शास्त्री के शव का न पोस्टमार्टम हुआ और न ही उनकी मौत की ठीक से जांच हुई

शास्त्री के डॉक्टर आरएन चुग जब राज नारायण कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे थे, तब उन्हें एक ट्रक ने टक्कर मार दी थी

गवाही देने के लिए शास्त्री का घरेलू नौकर रामनाथ भी आया था। गवाही से ठीक पहले उसने ललिता शास्त्री से मुलाकात की थी। वहां से निकलने के बाद जब वह संसद जा रहा था, तब उसे किसी गाड़ी ने उसे भी टक्कर मार दी। हादसे में रामनाथ का पैर काटना पड़ा और उसकी याददाश्त हमेशा के लिए चली गई। बाद में उसकी भी मौत हो गई।

जिस नौकर ने बताया कि उस रात खाना उसे नहीं बनाने दिया उसकी भी सड़क हादसे में मौत

वर्ष 1965 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में पराजित कर दिया था | जिसके बाद वर्ष 1966 में भारत और पाकिस्तान के मध्य एक समझौता हुआ, जिसे ताशकंद समझौते के रूप में जाना जाता है | यह समझौता उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में संम्पन्न हुआ था, ठीक उसी रात को वहां पर दिल के दौरा पड़ने के बाद मृत्यु हो गयी थी, परन्तु इसकी मुख्य वजह क्या थी, इसकी अभी तक जानकारी नहीं हो पायी है | जब शास्त्री जी का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो उनका शरीर नीला था, चकते पड़े थे और कटे के कुछ निशान भी थे, जिससे पता चलता है कि उनकी मृत्यु दिल के दौरे से नहीं बल्कि इनकी हत्या की गयी थी |

शास्त्री जी के डॉक्टर आरएन चुग ने कहा था कि उन्हें दिल की कोई बीमारी नहीं थी, जिसके बाद उनकी  सड़क हादसे में मृत्यु हो गई थी |

लाल बहादुर शास्त्री जी ने अंतिम बार अपनी बेटी से फोन पर बात की थी उस समय उन्होंने कहा था कि वह खाना खा चुके है और सोने के लिए जा रहे है, उनकी मृत्यु के बाद रसोइए को भी गिरफ्तार किया गया था, परन्तु सबूतों की कमी के कारण वह छूट गया था |

कहा जाता है, कि जिस रात शास्त्रीजी की मृत्यु हुई थी, उस रात में शास्त्री जी के लिए खाना उनके निजी सर्वेंट रामनाथ ने नहीं, बल्कि सोवियत में भारतीय राजदूत टीएन कौल के कुक जान मोहम्मद ने बनाया था |

कुछ समय के बाद उस नौकर की सड़क हादसे में मृत्यु हो गयी इससे यह प्रतीत होता है, कि शास्त्री जी कि मृत्यु बहुत षड़यत्र रच कर की गयी थी और जिनको इसके विषय में थोड़ी बहुत जानकारी थी, उनको एक-एक कर के मार दिया गया |

लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के लिए कई बार आरटीआई भी डाली गयी पर कोई भी संतोष जनक उत्तर नहीं दिया जा सका |

भारत-पाकिस्तान के बीच समझौता हो चुका था। इसकी खुशी के कारण होटल में पार्टी चल रही थी। क्योंकि वह शराब नहीं पीते थे इसी लिए वो अपने कमरे में जाकर सो गए। वहां उन्होंने सपने में देखा कि शास्त्री जी का देहांत हो गया है।

दरवाजे पर एक रूसी महिला ने दस्तक दी। तब उनकी आंख खुली। उस महिला ने बताया कि ‘योर प्राइम मिनिस्टर इज डाइंग’। कुलदीप नैयर बताते हैं कि वह तेजी से भागकर शास्त्री जी के कमरे में पहुंचे। जहां पहले से रूस के प्रधानमंत्री कोसिगिन खड़े थे।

पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ था

लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद पूरा देश में शोक की लहर थी। इतना ही नहीं विदेश में भी शोक की लहर थी। क्योंकि शास्त्री जी की आकस्मिक मौत दूसरे देश में हुई थी। वो भी एक ऐसे मौके पर जब एक महत्वपूर्ण दस्तावेज पर हस्ताक्षण किए गए थे। उनका शरीर जब भारत लाया गया तो पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया। जिससे उनके मौत का असली कारण आज तक पता नहीं चल पाया है।

उनकी मौत के कारणों की जांच के लिए राजनारायण कमेटी बनाई गई थी लेकिन शास्त्री के डॉक्टर की रहस्यमय मौत से यह जांच अधूरी रह गई। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीकी रहस्यमय पर विवाद एक बार फिर गहरा गया है। उनकी मौत के कारणों की जांच के लिए राजनारायण कमेटी बनाई गई थी लेकिन शास्त्री के डॉक्टर की रहस्यमय मौत से यह जांच अधूरी रह गई। 
ताशकंद में मौजूद रहा शास्त्री का घरेलू नौकर भी हादसे का शिकार हो गया। जब शास्त्री का शव भारत लाया गया तो जो सामान साथ आया उसमें शास्त्री की कुछ निजी चीजें भी गायब थीं। लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने कहा कि वह एक लाल डायरी रखते थे। इसमें वह अपनी दिनचर्या लिखते थे। 11 जनवरी 1966 को उनकी मौत के बाद वह डायरी भारत नहीं आई। 
इसके अलावा वह एक थर्मस भी रखते थे, जिसमें रात को पानी या दूध पीते थे। वह थर्मस भी ताशकंद से नहीं आया। थर्मस की जांच साफ से यह खुलासा हो सकता था कि कहीं उन्हें जहर देकर तो नहीं मारा गया था। 

शास्त्री परिवार के करीब रहे एक नेता ने बताया था कि जब शास्त्री का शव ताशकंद से लाया गया था तो उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को उनके चश्मे के केस से एक फटा कागज मिला था। माना जाता है कि फटा हुआ कागज उसी लाल डायरी का था। उस कागज के मिलने के बाद ही ललिता शास्त्री ने शास्त्री को जहर देने का शक जताया था। 

जब इंदिरा गांधी ने शास्त्री का अंतिम संस्कार इलाहाबाद में कराने का प्रस्ताव रखा, तो ललिता शास्त्री ने कड़ा विरोध जताया था। इंदिरा गांधी नहीं चाहती थी कि दिल्ली में जय-जवान जय किसान का नारा गूंजे। ललिला शास्त्री के विरोध के बाद शास्त्री का अंतिम संस्कार दिल्ली में किया गया था।

शास्त्री के शव का न पोस्टमार्टम हुआ और न ही उनकी मौत की ठीक से जांच हुई। हालांकि जनता पार्टी सरकार के वक्त राज नारायण कमेटी बनी थी लेकिन अब इसके रिकॉर्ड नहीं मिलते हैं। शास्त्री के डॉक्टर आरएन चुग जब राज नारायण कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे थे, तब उन्हें एक ट्रक ने टक्कर मार दी थी। इस हादसे में उनकी मौत हो गई थी। गवाही देने के लिए शास्त्री का घरेलू नौकर रामनाथ भी आया था। गवाही से ठीक पहले उसने ललिता शास्त्री से मुलाकात की थी। वहां से निकलने के बाद जब वह संसद जा रहा था, तब उसे किसी गाड़ी ने उसे भी टक्कर मार दी। हादसे में रामनाथ का पैर काटना पड़ा और उसकी याददाश्त हमेशा के लिए चली गई। बाद में उसकी भी मौत हो गई।

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