परंपराया: समर्थनं कुरु, विनाशं वारयितुम् ।।
परंपरा को बढ़ावा दें, पतन को रोकें ।



भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से चली आ रही ‘गुरु-शिष्य परम्परा’ को परम्परा कहते हैं। 

मां हमारी प्रथम गुरु होती है। वह हमारा दुनियाँ से साक्षात्कार करवाती हैं, ओर परम्परा का ज्ञान दादी, दादा परिवार का वह प्रमुख सदस्य कराता हैं ।
परम्परा’ का शाब्दिक अर्थ है***

‘परम्परा’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘बिना व्यवधान के शृंखला रूप में जारी रहना’। परम्परा-प्रणाली में किसी विषय या उपविषय का ज्ञान बिना किसी परिवर्तन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ियों में संचारित होता रहता है।
भारतीय संस्कृति विश्व की अत्यन्त प्राचीन और श्रेष्ठ संस्कृति है । 

कई सारे युग आये और गये लेकिन कोई भी इतना प्रभावशाली नहीं हुआ कि वो हमारी वास्तविक संस्कृति को बदल सके। नाभिरज्जु के द्वारा पुरानी पीढ़ी की संस्कृति नयी पीढ़ी से आज भी जुड़ी हुयी है। हमारी राष्ट्रीय संस्कृति ।

वर्तमान समय में समाज में जितनी बुराइयां कमियां आई हैं, उसका मूल कारण हैं, कि हमनें अपनी परम्परा को छोड़ दिया ! आज समाज में बच्चे से लेकर युवा और ऐसा कोई भी नहीं है, जो आधुनिकता के प्रभाव में लिप्त न हो !

समाज में मानव जीव का हर वो शख्स जो भारतीय परम्परा को नहीं मानता उसका अनुसरण नहीं करता ! उसके परिवार के ज्यादातर लोग गलत कार्यों में फंसे होते हैं ! संस्कार को ही परम्परा कहते हैं ! जो पीढ़ी दर पीढ़ी हर पिता अपने बच्चे को देता हैं, और फिर वो बच्चा अपने बच्चे को देता हैं !

परन्तु आज सब कुछ बदल गया हैं ! आज हमारे मुख पर अज्ञानता का पर्दा पड़ा हैं, और उसी अज्ञानता में पशुत्व की भांति जीवन जीनें में मस्त हैं ! किसी को भविष्य से कोई मतलब नहीं हैं !
जब व्यक्ति स्वयं अच्छा नहीं होगा तो वह अपने बच्चे को क्या सिखाएगा ! वह भी वही करेगा जो उसके पिता ने किया ! वसुधैव कुटुम्भ की अवधारण को जन्म देने वाला हमारा भारत देश आज अनेक तरह की समस्याओं से पीड़ित हैं !

आधुनिक जीवन के मूल्य संकट का प्रमुख कारण यह हैं, कि हमनें अच्छे जीवन या सुखी जीवन के विचार को एक छोटे से दायरे में सीमित कर दिया हैं ! केवल पद, पैसा बस इसी को पाने को लक्ष्य मानना मूल कारण हैं !

जीवन के दो पक्ष हैं ! एक आन्तरिक एक बाह्य परन्तु दोनों का विकाश जरुरी हैं ! भारतीय संस्कृति और सभ्यता ने दुनियां को बहुत कुछ सिखाया ! समय के साथ-साथ सब कुछ बदलता हैं, परन्तु उसमें कुछ बदलाव लाभदायक होते है और कुछ नुकसानदायक होते हैं ! जो जरुरी है यदि आपने उसको छोड़ दिया तो एकदिन आपकी पहचान मिट जायेगी ! और यहाँ तक नहीं इसका दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा ! आप जब भी संस्कृति और सभ्यता की बात करेंगे तो आपको निश्चित ही रूढ़ीवादी और कट्टरवादी माना जाने लगेगा ! ऐसी मानसिकता वाले वे ही लोग है, जो आपकी संस्कृति और सभ्यता को आधुनिकता के नाम पर समाप्त करना चाहते हैं !
एक बात अवश्य जाननी चाहिए कि व्यक्ति कि छाप नैतिक मूल्यों कि आधार शिला हैं !
आप के बच्चे कल के भविष्य है ! बच्चे के लिय उसकी माँ प्रथम गुरु हैं ! परिवार के वातावरण, समाज और विद्यालय को देखकर-सीख कर बच्चे का विकाश होता हैं ! भौतिकता की चकाचौंध और अन्धानुकरण कि दौड़ के कारण अनैतिकता को बढ़ावा मिल रहा हैं ! आप लोगों का ज्ञान तो बढ़ रहा हैं ! लेकिन चरित्र और नैतिकता समाप्त हो रही हैं ! आज की शिक्षा पद्धति का उद्देश्य केवल अपना पेट भरना औरधनकमाना बस यही सबसे बड़ा कारण है ! सब एक – दुसरे को देखकर अंधों की तरह दोड रहे हैं ! आप स्वयं चिंतन करे क्या आपके परिवार का वातावरण सही है ! आप सही कार्य कर रहे हैं ! बच्चे के पैदा होने से पूर्व ये निश्चित कर लेना कि बच्चे को क्या पढ़ाना है, कहाँ पढ़ाना हैं ! परन्तु उसका उद्देश्य केवल यही है कि वहां से पढ़कर निकलेगा तो उसको ज्यादा पैसे मिलेंगे ज्यादा पैकेज मिलेगा ! तो क्या यही जीवन है आपका लक्ष्य बस इतना ही हैं ! बच्चे की रूचि उसका मन उसकी कौसलता से कोई मतलब नहीं हैं ! जब आप केवल पैसे को ध्यान में रखते है तो उसका मानसिक विकाश उसके विचार उसके नैतिक मूल्य उनसे उसका कोई मतलब नहीं होगा ! तो आप ही बताओं वह बड़ा होकर गलत कार्य करता हैं ! शादी के बाद आपको घर से निकाल देता हैं ! तब आप कहते हो कि गलत किया ! उसमें उसका कोई दोष नहीं हैं ! सब आपका किया धरा है, जब आपने उसको बचपन से उसे केवल अपना फायेदा कैसे हो पैसा कैसे कमाया जाये, बस यही सिखाया है ! जब उसको ऐसा गलत ज्ञान मिलेगा तो वह अंत में अपने साथ अपने परिवार और समाज का अहित ही करेगा ! ये भारत है, यहाँ भारतीयता पद्धति से चलोगे तभी आपका विकाश संभव हैं ! देश काल स्थान के अनुसार चलाना आवश्यक हैं ! वही जरुरी भी है ! जिससे आपका विकाश सात्विक विकाश हो वह अपना सकते हैं !परन्तु जिससे आपका और आपके बच्चे का भविष्य खराब हो सकता है, उसे त्यागदेना चाहिए !

मूल बात यह है, कि परम्परा और आधुनिकता दोनों में ही विचारों की और मूल्यों की एक व्यवस्था हैं ! ये दोनों जगह पर भिन्न- भिन्न रूप में हैं !

आप सब चाहे तो अपने जीवन में कुछ बदलाव के द्वारा भारतीय संस्कृति को बचा सकते है !

1-भाषा – का प्रयोग
2-विद्यालय- गुरुकुल शिक्षा पद्धति के अनुसार नियम
3-वेशभूषा –का प्रयोग
4-भोजन – का प्रयोग
5-भारतीय संगीत – का प्रयोग
6-लोक ज्ञान ( आचार-विचार)– प्रयोग
7-भारतीय ग्रन्थ– का प्रयोग

ऐसे बहुत सारे बिंदु है जिनको अगर हमने बदल लिया तो अत्यधिक परिवर्तन आ सकता हैं !
अंत में ये ही निवेदन हैं आओ सब मिलकर अपनी संस्कृति विरासतों को भावी पीढ़ी तक पहुँचाते रहें। ओर परंपरा को बढ़ावा दें, पतन को रोकें ।
चिंतन अवश्य करे —–

धन्यवाद!
धर्मेन्द्र दुबे

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