दिल्ली में क़ुतुब मीनार को मुगलों द्वारा बनाया एक नायब अजूबा माना जाता है। इतिहासकारों ने कुतबुद्दीन ऐबक को इस मीनार का रचनाकार कहा है। चाहे वह गूगल सर्च हो या मुगलों के इतिहास से लदी एनसीआरटी की किताब, हर जगह कुतबुद्दीन ऐबक को ही क़ुतुब मीनार का रचनाकार माना है।
लेकिन कुछ ऐसे भी इतिहासकार एवं जानकार मौजूद हैं जिन्होने यह शोध किया है कि क़ुतुब मीनार मुगलिया नहीं हिन्दू कारीगरी का नमूना है। उन्होंने इसके पीछे की सच्चाई बताने के लिए कई तथ्य भी सामने रखे हैं जिसे आपको भी जानना जरूरी है। पहली बात तो यह कि क़ुतुब मीनार के प्रांगण में जिस मस्जिद को बड़े शौख से इतिहासकार, मुगलिया कहते हैं वहाँ हिन्दू कलाकृति एवं भगवान के स्तम्भ क्यों मौजूद हैं? कई बार इस मस्जिद में पूजा के लिए कोर्ट से अनुमति मांगी गई है, मगर इस पर इन लिबरल इतिहासकारों ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि यह इतिहास का अभिन्न अंग है जिसके साथ छेड़-छाड़ नहीं किया जाना चाहिए। मगर वह इस बात पर अटक जाते हैं कि वह हिन्दू कलाकृतियां मस्जिद में कैसे उपस्थित हैं?
वर्ष 1977 में प्रोफेसर एम.एस भटनागर ने क़ुतुब मीनार पर एक शोध किया, जिसमें उन्हें यह ज्ञात हुआ कि क़ुतुब मीनार को मुगलों के आने से पहले ध्रुव स्तम्भ नाम से जाना जाता था और मस्जिद की जगह मंदिर उपस्थित था। ध्रुव स्तम्भ का यदि हम हवाई दृश्य देखेंगे तो यह ज्ञात होगा कि उसका ऊपरी हिस्सा कमल के आकार में है। मुगलों के आने से पहले ध्रुव स्तम्भ में राजा विक्रमादित्य के दरबार के ज्योतिष विद्वान ‘वराह मिहिर‘ साथी विद्वानों के संग खगोल विद्या के नए सिद्धांतो की खोज करते थे। यह इसलिए भी खास है क्योंकि यह बात इस्लाम के जन्म से भी पहले की है।
जिन इतिहासकारों ने क़ुतुब मीनार पर शोध किया है वह यह भी जानते हैं कि 27 हिन्दू मंदिरों को तोड़कर वहाँ मस्जिद बनाई गई थी।
हम उन लिबरल इतिहासकारों से 5 ऐसे प्रश्न पूछ रहे हैं जिन्हे पढ़कर आप भी यही मानेंगे कि यहाँ कुछ छुपाया जा रहा है। वह 5 प्रश्न हैं:
- इस्लाम में क़ुतुब मीनार को बनाने का कोई कारण या तर्क नहीं दिखाई देता है: सवाल यह कि नमाज अदा करने के लिए कोई क्यों 72 मीटर ऊँची मीनार बनाएगा? जबकि उसके लिए काफी जगह चाहिए होती है।
- सबसे बड़ा सवाल कि मस्जिद में भगवान की कलाकृतियां क्यों?
- कुतबुद्दीन ऐबक अपना अधिकांश समय लाहौर में बिताता था तो वह दिल्ली में कैसे इस निर्माण को करा सकता था? लेकिन इतिहासकारों द्वारा कहा ये गया है कि कुतबुद्दीन ने इस ईमारत को बनवाने में दिन-रात एक कर दिया था।
- क़ुतुब मीनार का इतिहास तो बताया गया किन्तु ज्योतिष विद्वान वराह मिहिर का इतिहास कहाँ गया?
- आखिरी एवं महत्वपूर्ण सवाल यह कि क़ुतुब मीनार प्रांगण के आस-पास भी हिन्दू कलाकृतियां क्यों मौजूद हैं ?
यदि कुछ छुपाया जा रहा है तो उसे सामने लाना चाहिए क्योंकि इतिहास को तोड़-मरोड़ कर युवाओं को दिखाना लिबरल इतिहासकारों की आदत है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है टीपू सुल्तान का, इसपर भी जल्द चर्चा करेंगे?
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