भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की फांसी रुकवाने की बात करने के लिए नेहरू से मिले थे आज़ाद

नेहरु ने अंग्रेजों से की थी चंद्रशेखर आजाद की मुखबिरी

चंद्रशेखर आजाद खुद एचएसआरए का खजाना लेकर नेहरू के पास गए थे, नेहरू ने हड़प लिया था खजाना

क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के भतीजे सुजीत आजाद ने बयान जारी करके कहा था कि जवाहर लाल नेहरू ने ही अंग्रेजों को चंद्रशेखर आजाद के कंपनी बाग में होने की सूचना दी थी। इसके बाद अंग्रेजों ने उनको घेर लिया था। लेकिन फिर भी क्रांतिकारी आजाद अपनी आखिरी गोली तक अंग्रेजों से लडे़ थे।

उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जी के कहने पर भगत सिंह की आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद खुद एचएसआरए का खजाना लेकर नेहरू के पास गए थे। सुजीत ने आरोप लगाया कि न केवल खजाना हड़प लिया, बल्कि आजाद के साथ धोखा भी किया।

भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गांधीजी के पास भेजा जहां से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था.

आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाए तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया. आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फांसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें. नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की.

पंडित नेहरू के साथ बहस के बाद वह इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क की ओर चले गए. अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे, तभी पुलिस ने उन्हें घेर लिया. भारी गोलाबारी के बाद जब आजाद के पास अंतिम कारतूस बचा तो उन्होंने खुद को गोली मार ली.

जानकारों के अनुसार आजाद सजा-ए-मौत पाए तीनों साथियों- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की सजा रुकवाने के लिये उन दिनों जेल में बंद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने पहुचे और विद्यार्थी की सलाह पर आजाद इलाहाबाद आये और जवाहरलाल नेहरू से मिलने आनन्द भवन गये। पंडित नेहरु से आजाद ने यह निवेदन किया कि महत्मा गांधी से बात कर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फांसी को उम्र कैद में बदलने को कहें। घंटो की बातचीत बेनतीजा रही और पंडित नेहरू ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो कहा जाता है की आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस की, जिससे नेहरू ने आजाद को आनंद भवन से चले जाने को कहा। 

जंग-ए-आजादी के समय आजाद का ठीकाना इलाहबाद में भी लम्बे समय तक रहा। उन दिनों आजाद हिन्दू यूनिवर्सिटी (अब हिन्दू हास्टल) कैम्पस में रहा करते थे। 27 फरवरी 1931 को आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) में किसी साथी से तय योजना के तहत मिलने पहुचे थे। उस दरमियान मुखबिर की सुचना पर पुरे पार्क को अंग्रेजो ने घेर लिया। आजाद का खौफ ब्रिटिश हुकुमत को इतना था की उस समय अकेले आजाद से निपटने पूरी पलटन ने घेरा बंदी की थी। उसके बावजूद अंग्रेजो से लोहा लेते हुये कई अंग्रेजी अफसरों को मौत के घाट उतार दिया। घंटो की घेरा बंदी और गोली बारी के बीच अपनी कसम पूरी की और अंग्रेजों के हाथ नहीं पड़े और आखिरी से खुद को अल्फ्रेड पार्क में मार लिया।चन्द्रशेखर आजाद को गोली लगने के बाद भी अंग्रेज सिपाही उनके पास जाने की हिम्मत नही जुटा पा रहे थे। उस समय बिना किसी सुचना के उनका अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद के मौत की खबर लोगों तक पहुची पूरा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पड़ा। जिस पेड़ के निचे आजाद शहीद हुए आज भी उसकी पूजा होती है। अब अल्फ्रेड पार्क आजाद पार्क है। आज भी आजाद की कहनियां इन फिजाओं में तैर रही हैं।

गांधी परिवार ने लूटा शहीदों का खजाना : पंखे बाइंडिंग करके जीवन यापन करने वाले सुजीत आज़ाद ने कहा कि जंग-ए-आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी खजाना लूटा और इलाहाबाद में आनंद भवन में मोती लाल नेहरू को सौंपा था। आज यह बात साबित हो चुकी है तो गांधी परिवार को चंद्रशेखर आजाद द्वारा सौंपे गए खजाने का हिसाब देना चाहिए। इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी शहीदों के परिजनों ने मिलकर ज्ञापन दिया था।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.