इस देश को दुश्मनों के लिए कभी दूसरों पर मोहताज रहने की जरूरत नहीं रही | समय समय पर खुद इसी मिट्टी से निकले लोग आस्तीन का सांप बन कर मौक़ा मिलते ही डंक मारते हैं |

यूँ तो राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण से जुडी किसी भी खबर को सुन पढ़ और देखकर बहुत सारे लोगों को पेचिश लगी हुई है , लेकिन एक आध तो ऐसे हैं जो अब दिन रात विष वमन में तत्पर हैं |

इनमें से एक हैं आजकल खूब सारा उलटा सीधा बोलने वाले और ललाट पर अपने लम्बे नाम जितना ही त्रिपुण्ड लेप लगाने वाले द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती | अपने हालिया बकवास में इन्होने ताना मारते हुए कहा है कि

“ये राम मंदिर बन रहा है कोई RSS का मुख्यालय नहीं “

अब समझिये इस बात को कि इस कथन के पीछे उस कपटी सोच का कितना काला ज़हर छुपा हुआ है जो न राम मंदिर के बनने से सहमत और न ही राष्ट्रीय सेवक संघ | यानि सनातन राष्ट्रवाद के रक्त से सिंचित और देश की आत्मा बन चुके संगठन के प्रति इस कुंठित साधु की घृणित मानसिकता को देख कर यही समझा जा सकता है कि इसे RSS की कितनी समझ और पहचनान है |

संत स्वरूपानन्द जो हमेशा से कांग्रेस के पिछलग्गू की तरह व्यवहार और कथ्य उजागर करते रहे हैं का भाजपा और उसमें भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रति द्वेष जग जाहिर है | इस बार मंदिर के शिलापूजन उत्सव के समय काल को लेकर निरंतर कुछ न कुछ कहने बोलने वाले इन बाबाजी ने न तो कभी सनातन के लिए कुछ कहा किया न ही कभी राष्ट्र के लिए |

ऐसा करने वाले ये साधु वेश धरे हुए ये व्यक्ति कोई पहला व्यक्ति नहीं है | आजकल टेलीविजन पर अपनी बुद्धिमता का परिचय देते और लगातार सनातन पर ही हमला बोलते आचार्य प्रमोद कृष्णन को बोलते चिल्लाते देख कर हठात ही ये अंदाजा हो जाता है कि ये भी पॉलिटिकल लेमिनेशन के ऊपर से सनातन का खोल ओढ़े एक धूर्त व्यक्ति है | अपने सार्वजनिक समारोहों में भी ये बार बार सनातन में जबरन सूफी को घुसा कर अपनी धर्मनिरपेक्षता चमकाता रहता है |

एक और भगवा वेश धारी ,स्वामी अग्निवेश जो कभी अन्ना आंदोलन और घुँघरू सेठ की पार्टी का भौंपू बना घूमता था , बाबा अमरनाथ यात्रा पर कुछ उलटा सीधा कहने के बाद सनानातियों ने इसे सार्वजनिक रूप से अपनी गलती और बदमाशी का एहसास करवाया था |

अब समय आ गया है जब इन तमाम कछुओं को अपने खोल से बाहर लाकर और इनकी वास्तविकता को लोगों तक पहुंचा कर लोगों को खुद तय करने दिया जाए कि ऐसे धूर्त विधर्मियों के साथ सार्वजनिक बहिष्कार के अतिरिक्त कैसा क्या व्यवहार किया जाए | देखा जाए तो ये उन कट्टर मौलानाओं से ज्यादा खतरनाक हैं जो सनातन हिन्दू राम देश के प्रति अपनी नफरत खुद कर दिखाते तो हैं |

नकारात्मक बातों से किसी शुभ कार्य को भी विवादित बना देने वाले ये विधर्मी भूल जाते हैं कि पहले से ही ऐसी ख़बरों ,प्रतिक्रियाओं ,आरोपों के इंतज़ार में बैठे समूह , लोग फिर इन्हीं कथ्यों के सहारे समाज में और भी ज्यादा नफरत और भ्रम फैलाते हैं |

रही बात संघ की तो स्वामी स्वरुपानन्द को RSS के बौद्धिक को मन लगाकर सुनना चाहिए इससे जहां उन्हें प्रतिक्रया देते समय शब्दों के चयन की समझ मिलेगी दूसरे उन्हें इस बहाने समाज से जुड़ कर कुछ अच्छा और सार्थक करने की प्रेरणा भी मिल सकेगी |

फिलहाल उनके लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही काम बचा रह गया है कि , आने वाले 5 तारीख को पूरे देश भर में जलते दीयों में अपने भीतर पनप रहे रावण को जला सकें तो क्या बात हो ??

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