नक्सली बेशक हिंसा करें मगर जिस रास्ते पर वे चल रहे हैं उसका अंतिम परिणाम निराशाजनक रहता है। आज के इन फैशन कम्युनिस्ट और नक्सली समर्थक गप्पबाजों को याद रखना चाहिए कि नक्सलबाड़ी आंदोलन के जनक कानू सान्याल ने आत्महत्या की थी और उसकी प्रमुख वजह थी कि वो ये मानने लगे थे कि हिंसा के रास्ते से कुछ हासिल नहीं हो सकता। 2010 में दार्जिलिंग के पास नक्सलबाड़ी नामक जगह पर उनका शव पाया गया था, उन्होंने घर में ही फांसी लगाकर खुदकुशी की थी।


कानू सान्याल सशस्त्र आंदोलन के समर्थक थे और उन्होंने चारु मजूमदार के साथ मिलकत 1967 में नक्सली आंदोलन की शुरुआत की थी। 1967 में कानू सान्याल ने दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की थी। अपने जीवन के लगभग 14 साल कानू सान्याल ने जेल में गुजारे थे। 


कानू सान्याल कम्युनिस्ट दल में हिंसा के समर्थन की आवाज़ों में सबसे अव्वल थे और वे सशस्त्र क्रांति को ही एकमात्र रास्ता मानते थे। जीवन के उत्तरार्ध में वे नक्सलबाड़ी गांव में अकेले रह रहे थे और वे सशस्त्र क्रांति के आलोचक बन चुके थे। हिंसा से उपजी घुटन से असहज होकर ही कानू सान्याल ने आत्महत्या की थी।

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