आज से छः या सात वर्ष पहले तक सोशल मीडिया का अस्तित्व उतना प्रभावी नही था जितना की आज है।
आज से छः सात वर्ष पहले तक देश में या सरहदों पर कोई आतंकवादी घटना घटित होती थी तो हमें उसकी जानकारी टीवी और अखबारों के माध्यम से होती थी।

आतंकवादी घटना में जो लोग मारें जाते थे तथा जो जवान शहीद होते थे उन्हें हम किसी विशेष स्थान पर जाकर श्रद्धाजंलि देते थे एवं उनकी शहादत को याद करते थे।

चूंकि आज सोशल मीडिया का उत्कर्ष अपने चरम पर हैं,इसलिए लोग अपने विचारों को इस माध्यम पर रखना ज्यादा पसंद करते हैं।

ये देखना अत्यंत भावपूर्ण रहा कि आज देश के प्रत्येक वर्ग के लोग पुलवामा में शहीद हुए माँ भारती के सच्चे सपूतों को अपने-अपने तरीके से श्रद्धाजंलि अर्पित कर रहें हैं। ऐसा करना हमारी सेना और उन अमर जवानों के प्रति हमारी सच्ची निष्ठा को दर्शाता हैं।

लेकिन हमारी जिम्मेदारी यही खत्म नही होती। हमे सेना के जवानों के प्राणों का मूल्य समझना होगा। हमे यह समझना होगा कि कोई भी जवान सेना में नौकरी चंद रुपये कमाने के लिए नही करता। उनके अंदर देश के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून होता है। वो अपने देश को ही अपना परिवार समझते हैं इसलिए इसकी सुरक्षा के लिए रात-दिन सरहद पर खड़े रहते हैं। जो जुनून उनके अंदर होता है शायद वो जुनून हमारे और आपके अंदर नही होता।

इसलिए यदि कोई जवान हमारी सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देता हैं तो उसके प्राणों के मूल्य को समझते हुए हमें भी उसका सम्मान करना चाहिए और ये सम्मान हम तभी दे सकते हैं जब हम अपने विचारों में परिवर्तन ला सकेंगे।

और ये परिवर्तन तब आएगा जब हम व्यक्ति से पहले देश को महत्व देंगे एवं इसकी अखंडता और संप्रभुता के साथ किसी भी कीमत पर समझौता नही होने देंगे। अपने विचारों को राष्ट्रहित से ऊपर कभी नही रखेंगे।

देश का प्रत्येक नागरिक जिस दिन इन विचारों को समझ लेगा एवं अपने अंदर समाहित कर लेगा सही मायनों में अमर जवानों को उस दिन सच्ची श्रद्धांजलि मिल जाएगी।

जय हिंद??

                                     
                    ?️अभिनव त्रिपाठी

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