अरे महकमे से निकालना ही था तो चुप्प करके करना चईये था ना , वो होता हैं न -बड़े साब को छुट्टी पर भेज दिया गया और उनकी जगह पर अब आपके कमिश्नर होंगे -महेंद्र बाहुबली ( टाइप की घोषणा . लेकिन अब मामला उस प्रदेश का है जहाँ के समुंदर में पिछले कुछ दिनों से पेंगुइन तैर रहा है तो फिर तो देर सवेर ये सब होना ही था . फट्ट निकल जाइये हमारे सिपाहसलार के पद से . ये यूँ चाहे न भी अखरता , मगर जब आप किसी से , सारे कुकर्म -साधुओं की हत्या से लेकर मासूम अभिनेता तक की , उगाही से लेकर चरस गांजे के व्यापार के – और खिलाफ बोलने वाले सबकी छाती पर बुलडोज़र चढ़ा देने जैसे – ऊपर से रोज़ प्रेस वार्ता में अपनी पीठ खुद हई थपथपा कर हीरोगिरी दिखाते रहने के बाद -यूँ ,
बड़े बे आबरू होकर तेरे दफ्तर से हम निकले
कि देेेख अब तो फिर रोज़ चिठ्ठी , बम निकले
परम ________ बनकर महकमे से शंट होंते ही बीर बहादुर दारोगा जी ने फट्ट से फिल्मी अंदाज़ में असली सस्पेंस खोलते हुए कहा कि , जी ये वाजे जो भी बाजा बजा रहा था उस आरकेस्ट्रा के असली प्रोपराइटर तो देसमुख साहब हैं , सारा इवेंट उनके हिसाब से ही मैनेज हो रहा था . और ये तो सिर्फ एक फाइल का टोटल सौ खोका का प्लान है सर जी , बातों बातों में आप खुद अंदाज़ा लगाइए कितना मोटा काट रहा है आपको बातों श्री बनाकर . और यदि कहीं ऐसा है कि ते सारे वसूली भाई मिलकर ही ये सब धंधा पानी चला रहे थे और इसमें भी आपने सबको कह दिया है की – अपना अपना देखो रे ,कोरोना के जैसे ही .
पब्लिक तो ये सोच रही है कि ये तो सिर्फ एक चिट्ठी ही लिखी गई है वो भी तब जब आपस में ही फूट पड़ गई . अब जब कुर्बानी लेने देने का समय आया तो इतनी सर फुटैव्वल . बताओ भला ! वैसे भूतपूर्व कमिश्नर साब को फौरन ही एक वेबसीरीज़ बनाने की घोषणा करनी चाहिये . सारा मसाला , कहानी ,रोमांच , सत्ता , दुरुपयोग , वसूली , विस्फोटक , ,हत्या , पूरी पटकथा तैयार की जा रही थी .
जहां तक मुम्बई पुलिस , उनकी कार्यशैली और उनकी साख पर उठते सवाल की बात है तो वो असल में पहली बार संदेह के घेरे में नहीं आई है . याद करिए 1993 के मुम्बई बम धमाके , इस आतंकी घटना की जांच में आतंकियों , अपराधियों और स्मगलरों तक से सांठ गांठ के साक्ष्य , इस पूरे गठजोड़ की तह तक जाने के लिए गठित की गई , जस्टिस एन एन वोहरा आयोग समिति का गठन , आआयोग की जांच में सामने आए तथ्य और खुलासे इतने विस्फोटक थे की तब से लेकर आज तक “अपराध जगत और राजनेताओं के गठजोड़ पर से पर्दा उठाने वाले इस आयोग की अनुशंसाओं पर अमल करने की बात तो दूर उस रिपोर्ट को पटेल पर रखने या सार्वजनिक करने की हिम्मत भी कोई सरकार नहीं कर सकी .
मुम्बई समेत पूरे महाराष्ट्र में बढ़ते अपराध , ध्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था को देखने , संभालने वाले लोग ही दायित्वविहीन और कर्तव्यच्युत होकर जब इस तरह के अपराध में लिप्त हो जाते हैं तो फिर किसी भी प्रदेश , राज्य और व्यवस्था की ठीक वही स्थिति होती है जो इन दिनों महाराष्ट्र की है .
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