राजस्थान में सियासी उठापटक दिन-प्रतिदिन नया-नया रूप ले रहा है. अब इस सियासी उठापटक की बात देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुँच गई है या यूँ कहे तो कुर्सी बचाने की मुहिम अब प्रधानमंत्री मोदी तक पहुँच गई है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर भाजपा पर उनकी सरकार को अस्थिर करने एवं हॉर्स ट्रेडिंग करने का आरोप लगाया. लेकिन अशोक गहलोत ख़ुद यह भूल गए कि उन्होंने राजस्थान में 6 बसपा के विधायकों को अपनी पार्टी में कौनसी प्रक्रिया से शामिल किया था.
जब ख़ुद को सरकार बचाने, चलाने एवं अपने लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी को सुरक्षित करना था तो बसपा के विधायकों को उन्होंने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया. तब ख़ुद लोकतंत्र का निर्वहन करने की बजाय राजस्थान में एक उभरती पार्टी का अंत कर दिया था। तब क्यों राजस्थान विधानसभा के स्पीकर ने उन विधायकों को अयोग्य घोषित करने का नोटिस नहीं दिया था. क्या केवल लोकतंत्र जनता या विपक्ष के लिए ही है! इन सब सवालों के जवाब राजस्थान के कांग्रेस के विधायकों को अगली बार वोट लेने से पहले जनता को देने होंगे। जनता इनकी पार्टी के बँटवारे और होटलों की मौज-मस्ती को भली-भाँति देख भी रही है और परख भी रही है. इंतज़ार अब सही समय का है. क्योंकि यही जनता वोट देने वाली है.
राजस्थान में सरकार अस्थिर होने के पीछे खुद की पार्टी के उपमुख्यमंत्री और विधायकों के चले जाने से कैसे भाजपा ज़िम्मेदार हो सकती है? जिस समय राजस्थान की जनता को अपने जनसेवकों की जरुरत है तब उनके विधायक और मंत्री पाँच सितारा होटल में जनता के पैसे से मौज-मस्ती में लगे हुए है. क्या मुख्यमंत्री राजस्थान की जनता से माफ़ी माँगेंगे, यदि होटलों में अपने विधायकों को रखने के बावजूद भी सरकार नहीं बचा पाते है तो? यह सवाल आज हर उस वोटर के दिमाग में पनप रहा है जो कांग्रेस को वोट देकर इनको सत्ता में लाए थे.
ज्ञात हो कि राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ बागी तेवर अपना लिए थे. जिसके बाद उनको राजस्थान कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद और उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया था. सचिन पायलट ने अपने साथ 25 से 30 विधायकों के होने का दावा किया था. लेकिन अशोक गहलोत भी अपने साथ 102 विधायकों का दावा कर रहे है. सचिन पायलट खेमे का दावा है कि अशोक गहलोत के पास सरकार बचाने के लिए पर्याप्त नंबर नहीं है. यह तो अभी तक किसी को भी नहीं पता कि ऊँट किस करवट बैठेगा, वो तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन कुर्सी की लड़ाई में राजस्थान की जनता अपने आपको ठगा-सा महसूस कर रही और इनकी कुर्सी की लड़ाई में खुद फंस गई है. अशोक गहलोत ख़ेमे के विधायक जयपुर की प्रसिद्ध होटल फेयरमोंट में डेरा डालें हुए है तो सचिन पायलट खेमे के विधायक मानेसर में ITC होटल में डेरा डालें हुए है.
मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई मुख्यमंत्री से शुरू होकर, उपमुख्यमंत्री होते हुए पार्टी आलाकमान से प्रधानमंत्री तक तो पहुँच गई है, अब सिर्फ राष्ट्रपति बचे है. यदि अब बात राष्ट्रपति तक पहुँचती है तो कुर्सी बचने की नहीं, कुर्सी जाने की बात होगी। क्योंकि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद कुर्सी की ताकत सबसे हटकर राष्ट्रपति के पास आ जायेगी।
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