सैकड़ों सालों से कम्युनिस्ट गैंग ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। मगर यह सनातन धर्म का सत्य और सटीकता ही है कि गुलाम वंश मुगल वंश अंग्रेजों इन सब के बावजूद भी सनातन धर्म अपनी पूरी ताकत के साथ वर्चस्व में रहा है।

सनातन धर्म कि वर्ण व्यवस्था को मुगलों के चलते जाति व्यवस्था जैसी कुप्रथा कह देना कम्युनिस्ट इतिहासकारों का फैशन रहा है। हाल ही में चल रही कावड़ यात्रा को देख लीजिए इसमें ना कोई ब्राह्मण है ना कोई शूद्र ना कोई ठाकुर है और ना ही कोई वैश्य कावड़ यात्रा एक खूबसूरत एहसास है जो सिर्फ भगवान शिव के नाम पर चलती है जिसमें किसी भी तरह का कोई भी भेद नहीं है।

करोड़ों लोग मां गंगा का पवित्र जल लेकर भगवान शिव को चढ़ाते हैं रास्ते में गए लोग तमाम जगहों पर रुकते हैं जहां पर सिर्फ भोले कहकर इनकी सेवा की जाती है इस भीड़ में किसी की जाति नहीं देखी जाती , किसी का लिंग नहीं देखा जाता देखी जाती है तो सिर्फ शिव के प्रति उसकी भक्ति और यही समानता सनातन धर्म को मजबूत करती है.

क्या आपने आज तक किसी भी किताब में या किसी भी लेख में सनातन धर्म की कावड़ यात्रा के प्रति कोई भी लेख या तारीफ सुनी है? नहीं सुनी होगी क्योंकि सनातन धर्म की खूबसूरती कम्युनिस्ट गैंग को पचती नहीं है। आप सोचिए कि बिना किसी भेदभाव के करोड़ों लोग एक साथ पवित्र गंगाजल को समान भाव से भगवान शिव को चढ़ाते हैं जहां पर ना कोई भेदभाव किया जाता है ना उनकी पहचान पूछी जाती है। क्या सावन के महीने में भारत में जाति व्यवस्था का फटा ढोल पीटने वाले कम्युनिस्ट गैंग के लोग सो जाते हैं?

 

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