लगभग 2 महीने बाद किसान आंदोलन में राजनीतिक पार्टियों के लिए दरवाजे खोलने के क्या मायने है? क्या राकेश टिकैत अब भी कानून वापसी तक टिकेंगे? हमेशा अड़ियल रवैय्या अपनाने वाले टिकैत अचानक सरकार से बातचीत के लिए उतावले क्यों हो रहें हैं? लगातार बढ़ती भीड़ से क्या दिल्ली को डरने की जरूरत है? ये ऐसे कुछ सवाल है जिन्हें हर कोई जानना चाहता है! लेकिन इससे पहले ये समझने की जरूरत है कि 2 दिन पहले अचानक ऐसा क्या हुआ कि राकेश टिकैत भावुक हो गए और जब उनसे उनके रोने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा “कि किसानों के साथ धोखा हुआ”
दरअसल, 26 जनवरी की हिंसा के बाद सिख नेताओ पर भारी दबाव था, और इसी कड़ी में 2 किसान संगठनो ने आंदोलन को छोड़ने की घोषणा कर दी जबकि कई किसान जो अलग अलग संगठनों से थे, वह भी वापस लौटने लगे थे। 28 जनवरी की शाम तक कई सड़को को खाली कराकर उन्हें पब्लिक के लिए खोल भी दिया गया था, इसी बीच कई किसान नेताओ पर गंभीर धाराओं में मुकदमे भी दर्ज हुए और उनमें राकेश टिकैत का भी नाम था। यहाँ याद रखने वाली बात ये थी कि इन नामों में टिकैत इकलौते नेता थे जो उत्तरप्रदेश से थे, अब चूंकि बाकी किसानों को पंजाब जाना था और वहाँ कांग्रेस की सरकार थी इसलिए उन्हें सरकारी संरक्षण का संबल था जबकि टिकैत को उत्तर प्रदेश आना था जहाँ योगी जी की सख्त मानी जाने वाली सरकार थी। अतः टिकैत को गिरफ्तारी का खतरा था, और उन्हें यकीन था कि उन्होंने सरकार और प्रशासन के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है, ये गिरफ्तारी सामान्य नही होगी। सरकार और पुलिस दोनों उनके साथ सख्ती से पेश आएंगे। आशंका यहाँ तक थी कि कस्टडी में उन्हें बदले की भावना से शारीरिक रूप से भी टॉर्चर किया जा सकता है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरेंडर करने की घोषणा के बाद वहाँ कुछ खालिस्तानी समर्थक भी आये थे जो टिकैत के सरेंडर वाले फैसले से खुश नही थे और उन्होंने टिकैत के साथ न सिर्फ अभद्रता और गाली गलौज किया बल्कि कहा ये भी जा रहा है कि उन्होंने टिकैत को थप्पड़ भी मारा है और यही वजह थी कि अपने सख्त लहजे के लिए जाने जाने वाले टिकैत खुद को संभाल नही पाए और कैमरे के सामने रो पड़े। यद्यपि खालिस्तानियों के द्वारा किये गए व्यावहार के पीछे का कारण किसी को नही पता, लेकिन कहा ये जा रहा है कि आंदोलन के नाम पर उन्होंने टिकैत को काफी पैसे दिए थे और वह इस तरह उन्हें डूबने नही देना चाहते थे। खैर कारण कुछ भी हो लेकिन उसके फांसी की धमकी, और पानी के लिए ग्रामीणों से भावुक अपील बताती है कि टिकैत ख़बराये हुए थे। उन्हें गिरफ्तारी का डर तो था ही साथ ही संभव है खालिस्तानियों की तरफ से भी असुरक्षा का भाव रहा हो, इसीलिए उस रात गिरफ्तारी से बचने के लिए, टिकैत बार बार वहाँ उपस्थित आन्दोलनकारियो को मंच पर आने के लिए कहते रहे और साथ ही साथ उन्होंने विपक्षी राजनीतिक लोगों से भी सहायता मांगी ताकि कुछ दिन आगे भी गिरफ्तारी बचे रहें।
अगले दिन मुजफ्फरनगर में महापंचायत हुई और एकबार फिर गाजीपुर बॉर्डर की ओर लोगों का आना शुरू हो गया। मगर इस बार ध्यान देने वाली बात ये थी कि केंद्र में पंजाबी किसान नही बल्कि जाट थे। राकेश टिकैत को पता है कि इस भीड़ को पंजाब की तरह ज्यादा दिनों तक नही रोका जा सकता अतः इसीलिए वह चाहते हैं कि जल्द से जल्द सरकार से बात शुरू हो ताकि वह सरकार से गुजारिश कर पाए कि अच्छे माहौल में बात होने के लिए जरूरी है कि FIR से उनका नाम हटा दिया जाए या फिर कम से कम देशद्रोह और हत्या की साजिस जैसी संगीन धाराएं तो हटा ही ली जाए।
अगर वर्मन परिदृश्य देखा जाए तो आंदोलन के केंद्र में राकेश टिकैत आ चुकें है और आने वाले चुनावों में उन्हें इसका राजनीतिक फायदा मिल सकता है मगर बदले हुए हालात और खुद पर लगे कई संगीन मुकदमों के कारण, टिकैत को अब किसान कानूनों से ज्यादा अपनी फिक्र सता रही है।जब तक टिकैत को राजनीतिक पार्टियों का आर्थिक और राजनैतिक रूप से मजबूत आधार नही मिल जाता, वह भीड़ के सहारे इस आंदोलन को आगे नही बढ़ाना चाहेंगे। मेरा व्यक्तिगत आकलन ये है कि राकेश टिकैत सरकार से सम्मानजनक आफर मिलते ही संभवत आंदोलन से पीछे हट जायेगे।
– राजेश आनंद
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