एक तरफ जहां मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज के लोगों की दोबारा हिंदू धर्म में वापसी हो रही है , वहीं झारखंड में ईसाई मिशनरी जिस तरह से धर्मांतरण का काम कर रहे हैं वो वाकई चिंता का विषय है. दरअसल झारखंड के कुछ आदिवासी समुदाय पर मिशनरियों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है . वो लोग भोले-भाले आदिवासियों को बहलाकर ईसाई धर्म अपनाने पर मजबूर कर रहे हैं .

इस बार गुमला जिले के कुछ ग्रामीण इलाकों में धर्मांतरण का खेल धड़ल्ले से चल रहा है. ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के खेल को पूरी योजना के साथ अंजाम दिया जा रहा है. आरोप है कि जो गांव वाले धर्मांतरण का विरोध कर रहे हैं उन्हें सामाजिक बहिष्कार और जान से मारने की धमकी भी दी जा रही है. गुमला से 35 किलोमीटर दूर सदर प्रखंड के गढ़टोली और आसपास के इलाकों में ईसाई मिशनरी सालों से मिशन धर्मांतरण में सक्रिय हैं.

फोटो साभार:  ‘न्यूज़ 18’ 

गढ़टोली इलाके में करीब 55 परिवार वाले इस टोले में ईसाई मिशनरियों का ऐसा आतंक है कि उनकी मर्जी के बिना यहां कुछ नहीं होता.  ‘न्यूज़ 18’  के मुताबिक वर्ष 2006 में इस टोले में धर्मांतरण का खेल शुरू हुआ था. ईसाई मिशनरियों के दबाव कह लीजिए या असर है कि सरना धर्म को मानने वाले इस टोले में आधे से ज्यादा लोग अब प्रार्थना के लिए चर्च जाने लगे हैं . ‌साथ ही यहां रहने वाले करीब 30 सरना परिवारों को अपना धर्म परिवर्तन करना पड़ा. ईसाई मिशनरियों का क़हर दो गोप परिवारों पर टूटा है. बुजुर्ग सालिक गोप का परिवार करीब छह महीने से सामाजिक बहिष्कार झेलने को मजबूर है. इस परिवार को बार-बार जान से मारने की धमकी दी जा रही है.

आलम ये है कि यहां रहने वाला डरा-सहमा सालिक गोप का परिवार घर में ही कैद होकर रह गया है . सालिक गोप का बेटा बुढेश्वर पारा टीचर है, लेकिन सामाजिक बहिष्कार के कारण वो पिछले छह महीने से स्कूल नहीं जा पा रहा. परिवार का आरोप है कि गाय पालने वाले उनके परिवार को गौमांस खाने का दबाव बनाया जा रहा है. यहां तक कि उनके परिवार को गांव के‌ कुएं से पानी लेने के लिए रोक दिया गया है. उनके बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे है. परिवार की आमदनी का जरिया खत्म कर उसका मनोबल तोड़ने की कोशिश हो रही है. लेकिन वो किसी भी हालत में ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के दबाव के आगे वो झुकने को तैयार नहीं.

गुमला के सुदूर ग्रामीण इलाकों में ईसाई मिशनरियों की समानांतर सरकार चल रही है. जो भोले-भाले आदिवासी इनकी बात नहीं मान रहे उनका हुक्का पानी बंद कर सामाजिक बहिष्कार का फैसला सुनाया जा रहा है.  लेकिन सबसे बड़ी विडंबना ये है कि न ही स्थानीय प्रशासन और ना ही पुलिस किसी को भी धर्मांतरण का ये खेल नहीं दिख रहा है, या फिर ये भी हो सकता है सब कुछ जानते हुए भी पुलिस या फिर प्रशासन चुपचाप बैठा तमाशा देख रही है ।

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