देश के असली हीरो कौन – शाहीन बाग की दादियाँ या हमारे कर्मवीर दादा दादियाँ और समाज सेवक?
जिन्हें कोई नहीं जानता आज हम उनके लिए आवाज उठाएंगे। हम उन आत्मनिर्भर कर्मवीरों लिए लिखेंगे जिन्होने 60 वर्ष से ले कर 85 वर्ष की उम्र मे भी हार नहीं मानी और देश के युवाओं लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया हैं। शाहीन बाग की दादियाँ और कांग्रेस के बेरोजगारों की मीडिया कवरिंग के कारण हमारे देश के असली कर्मवीर योद्धा पीछे छूट जाते, हम चाहते हम कुछ आम लोगों की जीवनी आपके सामने रक्खे ताकि समाज मे एक सकारात्मक सोच बने, निराश हो चुके युवाओं को एक प्रेरणा मिले।
देश का नागरिक सम्मान सिर्फ वातानुकूलित कमरे वालों या दंगाइयों के लिए ही सुरक्षित नही है, और ना ही अपने निहित स्वार्थ के के लिए ये सम्मान किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जो समाज मे नकारात्मक विचारों एवं घृणा फैलाते हैं। हमारा सवाल है, आखिर कब तक समाज को तोड़ने वाली शक्तियों का महिमामंडन किया जाएगा और समाज को जोड़ के रखने वालों की उपेक्षा की जाएगी?
हमारा आज का ये लेख उन बेरोजगारों और प्रदर्शनकारियों को सीख देने के लिए भी है जो बिना वजह देश एवं समाज मे एक घृणा का वातावरण बना रहे। राणा अय्युब एवं टाइम्स जैसे मीडिया वालों के लिए है जिन्होने देश विरोधी, समाज विरोधी, एवं भारत विरोधी षड्यंत्र के प्रतीक शाहीन बाग को जन-आंदोलन बना दिया। शायद ये लोग देश के कुछ आम लोगों की जीवनी इन के अंदर के नकारात्मक शैतान को खत्म कर एक ऐसा इंसान बनाए जो समाज के लिए कुछ अच्छा करे।
चाय बेचने वाले 70 वर्षीय आत्मनिर्भर साहित्यकार लक्ष्मण राव:
दिल्ली के हिंदी भवन में जहाँ हिंदी भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जाते हैं, ठीक उसी दफ्तर के सामने लक्ष्मण राव जी पटरी पर बैठकर चाय बेचते है.
महाराष्ट्र के रहने वाले लक्ष्मण राव जी की मातृभाषा मराठी है लेकिन आपको ये जान के आश्चर्य होगा की चाय बेचते बेचते ही उन्होने हिन्दी साहित्य पर 25 से ऊपर पुस्तकें लिख डालीं। विचार कीजिये हमें इन प्रभावशाली व्यक्तिव के बारे मे जानना चाहिए या शाहीन बाग की तथाकथित दादियों के बारे मे?
मिलें 85 वर्षीय आत्मनिर्भर दादी शांताबाई पवार से:
पूना की दादी शांताबाई पवार अपनी आजीविका के लिए अपनी लाठी चलाने की कला का प्रदर्शन करतीं हैं। आपको ये जान के आश्चर्य होगा जिस उम्र का वो पड़ाव जिसमे शरीर साथ नहीं देता, नजरें धुंधली पड़ जाती आज उसी उम्र मे ये दादी आत्मनिर्भर हैं एवं अपने पूरे परिवार का भरण पोषण भी कर रहीं हैं।
जयपुर की 80 वर्षीय दादी विमला कुमावत जिन्होने गरीब बच्चों का जीवन बदल दिया
64 वर्ष की उम्र मे दादी विमला कुमावत ने झुग्गी झोंपड़ियों मे रहने वालों बच्चों को पढ़ाना शुरू किया लेकिन उन्होने कभी सोचा नहीं था की उनका ये अनुभव प्रयास 15 वर्षों मे एक मुहिम बन जाएगा। आज उनमे स्कूल सेवा भारती बाल विद्यालय मे लगभग 450 गरीब बच्चे निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
दादी राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ से जुड़ीं हैं एवं देश के लिए भावी इंजीनियर, डॉक्टर, अध्यापक तैयार कर रहीं हैं। इनका ये प्रयास हम सभी के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत रहेगा।
विश्व की सबसे वृद्ध निशानेबाज तोमर दादियाँ जिन्हें शूटर दादियाँ कहा जाता:
आप लोगों को ये जान के आश्चर्य होगा की ज़िला बागपत के छोटे से गांव जोहड़ी की 82 वर्षीय दादी चंद्रो तोमर और 77 वर्षीय दादी प्रकाशो देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपने निशानेबाज़ी की वजह से विख्यात हैं। ये दादियाँ 25 बार नेशनल चैम्पियन रही हैं निशानेबाजी में इनका जवाब नहीं।
बुढापे में जब रिटायर हो जाते हैं उस उम्र में इन्होंने शूटिंग का अभ्यास शुरु किया और पिछले सत्रह वर्षों में पच्चीस से ज्यादा राष्ट्रीय चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया।
85 वर्षीय दादी की प्रेरणा से शुरू हुई दादी की रसोई
दिल्ली एन सी आर स्थित नोएडा सैक्टर 29 मे दादी की रसोई चलती है जहां 5 रुपये मे लोगों को भरपेट घर का खाना खिलाया जाता है। यही नहीं यहाँ मात्र 10 रुपये मे कपड़े भी बेचे जाते, साड़ी हो या जींस सभी कीमत मात्र 10 रुपये। वर्षों से दादी की रसोई गरीब मजदूरों के लिए भोजन और कपड़ों का प्रबंध करती आ रही।
देश के बेरोजगारों एवं प्रदर्शनकारियों को ये समझना चाहिए की हर व्यक्ति के कुछ सामाजिक कर्तव्य होते एवं उनका निर्वाहन करना चाहिए। समाज मे सकारात्मक संदेश भेजिये घृणा या नकारतमकता नहीं
1 रुपए मे असीमित भोजन श्री श्याम रसोई दिल्ली
दिल्ली के रिक्शेवालों एवं मजदूरों के लिए शुरू की गई ये अनूठी पहल भी एक आम आदमी ने शुरू की, मात्र 1 रुपये मे गरीब मजदूरों को भोजन करवाते। बड़े बड़े ढाबों मे भी ऐसा खाना नहीं मिलता, सस्ता होने के बावजूद खाने की गुणवत्ता से कोई सम्झौता नहीं है। क्या हम इनसे प्रेरणा ले अपने गली मुहल्लों मे ये अनुभव प्रयास नहीं कर सकते? या केवल सरकार को ही दोष देते रहेंगे?
10 रुपए की थाली, दिल्ली MCD की अनूठी पहल अटल जन आहार योजना
क्या आप जानते हैं की दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की ओर से चलाई जा रही अटल जन आहार योजना के तहत मात्र 10 रुपए में भोजन कराया जा रहा है। इस जन आहार योजना की खास बात ये है की पूरे खर्चे का आधा भार दिल्ली नगर निगम वहन कर रहा और आधा पैसा हर इलाके के लोकल जागरूक समाजसेवी दे रहे।
दिल्ली नगर निगम एवं नागरिकों का ये साझा प्रयास अपने आप मे एक अनूठा उदाहरण है।
घर जैसा शुद्ध भोजन, मात्र 10 रुपये मे पश्चिमी दिल्ली के एक आम नागरिक का अनूठा प्रयास।
महंगाई के समय में अगर जरुतमंद को कम दाम में भरपेट खाना मिल जाए तो फिर बात ही कुछ और है. वाकई किसी ने सच ही कहा है कि किसी की मदद करने के लिए दिल साफ होना बेहद जरूरी है. साल 2018 से संजय दोदराजका जी जरुरतमंदों को सिर्फ 10 रुपए प्लेट भरपेट खाना दे रहे हैं. संजय जी ने अब तक 37,000 मजदूरों को भोजन करवाया है।
रोजाना 10,000 गरीब परिवारों को भोजन करवाने वाले दिल्ली झंडेवालान मंदिर के सेवादार।
दिल्ली झंडेवालान मंदिर का कम्यूनिटी किचन ना तो दिल्ली सरकार चलाती और ना ही कोई NGO। ये मंदिर का अपना भोजनालय है जहां सेवादार रोजाना करीब 10,000 लोगों भोजन करवाते हैं। कोरोना लोकडाउन ने तो मंदिर के सेवादारों ने रोजाना करीब 15,000 लोगों के घरों मे जा भोजन दिया है। आपको ये जान के आश्चर्य होगा की अब तक 18.5 लाख प्रवासी मजदूरों एवं गरीब परिवारों को भोजन पहुंचाया जा चुका है।
मंदिर के सेवादार किसी की जाती या धर्म देख के सेवा नहीं करते, बल्कि हर जाती, धर्म और संप्रदाय के लोगों को समान सेवा दी गई है। लेकिन देश एवं समाज के दुश्मन कभी भी ये सच आपके सामने नहीं लाएँगे।
दिल्ली का सबसे बड़ा कम्यूनिटी किचन, गुरुद्वारा बंगला साहिब जी का लंगर
वैसे तो दिल्ली के सभी गुरुद्वारों और मंदिरों मे लंगर चलते हैं लेकिन गुरुद्वारा बंगला साहिब जी का लंगर विशेष है। यहाँ रोजाना 15,000 से अधिक लोगों को भोजन करवाने की व्यवस्था है एवं कोरोना लोकडाउन ने तो गुरुद्वारे के सेवादारों ने लगभग 40,000 लोगों को रोजाना भोजन करवाया था।
रसोई में काम करने वाले सेवादार प्रोटोकॉल के तहत खाना बनाते हैं। रोटी बनाने के लिये ऑटोमैटिक मशीन भी है। हर घंटे मशीन से लगभग 1.5 क्विंटल आटे की रोटी तैयार की जाती है। इस दौरान खास बात ये है कि गुरुद्वारे द्वारा पिछले 12 दिनों में 4.5 लाख लोगों की भूख मिटाई जा चुकी है।
उपरोक्त उदाहरणों को देख के भी अगर वामपंथी, कांग्रेसी, लिबरल, सेकुलर दुर्बुद्धिजीवी हमारे धर्म सनातन के संस्कारों का उपहास उड़ाते एवं देश, समाज तोड़ने वालों का, आतंकवादियों का महिमामंडन करते तो हर भारतीय मे मन मे पीड़ा होती। शाहीन बाग की दादियों का महिमामंडन करने वाले जरा हमारे आत्मनिर्भर, कर्मवीर दादा और दादियों की ओर देखें, और सीख लें। समाज तोड़ने वालों की जगह अगर आप लोगों समाज को जोड़ने वालों को आगे बढ़ाया होता तो आज हमारे देश की तरफ किसी की आँख उठा के देखने की हिम्मत ही ना होती।
जय हिन्द!
भारत माता की जय
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