महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में नित नए ड्रामे देखने को मिलते हैं। सरकार में शामिल तीनों ही पार्टियां यानी NCP, शिवसेना और कांग्रेस एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलते रहते हैं। इस बार मुद्दा बिजली बिल का का है और ऐसा लगता है कि महाविकास आघाडी की गठबंधन सरकार में इस मुद्दे को लेकर शॉर्ट सर्किट होने वाला है।

दरअसल, कोरोना के बाद से ही महाराष्ट्र में बिजली बिल का मुद्दा छाया हुआ है। राज्य में बिजली उपभोक्ताओं का कहना है कि कोरोना वायरस के दौरान लगाए गए लॉकडाउन की अवधि के दौरान अत्यधिक बिजली बिल आए हैं। ऐसे बिना बिजली इस्तेमाल किए ही बड़ी संख्या में आए बिजली बिल से नागरिकों में बड़ी नाराजगी है। इसी पर सरकार का बिजली मंत्रालय जो कि कांग्रेस के पास है, राहत पैकेज की घोषणा करना चाहता है लेकिन उसे वित्त मंत्रालय जो कि NCP के पास है, उससे हामी नहीं मिल रही है।

रिपोर्ट के अनुसार बिजली मंत्री और कांग्रेस नेता नितिन राउत ने NCP नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार जिनके पास वित्त मंत्रालय भी है, उनपर बिजली उपभोक्ताओं को राहत देने के प्रस्ताव को ‘आठ बार’ खारिज करने का आरोप लगाया है।

इंडिया टुडे टीवी से बात करते हुए, बिजली मंत्री नितिन राउत ने प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए वित्त विभाग पर दोष लगाया। उन्होंने कहा कि, “जो भी राहत दी जानी है वह राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाएगी है, बिजली कंपनियां ऐसा नहीं करेंगी। हमारे विभाग ने उस राहत के लिए राज्य सरकार को एक बार नहीं बल्कि आठ बार प्रस्ताव भेजा है। लेकिन हर बार इसे वापस भेज दिया गया। राउत ने कहा, “आप हर चीज का दिखावा कर सकते हैं, लेकिन आप पैसे का दिखावा नहीं कर सकते।”

एनसीपी के डिप्टी सीएम अजीत पवार के पास वित्त विभाग है। दिलचस्प बात यह है कि अभी हाल ही में राज्य सरकार ने परिवहन विभाग को 10,000 करोड़ की सहायता की घोषणा की थी लेकिन बिजली मंत्रालय के प्रस्ताव को अनसुना कर दिया जा रहा है।

बता दें कि जब इसी मामले पर महाराष्ट्र सरकार की कैबिनेट बैठक में चर्चा तो हुई थी लेकिन स्थिति जस की तस रही। रिपोर्ट के अनुसार कैबिनेट बैठक में ‘कांग्रेस विरुद्ध शिवसेना-राकांपा’ की स्थिति दिखी यानि दोनों ही पार्टियां के दूसरे से सिंग लड़ा रहीं है।

पिछले एक साल में कई मौकों पर, कांग्रेस नेताओं ने उपेक्षा किए जाने और कार्यों के लिए फंड न मिलने का आरोप लगाया है लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ। अब ऐसा लगता हैं कि यह मामला बढ़ चुका है और दोनों ही पार्टियों के बीच खींचतान जारी है। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रमुख और राजस्व मंत्री बालासाहेब थोरात ने भी कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले कुछ स्थानीय निकायों को पर्याप्त धन नहीं मिल रहा है।

बिजली मामले पर राहत और पुनर्वास मंत्री विजय वडेट्टीवार ने कहा कि, “उन लोगों की संख्या अधिक है जो इतना बिजली बिल नहीं भर सकते हैं। यदि आवश्यक हो तो बिजली वितरण कंपनी को महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) की तर्ज पर सहायता दी जानी चाहिए।”

वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक आशीष देशमुख ने एक कदम आगे बढ़कर “बिजली बिल माफी पर यू-टर्न” करने के लिए सीएम ठाकरे को खरी-खोटी सुनाई है। सभी ने मांग की, कि सरकार बिजली बिलों में छूट प्रदान करे और अगर संभव हो तो उन्हें पूरी तरह से माफ कर दें। राज्य सरकार ने तब घोषणा की कि बिजली उपभोक्ताओं को राहत दी जाएगी, अगर राहत देना संभव नहीं था, तो इस तरह की घोषणाएँ क्यों की गईं।”

विपक्ष यानि भाजपा के आक्रामक रुख के बाद सरकार ने मंत्रिमंडल की बैठक में माना कि कोरोना काल के दौरान जिनके बिल ज्यादा आएं है, उन्हें राहत देने की जरूरत है। जनता भारी-भरकम बिजली बिलों से त्रस्त है। भाजपा और मनसे पहले ही बिजली बिल के मुद्दे पर सड़कों पर उतरने का ऐलान कर चुके हैं। उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए राज्य सरकार काफी दबाव में है। इसी दबाव में आकर अब तीनों पार्टियों का आपसी मतभेद खुल कर सामने आ रहा है।

पहले भी कई बार महाविकास आघाडी में तनाव पैदा हुए हैं लेकिन हर बार शरद पवार की चालों से मामला शांत हो जाता था लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि बिजली विभाग के शॉर्ट सर्किट से चिंगारी नहीं बल्कि आग लगने वाली है।

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