प्राचीन काल से हमारे देश में शिक्षा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. हमारे भारत में गुरुकुल परम्परा सबसे पुरानी व्यवस्था है. गुरुकुलम वैदिक युग से ही अस्तित्व में है. प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षा पद्दति से ही शिक्षा दी जाती थी. भारत को विश्व गुरु इस पद्धति के कारण ही तो कहा जाता था.
अब इस परम्परा का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं कि गुरुकुल परम्परा क्या है, किस प्रकार से पहले शिक्षा दी जाती थी और आज के युग की आधुनिक शिक्षा गुरुकुल पद्धति से कैसे भिन्न है.

इसकी एक्ट की ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में ही काम करेंगे, और इस दौरान मैकोले ने एक मुहावरा इस्तेमाल करते हुए कहा था “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इस भारत को जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी” |

अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत के तत्कालीन रहनुमाओं में कोई भी ऐसा बुध्दिजीवी नहीं थे जो इस साजिश और भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर पड़े इसके दुष्प्रभावों को समझते या उसका विरोध करते?

दरअसल कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य ही छिन्न-भिन्न हो चुकी भारतीय संस्कृति और परंपराओं को शनैः शनैः कमजोर कर पुनः इस्लामिक ताकतों के हाथों सौंप देने की शर्त पर था जिसका निर्वहन कांग्रेस 70 सालों से बाकायदा कर रही थी पर एकाएक हिन्दू संगठनों का एकजुट होकर देश में फैले इन भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मोर्चा खोल देना और केन्द्र में एक ऐसी सरकार का आ जाना जिसका भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रमुखता से समर्थन करना उनकी सालों से चली आ रही उस मुहिम पर पुर्ण विराम लगा दिया।

प्राचीन भारत में, गुरुकुल के माध्यम से ही शिक्षा प्रदान की जाती थी. इस पद्धति को गुरु-शिष्य परम्परा भी कहते है. इसका उद्देश्य था:

– विवेकाधिकार और आत्म-संयम

– चरित्र में सुधार

– मित्रता या सामाजिक जागरूकता

– मौलिक व्यक्तित्व और बौद्धिक विकास

– पुण्य का प्रसार

– आध्यात्मिक विकास

– ज्ञान और संस्कृति का संरक्षण

हालांकि इस बात से पूरी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली समय के साथ विकसित हुई है और पश्चिमी प्रणाली से प्रभावित है. यह प्रौद्योगिकी में बदलाव और प्रगति से प्रभावित हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली, तकनीकी विकास को शामिल करने के लिए विकसित हुई है। इन तकनीकों के माध्यम से छात्रों को घर बैठकर और बेहतर तरीके से ज्ञान को समझने में मदद मिलती है जिससे स्मृति में बढ़ोतरी होती हैं. उन्नत अनुसंधान और विकास के अनुसार शिक्षण विधियों को लगातार अपग्रेड किया जा रहा है, पर इस शिक्षा प्रणाली की एकमात्र कमी यही है कि इसमें व्यावहारिक भाग के बजाय सैद्धांतिक भाग पर जोर दिया जाता है।

इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं हैं की दोनों शिक्षा प्रणालियों का एकीकरण करने की जरुरत है. हमें गुरुकुल को समझने की जरुरत है कि वह कैसे काम करता है, अतीत में समाज कैसा दिखता था और वर्तमान में गुरुकुल प्रशिक्षण का उद्देश्य को कैसे पूरा किया जा सकता है. यह सिर्फ अतीत को जानने के लिए ही नहीं है. दोनों शिक्षा प्रणाली का समन्वय होना अनिवार्य है. हमें ये नहीं भूल  सकते हैं कि गुरुकुल प्रणाली उस समय की एकमात्र शिक्षा प्रणाली थी. छात्रों ने इस प्रणाली के जरिये शिक्षा के साथ सुसंस्कृत और अनुशासित जीवन के लिए आवश्यक पहलुओं को भी पढ़ाया गया था. छात्र मिलकर गुरुकुल छत के नीचे रहते थे और वहां एक अच्छी मानवता, प्रेम और अनुशासन था. यहां पर छात्रों को बुजुर्गों, माता, पिता और शिक्षकों का सम्मान करने की अच्छी आदतें सिखाई जाती हैं.

प्राचीन काल की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को भुलाया ही नहीं जा सकता है जहाँ संस्कार, संस्कृति और शिष्टाचार और सभ्यता सिखाई जाती हो। आप बिना गुरूकुल की शिक्षा व्यवस्था को समझे भारतीय संस्कृति और परंपराओं को नहीं समझ सकते।

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