आतंकवाद की समस्या
आज आतंकवाद की समस्या से विश्व के प्रत्येक देश किसी न किसी रूप से ग्रसित हैं। आतंकवाद की समस्या किसी लाइलाज बीमारी की तरह अपने पैर पसार चुका है। देशों के लिए आतंकवाद की समस्या से निपटना मुश्किल से होता जा रहा है। इसका कारण बाहरी दुश्मनों के साथ-साथ कहीं न कहीं ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो अपने देश से गद्दारी करने का रास्ता अपना लेते हैं। आतंकवादियों का न कोई धर्म होता है न कोई जात। उनका मकसद सिर्फ आतंक फैलाना है। आतंकवाद का एक कारण कुछ देशों में आतंकवादी गतिविधियां संचालित होना भी हो सकता है जिसका प्रयोग वह पड़ोसी देशों में अशांति फैलाने के लिए करते हैं।
कहीं न कहीं भारत भी इस आतकंवाद की इस समस्या से जूझता रहता है। दुनियां जानती है कि इसके पीछे किस देश का हाथ सबसे अधिक रहता है। आतंकवादी कई संगठनों के रूप में कार्य करते हैं। जिनको कुछ देश या ऐसे लोग आर्थिक रूप से भी मदद करते हैं जिनका उद्देश्य भी आतंकवाद का समर्थन करना है।
आजकल युवाओं को इस कार्य के लिए उनको बरगलाकर इस कार्य के लिए तैयार किया जाता है एवं उनको प्रिशिक्षित किया जाता है। आतंक फैलाने वाले संगठन जानते हैं कि युवा ही सबसे आसान तरीका हैं इस कार्य के लिए। इसलिए युवाओं से अपील है कि किसी भी तरह के पलोभनों से बचें।
आप सभी जानते हैं कि बुरे कार्य का नतीजा हमेशा ही बुरा होता है इसलिए ऐसे सभी संगठन आज नहीं तो कल समाप्त होंगे हीं। इसके अलावा उनको पनाह देने वाले भी बच नहीं सकते। सरकारें अपने-अपने देशों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं एवं आतंकवाद की समाप्ति के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।
सर्वविदित है कि बाहरी दुश्मनों से तो लड़ा जा सकता है किंतु घर में रहने वाले भीतरघातियों की पहचान करना बिल्कुल भी आसान नहीं। इसलिए ही आतंकवादी संगठन ऐसे लोगों को टारगेट करते हैं और उनको अपना शिकार बनाते हैं।
आतंकवाद, बेगुनाह, सामाजिक, एवं आर्थिक रूप से देशों का नुकसान करता है। इसकी चपेट में आने वाले देशों के लिए इस समस्या से लड़ना हरगिज भी आसान नहीं हैं। एक आतंकवादी पूरी तरह से आतंक फैलाने के प्रशिक्षित होता है। एवं वह अपने जीवन की परवाह भी नहीं करता इसलिए इनको समझाना कोई हल नहीं हो सकता।
आतकंवाद को पनाह देने वाले देशों का वैश्विक स्तर पर पूर्णतः बहिष्कार करना ही चाहिए। ऐसे मुल्कों को अपनी मित्र सूची से बाहर ही कर देना चाहिए। यदि आतंकवाद से ग्रसित प्रत्येक देश ऐसा करने लगे तो निश्चित ही आतंकवाद को पनाह देने वाले देश अलग-थलग पड़ जाएंगे। ऐसे देशों से व्यापारिक रिश्तों का भी पूर्णयता बहिष्कार कर देना चाहिए। क्या पता व्यापार के बहाने वह देश क्या साजिश रच रहा हो।
अंततः आतंकवाद की समस्या से उसको पनाह देने वाले देश एवं उस से जूझने वाले दोनों ही देश प्रभावित होते हैं। किन्तु अब समय आ गया है कि आतकंवाद की समस्या के विरुद्ध सारे देश एवं देशवासी मिलकर कार्य करें। हम तभी आतंकवाद की समस्या से निजात पा सकते हैं। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता एवं हिंसा किसी भी रूप में हो, अनुचित ही है। वैसे भी हमारा भारत देश ‘वसुधैव कुटुम्बकम‘ कथन पर विश्वास करता है एवं इसी कथन को सार्थक करने का प्रयास करता है। विश्व में शांति हो तो इस से बेहतर कुछ नहीं हो सकता।
आतंकवाद की समस्या पर कुछ शब्द–
जाने किसने बोये होंगें, इन कष्टित आतंकों के बीज।
कहते है दहशतगर्द उसे, जो इस से जाता है रीझ।
दिल होते है पत्थर के, या पत्थर रखते हैं दिल में।
आतंक मचा कर लोगों में, घुस जाते है अपने बिल में।
जीवन वह दर्द में बिताते हैं, जिनपर यह तड़ित गिराते हैं।
दया से होते हीन है यह, पत्थर भी इनसे हारे हैं।
मेरी भारत माता का दिल, आतंक देख कर तड़प रहा।
हिंदुस्तान की माटी में, आतकंवाद क्यों पनप रहा।
सोने की चिड़िया था भारत, हाय किसने नजर लगा दी है।
खुशहाल देश की खुशियों में, दहशत ने आग लगा दी है।
चिंता है भारत माँ की मुझको, जो विकल हृदय से रोती है।
भारत की इस दारुण छवि का, आतंकवाद ही दोषी है।
शपथ दिलाता हूँ मैं तुमको, भारत में रह ना जाये ये।
जैसे मारे हैं यह हमको, वैसे ही मारे जाएं ये।
ऐसे कब तक चुप बैठेंगें, कल तक हम सब लूट जायेंगें।
आतंकवाद मिटेगा तब जब, हम आप सभी उठ जायेंगें।
सचिन ‘निडर’
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