जनसंख्या नियंत्रण हो या पोलियो उन्मूलन या मीजल्स रूबेला का टीका या अब कोरोना वेक्सीन – भारत की मुस्लिम राजनीति ने हमेशा इन सबका विरोध ही किया है

मुस्लिम तुष्टिकरण और ज्यादा से ज्यादा बच्चा पैदा करने की बीमारी जैसी मानसिकता से उत्पन्न असुरक्षा की भावना – “कोई साजिश करके हमे बच्चे पैदा करने से रोका जाएगा , ये सोच हर सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रम की दुश्मन बनकर खड़ी हो जाती है”

कपिल मिश्रा

अखिलेश यादव का कोरोना वेक्सीन के खिलाफ बयान हमें मूर्खता लग सकता हैं। ये लग सकता हैं कि अखिलेश यादव पढ़ लिख कर भी अनपढ़ों जैसी बातें कर रहें हैं । लेकिन अखिलेश यादव की इन मूर्खतापूर्ण बातों के पीछे एक कड़वा सच छिपा हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण का कड़वा सच।

देश में पहली बार किसी स्वास्थ्य कार्यक्रम का विरोध ही रहा हैं ऐसा नहीं हैं। जनसंख्या नियंत्रण और पोलियो उन्मूलन अभियान को ऐसा ही विरोध दशको तक झेलना पड़ा हैं।

जनसंख्या नियंत्रण को इस्लाम के खिलाफ घोषित कर देना और पोलियो ड्रॉप को नपुंसकता पैदा करने वाली दवाई बताना ऐसी ही मानसिकता का प्रतीक है जिसके नेता आज अखिलेश यादव बनना चाहते हैं।

मुस्लिम तुष्टिकरण की घटिया राजनीति आज हमारे जीवन की दुश्मन बनकर सामने खड़ी है और कोरोना से देश को बचाने के मिशन में सबसे बड़ी बाधा बनने जा रही हैं।

कुछ दिन पहले जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 9 महीने से 15 साल तक के आठ करोड़ बच्चों को गंभीर बीमारी मीजल्स रूबेला का टीका लगाने के अभियान की शुरुआत की. लेकिन इस टीकाकरण अभियान को कई मुस्लिम इलाकों में विरोध का सामना करना पड़ रहा है. कुछ वैसा ही विरोध देखने को मिला है जैसा देश में पल्स पोलियो अभियान के खिलाफ हुआ था. तब बहुत से इलाकों में मुस्लिम परिवारों ने अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाने से मना कर दिया था.

उदाहरण के तौर पर अगर मेरठ शहर के कुछ मुस्लिम इलाकों की बात करें तो खबरों के मुताबिक वहां मदरसों में इस टीकाकरण का विरोध हो रहा है. मेरठ के 272 में से कम से कम 70 मदरसों ने स्वास्थ्यकर्मियों को प्रवेश नहीं दिया. बहुत जगह बच्चों की उस दिन छुट्टी कर दी गई.

कोरोना वेक्सीन हलाल है या हराम अब ये बहस की जा रही हैं।

वैक्सीन के हलाल होने पर बहस तब शुरू हो गई, जब इंडोनेशिया के मुस्लिम मौलवियों की एक शीर्ष संस्था इंडोनेशियन उलेमा काउंसिल ने इस वैक्सीन के लिए हलाल सर्टिफ़िकेट जारी करने के लिए कहा.

वहीं, मलेशिया ने भी वैक्सीन के लिए फ़ाइज़र और सिनोवैक कंपनियों से क़रार किया है और वहाँ पर भी मुस्लिम समुदाय में वैक्सीन के हलाल या हराम होने को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं.

ऐसी तुष्टिकरण करण की राजनीति को ही “हराम” घोषित किया जाना चाहिए। जनसंख्या नियंत्रण, पोलियो, मीजल्स के टीकाकारण के खिलाफ खड़ी “टोपी” आज कोरोना के टीके के खिलाफ खड़ी हैं।

एक देश के नाते हमें ये निर्णय लेना होगा कि आखिर कब तक “टीके” के खिलाफ खड़ी “टोपी” को तुष्टिकरण की आड़ में पाला पोसा जाएगा। आखिर कब तक …

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