चीन की महान दीवार से प्राप्त हुयी पांडुलिपि में ‘पवित्र मनुस्मृति’ का जिक्र स्पष्ट शब्दों ने किया गया है, सही मनुस्मृति में 630 श्लोक ही थे, मिलावटी मनुस्मृति में अब श्लोकों की संख्या 2400 हो गयी
सवाल यह उठता है कि, जब चीन की इस प्राचीन पांडुलिपी में मनुस्मृति में 630 श्लोक बताया है तो आज 2400 श्लोक कैसे हो गयें ? इससे यह स्पष्ट होता है कि, बाद में मनुस्मृति में जानबूझकर षड्यंत्र के तहत अनर्गल तथ्य जोड़े गये जिसका मकसद महान सनातन धर्म को बदनाम करना तथा भारतीय समाज में फूट डालना था। “जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते” अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं। वर्तमान दौर में ‘मनुवाद’ शब्द को नकारात्मक अर्थों में लिया जा रहा है। ब्राह्मणवाद को भी मनुवाद के ही पर्यायवाची के रूप में उपयोग किया जाता है। वास्तविकता में तो मनुवाद की रट लगाने वाले लोग मनु अथवा मनुस्मृति के बारे में जानते ही नहीं है या फिर अपने निहित स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग अलापते रहते हैं। दरअसल, जिस जाति व्यवस्था के लिए मनुस्मृति को दोषी ठहराया जाता है, उसमें जातिवाद का उल्लेख तक नहीं है।

शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च। (10/65)
महर्षि मनु कहते हैं कि कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। विद्या और योग्यता के अनुसार सभी वर्णों की संतानें अन्य वर्ण में जा सकती हैं।

आखिर जिस मनुस्मृति में कहा गया की जन्म से सब सूद्र ही होते है कर्मो से वो ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य बनते है,जातिवाद नही वर्णवाद नियम था की शूद्र के घर पैदा होने वाला ब्राम्हण बन सकता था,,, सब कर्म आधारित था,,, आज उसको जातिवाद की राजनीती का केंद्र बना दिया गया,,,.

मनुस्मृति और सनातन ग्रंथों में मिलावट उसी समय शुरू हो गयी थी जब भारत में बौद्धों का राज बढ़ा, अगर समयकाल के दृष्टि से देखें तो यह मिलावट का खेल 9 वीं शताब्दी के बाद शुरू हुआ था।

मनुस्मृति पर बौद्धों द्वारा अनेक टीकाएँ भी लिखी गयी थीं। लेकिन जो सबसे ज्यादा मिलावट हुयी वह अंग्रेजों के शासनकाल में ब्रिटिश थिंक टैंक द्वारा करवाई गयीं जिसका लक्ष्य भारतीय समाज को बांटना था। यह ठीक वैसे ही किया ब्रिटिशों ने जैसे उन्होंने भारत में मिकाले ब्रांड शिक्षा प्रणाली लागू की थी। ब्रिटिशों द्वारा करवाई गयी मिलावट काफी विकृत फैलाई।

इसी तरह 9 वीं शताब्दी में मनुस्मृति पर लिखी गयी ‘भास्कर मेघतिथि टीका’ की तुलना में 12 वीं शताब्दी में लिखी गई ‘टीका कुल्लुक भट्ट’ के संस्करण में 170 श्लोक ज्यादा था।

इस चीनी दीवार के बनने का समय लगभग 220 से 206 ईसा पूर्व का है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220 ईसा पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा।

यदि हम आज के संविधान की तुलना मनुस्मृति से करें तो पाएंगे कि आज का संविधान जिसमे मनुष्य की जाति जन्म से ही तय हो जाती है वही कारण है कि आज भी लोग जात पात से बाहर नही आ पाते, आज हम राम राज की कल्पना करते हैं पर हम में से कितने लोग जानते हैं कि स्वयं श्रीराम के राज में मनुस्मृति ही संविधान थी, जिन्होंने मनुस्मृति को कभी देखा ही नही वो इसपर लांछन लगा लगा कर न जाने कितनी बार पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं, वो इसे बदनाम ही रखना चाहते हैं क्योंकि भारत ने यदि मनुस्मृति को अपनाया तो उनकी दुकान बंद हो जाएगी।

हमे इस ऐतिहासिक धरोहर को उसका यथोचित सम्मान वापस दिलवाने के लिए कठिन परिश्रम और निरंतर प्रयास करना होगा, वो मनुस्मृति जिसमें

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः जैसी सुंदर बातें लिखी गईं हैं और जबतक उनका पालन हुआ भारत विश्वगुरु के पद पर निर्बाध बैठा था।

जानकारी का स्त्रोत :

Manu Dharma shastra : a sociological and historical study, Page No-232 (Motwani K.)

Education in the Emerging India, Page No- 148 (R.P. Pathak)

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.