लेखक- बलबीर पुंज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार के नौ वर्ष पूरे हो गए। इस दौरान उनकी अनेकों प्राप्तियों में जो दो उपलब्धि मेरे मन को अधिक छूती है। पहला— प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में दुनिया में ‘भारत का इकबाल’ स्थापित होना। दूसरा— देश के भीतर ‘भारत भी कर सकता है’ भावना का संचार होना। अर्थात्— ‘सब चलता है’ वाला दृष्टिकोण अब भूतकाल के गर्त में है। मैं विगत पांच दशकों से पत्रकारिता कर रहा हूं और इस दौरान 12 वर्ष राज्यसभा का सांसद भी रहा। अपने इसी अनुभव के आधार पर यह दावे से कह सकता हूं कि मई 2014 से पहले भारतीय नेतृत्व जिस पराजित मानसिकता से ग्रस्त था, वह उसकी जकड़ से बाहर निकलने लगा है। यह मोदी सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति और दृष्टिकोण से भी रेखांकित हो जाता है।

कुछ समय पहले तक देश के जनमानस (सामाजिक-राजनीतिक) में यह विचार सामान्य था— ‘ये भारत नहीं कर सकता’। मुझे स्मरण है कि 1990 के दशक में भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक बैठक हुई थी, जिसमें मैं भी उपस्थित था। तब उसमें तत्कालीन वित्त सचिव मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने उद्योगपतियों से कहा था कि हमारे देश में पूंजी, प्रौद्योगिकी और उद्यमिता का भारी आभाव है। भारतीय सक्षमता के प्रति तत्कालीन शासन-व्यवस्था के इसी निराशावादी परिप्रेक्ष्य ने देश को आत्मनिर्भर नहीं बनने दिया।

इसी मानसिकता की झलक कोविड-19 के भयावह काल में भी देखने को मिली थी। जब भारत, दुनिया के चुनिंदा देशों में शामिल होकर स्वदेशी वैक्सीन के निर्माण में व्यस्त था, तब देश का विकृत कुनबा भारतीय वैक्सीन को ‘खतरनाक’, ‘असुरक्षित’ बताकर विदेशी वैक्सीन की पैरवी कर रहा था। इस वर्ग ने यह भी विमर्श बनाया कि 140 करोड़ की आबादी वाले भारत में संपूर्ण टीकाकरण होने में 10-15 वर्षों का समय लग सकता है। परंतु भारतीय नेतृत्व ने 16 जनवरी 2021 से टीकाकरण शुरू करते हुए बीते लगभग ढाई वर्षों में 220 करोड़ से अधिक टीके लगाने की उपलब्धि प्राप्त कर ली।

गत दिनों ही रक्षा मंत्रालय ने ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने हेतु सैन्य महत्व वाली 928 वस्तुओं के आयात पर चरणबद्ध प्रतिबंध लगा दिया। पिछले दो वर्षों में इस प्रकार की ये चौथी सूची है। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ का प्रभाव है कि सरकारी आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2022-23 में भारत का वस्तुओं-सेवाओं का निर्यात 14 प्रतिशत से बढ़कर 770 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण जहां भारत में यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स की संख्या नौ वर्षों में 350 से बढ़कर 90 हजार पहुंच गई, तो एप्पल जैसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत को अपना नया ठिकाना बना रही है। भारत इस समय सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर दुनिया की 5वीं, तो क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

समाज कल्याण की दिशा में भी भारत, बदलाव को अनुभव कर रहा है। वर्ष 2014 से बिना किसी मजहबी-जातिगत भेदभाद, भ्रष्टाचार और मौद्रिक-रिसाव के करोड़ों लाभार्थियों को विभिन्न योजनाओं का लाभ पहुंच रहा है। पहले स्थिति क्या थी, यह वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के उस वक्तव्य से स्पष्ट है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार जब भी दिल्ली से एक रूपया भेजती है, तो लोगों तक 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं। परंतु इस दिशा में मोदी सरकार ने धरातल पर सतत काम करते हुए कई मील के पत्थर प्राप्त किए है। इसकी सफलता का एक बड़ा कारण पिछले 9 वर्षों की पारदर्शी व्यवस्था और मोदी सरकार द्वारा खोले गए 49 करोड़ से अधिक जनधन खाते है।

स्वच्छता के मामले में व्यापक परिवर्तन देखने को मिला है। यूं तो पूर्ववर्ती सरकार ने भी इस संबंध में कई योजनाएं चलाई है, किंतु वर्तमान मोदी सरकार ने इसे जनभागीदारी से आंदोलन बना दिया। 2004-14 के बीच ग्रामीण आबादी के लिए स्वच्छता की पहली आवश्यकता शौचालय की व्याप्ति केवल 39 प्रतिशत थी, जो मोदी सरकार के कामकाज संभालने के बाद 12 करोड़ शौचालयों का निर्माण के बाद 100 प्रतिशत हो गया है। मोदी सरकार ने स्वच्छ जल की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। अभी ग्रामीण क्षेत्रों 12 करोड़ से अधिक घरों में नल से स्वच्छ जल पहुंच रहा है। इसमें केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी ‘जल जीवन मिशन’ का सबसे बड़ा योगदान है। कई विश्वसनीय वैश्विक संस्थाओं ने ‘पीएम-आवास’, ‘पीएम-किसान’, ‘पीएम-गरीब कल्याण’, ‘पीएम-उज्जवला’ आदि जनकल्याणकारी योजनाओं के धरातली क्रियान्वयन के आधार पर भारत में गरीबी घटने का खुलासा किया है।

मोदी सरकार से पहले विकास कार्यों को लेकर देश की स्थिति क्या थी, यह वर्ष 2010 के दिल्ली कॉमनवेल्थ खेल घोटाले और उस कालखंड की भारी अनियमितताओं से स्पष्ट है। इस पृष्ठभूमि में क्या अरबों रुपयों की लागत से बन रहे राष्ट्रीय राजमार्गों, हवाई अड्डों आदि के साथ सेंट्रल विस्टा परियोजना के अंतर्गत बने नए संसद भवन और प्रधानमंत्री संग्रहालय आदि निर्माण में किसी प्रकार की घूसखोरी का आरोप लगा और उनकी गुणवत्ता पर सवाल उठा? मोदी सरकार संभवत: स्वतंत्र भारत की पहली ऐसी सरकार है, जिसका शीर्ष नेतृत्व भ्रष्टाचार रूपी दीमक से मुक्त है।

यह परिवर्तन केवल देश तक सीमित नहीं है। प्राचीन योग साधना और आयुर्वेद से भी अब भारत को दुनिया पहचानती है। वैश्विक कूटनीति में भारत के दृष्टिकोण में कैसा परिवर्तन आया है, यह मोदी सरकार द्वारा देशहित को केंद्र में रखकर रूस-यूक्रेन युद्ध और मानवाधिकारों को लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों के ‘धौंसपन’ से उन्हीं की भाषा में निपटने से स्पष्ट है। राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भी वर्तमान मोदी सरकार अपने पूर्ववर्तियों पर बीस है। यह उसकी सख्त आतंकवाद-विरोधी नीति का कारण है कि पाकिस्तान अपनी हद में है और पिछले 9 वर्षों में कश्मीर को छोड़कर शेष भारत में कोई बड़ा जिहादी हमला नहीं हुआ है। सेना पर पथराव के कुख्यात कश्मीर घाटी में पर्यटकों की भरमार है। सीमा विवाद पर भारत, चीन से आंख में आंख डालकर बात कर रहा है।

उपरोक्त पृष्ठभूमि में भारत का भविष्य उज्जवल है, परंतु मोदी सरकार को उन आंतरिक-बाह्य शक्तियों से सचेत रहने की आवश्यकता है, जो भारत के बढ़ते कद से कदा भी प्रसन्न नहीं है।

लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।
संपर्क:- punjbalbir@gmail.com

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.