कुछ लोगों ने तो यही सोचा था कि ,चाहे कुछ भी हो जाए श्री राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कभी भी होने नहीं दिया जाएगा | निर्माण तो बहुत दूर की बात है ,जब उनसे अदालत ने पूछा कि एतिहासिक राम सेतु वाद में सरकार अपने अभिलेखों और साक्ष्यों के आधार पर क्या साबित करना चाहती है तो मति मूढ़ों ने अपनी विदेशी कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए यहाँ तक कह दिया कि उनकी जानकारी में प्रभु श्री राम सिर्फ एक काल्पनिक चरित्र थे |

लेकिन उस समय उन्हें ये लेशमात्र भी अंदाजा नहीं था कि , राम नाम की एक शिला लिए  उनकी प्रजा जाने कब से अपने श्री राम के अयोध्या वापसी की बाट जोह रही थी | बेशक पिछले 60 सालों तक देश की मिट्टी से उपजे कुछ खर पतवार सोचों ने सनातन संस्कृति को दरकिनार करने के अपने बहुत सारे प्रयासों में से एक ,हिन्दू धर्म स्थलों और संस्थानों को जानबूझकर दोयम वरीयता वाला रखने के अपने छद्म एजेंडे को येन केन प्रकारेण चलाए रखा | यही शायद शिशुपाल की सौंवी गलती साबित हुई और पूरा सनातन एकाकार होकर हुंकार उठा | 

सिर्फ छ सालों में हिंदुत्व की शक्ति और संगठन ने इस देश में वो वो परिवर्तन होते देखे हैं जो या जिसके लिए मुट्ठी भर धूर्त लोग अक्सर बहुमत को ताना मारा करते थे और मदारी बन कर तमाशा देखा करते थे , एक नहीं पूरे दो दो बार सवा अरब की जनसंख्या वाले जनसैलाब ने स्पष्ट जन संकेत दे दिया | और ये उसी समय तय हो गया था कि देश की संचालक दृष्टि अब राष्ट्र प्रथम ही होगी | और राष्ट्र यानि सनातन भूमि , राम जन्म भूमि | 

आज और अबके बाद से हमेशा के लिए विश्व भर में इस धरती पर कोई नक्षत्र भूमि होगी तो वो श्री राम जन्म भूमि श्री अयोध्या जी नगरी ही होगी | सनातन और हिन्दू के लिए ,राष्ट्र और हिंदुत्व के लिए ,वीरता और मर्यादा के लिए ,नीति और नियम के लिए इस भूमि के पास उनके अपने श्री राम हैं | राम को समझना ही मनुष्य को इंसान के रूप में महसूस कर पाना है और फिर राम होना तो स्वयं भक्त से भगवान् हो जाना है | सनानत धरती हमेशा से अपने लिए अपना नरेंद्र चुनती आई है और ये धर्म का ही प्रताप है कि प्रलय के बीच भी शंख सा बाहर निकलने वाला ये आर्यावर्त विशिष्ट कारणों के लिए चुना गया है | 

होना तो यही था ,हमेशा से ही ,सिर्फ और सिर्फ यही हो सकता था ,और यही हो रहा है ,

होइहें वही जो राम रचि राखा ,को करि तर्क बढ़ावे साखा 

राम यानि सत्य , राम यानि सनातन , राम यानि वेद ,राम यानि अन्तरिक्ष , राम यानि धर्म ,राम मोक्ष ,कण कण में राम | सब कुछ गौण हो जाता है राम के आगे , कौन सा मुहूर्त ,किसके लिए और कौन ये तय करेगा ……और उस पर से ये कहने वाले कि ये भी शुभ नहीं या इससे बेहतर ये होता | भगवान के लिए तय कर रहे हैं आप कि उनका अपने घर में आने के लिए लिए ये वो मुहूर्त शुभ से थोडा सा कम है | 

जो प्रजा खडाऊं सर पर धारे 14 नहीं पूरे 500 वर्षों तक अपने राम की प्रतीक्षा करती रही बहुत ही धैर्य और सहनशीलता से हर साल रावण दहन तो खूब कर पा रही थी मगर प्रभु श्री राम के अयोध्या वापसी की दीपावली का उत्सव उल्लास नहीं महसूस कर पा रही थी | शुभस्य शीघ्रम | तो जो किया जाना है आज और अभी किया जाना है | प्रभु की भक्ति के लिए , सेवा के लिए जब सोचा किया जाए वो हर मुहूर्त शुभ ही होता है ,हमेशा से | 

राम द्रोही हर युग में होते रहे हैं अपने वचनों और कर्मों से भी | मगर सनातन संस्कृति का यही तो दिव्य संस्कार है कि राम गाय में माता को पाते हैं और गंगा में भी | समझने वालों को ये समझ नहीं आ रहा है कि राम पाषाण में भी प्राण के संवाहक रहे हैं |मर्यादा पुरुषोत्तम होना किसी भी युग में सरल नहीं होता वो जिस युग में हुए उनके प्रताप से ही वो राम युग कहलाया | 

सनातन संस्कृति रक्षक प्रभु श्री राम का आगमन युगांतकारी क्षण है , ये हुंकार है हर सनातन आत्मा की ,और एक सन्देश भी पूरी विश्व संस्कृति के लिए कि आज जब दुनिया संहार और बर्बादी के बड़े बड़े विनाशकारी लक्ष्यों को लेकर चल रही है तो ये सनातन संस्कृति का ही प्रभाव है जो भारत भू निवासी अपने ईष्ट के लिए दिव्य प्रार्थना भूमि का निर्माण करने को कृत संकल्प हो रहे हैं | 

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