहीं, हर दिन हिंसा, झड़प और हिंदुओं की हत्याएं की खबरें सामने आती है. यहां तक कि कई बार बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या की खबर दिल्ली तक पहुंचने भी नहीं दी जाती. इसी कड़ी में एक बार फिर बीरभूम में 10 लोगों को जिंदा जलाने की घटना ने ममता बनर्जी की पार्टी TMC की क्रुरता का परिचय दिया है. वहीं ममता बनर्जी को देश का अगला प्रधानमंत्री मान चुका एक बड़ा सेक्युलर पत्रकार गैंग खुलकर जो ममता बनर्जी के पक्ष में है और बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या पर भी मौन रहा था। अचानक से बीरभूम की हिंसा ने उनके अंदर के इंसान को जगा दिया है.

आखिर ऐसा अचानक क्या हुआ कि वही गैंग आज तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ममता बनर्जी के खिलाफ लिख रहा है, बोल रहा है ? आपको हाथों में माइक थामे, तो कभी खेतों में किसानों के साथ खाना खाने वाले अजित अंजुम तो याद ही होंगे जिन्होंने बंगाल के चुनावों में खुलकर ममता बनर्जी के पक्ष में वीडियो बनाया था लेकिन वह भी इस हत्याकांड के बाद ममता बनर्जी के राज को जंगल राज करार दे रहे हैं.

इस खेमे में अजीम अंजुम ही नहीं है बल्कि इस घटना के होते ही तमाम लिबरल गुट एकदम से ममता बनर्जी पर हमलावर हो गये. आजकल #FreeUmarKhalid के काम में जुटे विनोद कापड़ी ने अपने ट्वीट में लिखा है कि आपको एक पल भी मुख्यमंत्री पद पर रहने का अधिकार नहीं है.

वही टेलीग्राफ ने बीरभूम की घटना को एक संघर्ष बताया है और 10 लोगों को जिंदा जला देने के बाद भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सवाल पूछने का साहस नहीं जुटाया। उल्टे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना पर जो कहा गया उसका ही मजाक उड़ाते हुए लिखा कि लखीमपुर खीरी के लिए एक भी शब्द नहीं, तो वहीं बीरभूम के लिए आंसू…

दरअसल ममता बनर्जी ने बंगाल के हिंदुओं के खिलाफ सभी राजनीतिक हिंसा और नरसंहार को दबा दिया है। वह ऐसे सभी मामलों को बीजेपी की साजिश, फेक न्यूज का लेबल लगा कर देश की जनता को भ्रमित करती हैं और इसमें उनका साथ देते हैं कुछ ऐसे पत्रकार जो तक बीजेपी कार्यकर्ताओं और हिंदुओं की हत्याओं पर मौन रहते हैं. आखिर में ममता दीदी से हम तो यही विनती करेंगे की राष्ट्रीय स्तर के नेता बनने के चक्कर में कम से कम मानवीय संवदनाओं को ताक पर मत रखिए . इंसान के जीवन की कीमत को समझिए.

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