प्रधानमंत्री ओली 275 सदस्यीय सदन में बहुमत साबित करने के लिए विश्वास मत जीतने में असफल रहे।प्रधानमंत्री ओली को सिर्फ 93 वोट मिले जबकि उन्हें कम से कम 136 वोटों की दरकार थी। विश्वास मत के खिलाऱ 124 वोट पड़े। 15 सांसद तटस्थ रहे जबकि 35 सांसद वोटिंग से गायब रहे। नेपाली संविधान आर्टिकल 100(3) के आधार पर उनके हाथ से PM पद अपने आप ही चला गया है।

नेपाल में राजनीति संकट पिछले साल 20 दिसंबर को तब शुरू हुआ जब राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर संसद को भंग कर 30 अप्रैल और 10 मई को नए सिरे से चुनाव कराने का निर्देश दिया। ओली ने यह अनुशंसा सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता को लेकर चल रही खींचतान के बीच की थी। पुष्पकमल दहल ”प्रचंड” नीत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) द्वारा ओली सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद उन्हें निचले सदन में बहुमत साबित करना था, संसद में विश्वासमत पर वोटिंग के दौरान 35 सदस्य सदन से अनुपस्थित रहे, वहीं 15 सांसदों ने किसी भी पक्ष में वोट नहीं डाला. इस दौरान ओली के विरोध में 232 में से 124 वोट पड़े।ओली की अपनी पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी यूएमएल के 28 सांसदों ने व्हिप का उल्लंघन किया और सदन से अनुपस्थित रहे ।

विरोध के बाद भी भारत हमेशा नेपाल के साथ खड़ा रहा।

चीन को अपना परम मित्र कहने वाले ओली ने चीन की वैक्सीन ना लगवा कर भारतीय वैक्सीन स्वयं को और अपने परिवार को लगवाई तथा नेपाली नागरिकों से भी निवेदन किया कि वह भी भारतीय वैक्सीन ही लगवाएं।पिछले साल नेपाल ने भारत के लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी को अपने देश का बताते हुए विवादित नक्शा जारी किया था। इतना ही नहीं पीएम ओली ने तो खुलकर भारत के ऊपर अपनी सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया था। अपने कार्यकाल के दौरान ओली ने भारत को दरकिनार कर चीन के साथ रिश्ते बढ़ानेपर भी जोर दिया। लेकिन भारत ने कोरोना वायरस महमारी में खुले दिल से नेपाल की मदद करते हुए मुफ्त में वैक्सीन की 10 लाख डोज दिया।

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