साभार- सर्वेश तिवारी श्रीमुख
75 वर्षों के बाद ही सही, क्रूर अंग्रेजों के ईसाई तंत्र की गुलामी से मुक्ति की लड़ाई में सबसे ज्यादा खून बहाने वाले वनवासियों की बेटी को भारत की सत्ता के शीर्ष पर देखना वाकई बेहद सुखद है। सुखद यह भी है कि जिस दल को ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी बताया जाता है, उसी पार्टी ने श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनवाया, सुखद यह भी है कि उस दल के सभी समर्थक पूरे मन से सरकार के इस निर्णय के साथ खड़े हैं।
वनवासियों की चर्चा होते ही मुझे याद आते हैं मेवाड़ के वे भील योद्धा, जिन्होंने अपने खून से मेवाड़ी स्वाभिमान का इतिहास लिखा था। हम जैसे इतिहास के विद्यार्थी जितनी श्रद्धा से जयमल और फत्ता को याद करते हैं, उसी श्रद्धा से टांट्या भील को भी नमन करते हैं। याद आते हैं वे बिरसा भगवान, जिन्होंने ईसाई कुचक्रों को तोड़ने में अपना जीवन होम कर दिया। याद आते हैं सन् 1855 में ही अंग्रेजों के खिलाफ हूल मचाने वाले सिद्धो-कानू और उनके साथ वीरगति पाने वाले वे 20 हजार संथाली वीर, जिन्होंने ब्रिटिश अत्याचार से लड़ते हुए अपनी आहुति दे दी लेकिन न धर्म छोड़ा न ही स्वाभिमान का त्याग किया।
जम्मू, हिमांचल, अरुणाचल, असम, नागालैंड, त्रिपुरा,मेघालय, झारखंड, छतीसगढ़… ईसाई तंत्र ने वनवासियों को सबसे ज्यादा पीड़ा दी है और उनके बाद अपने हिस्से की लड़ाई लड़ते हुए सर्वाधिक बलिदान भी उन्होंने ही दिया है। स्वतन्त्रता के बाद भी उन्हें मानसिक रूप से बंधन में रखने का ही प्रयास हुआ। जिन लोगों ने उन्हें सर्वाधिक पीड़ा दी, वही उनके हितैषी बन कर आये और आठ-आठ आने वाली क्रोसिन की गोलियों के बदले में उनसे उनका धर्म छीना। उनकी युगों पुरानी परम्पराएं छीनी, उनकी सभ्यता-संस्कृति को मिटाने का षड्यंत्र रचा।
मुझे यह मानने में कोई आपत्ति नहीं कि उन्हें स्वतन्त्रता के बाद भी वह सबकुछ नहीं मिला, जो मिलना चाहिये था। केवल आरक्षण का झुनझुना पकड़ा देना ही काफी नहीं होता, सरकारी नौकरी और राजनीति अब भी केवल दो प्रतिशत लोगों का विषय होता है। शेष की इन दोनों से कभी भेंट नहीं होती।
आज श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति की कुर्सी की ओर बढ़ते देख कर गर्व हो रहा है। मैं देख रहा हूं उनके चेहरे में बिरसा भगवान का चेहरा! उनके साथ राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़ रहे हैं वे सारे वनवासी योद्धा जिन्होंने इस देश के लिए अपनी मिट्टी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। यह सुखद है, संतोषजनक है।
चुनाव बाकी है। विजय पराजय भविष्य के गर्भ में है। अभी मैं बस यही कह सकता हूं- यशश्वी भवः अम्मा! विजयी भवः!
और हां मोदी जी! थैंक्यू… शानदार निर्णय है यह।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख, गोपालगंज, बिहार।
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