एक देश एक कानून यानि uniform civil code , अर्थात सामान नागरिक संहिता की तैयारी शुरू हो गई है। और अपने निजि कानूनों और उनके मनमाने उपबंधों की आड़ में बरसों तक कानून के शिकंजे से बच निकलने वाले मुगलों पर तो इसकी गाज़ सबसे पहले गिरनी तय है।
हाल ही में , पाँच याचिकाकर्ताओं द्वारा अधिवक्ता द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल एक जनहित याचिका में ये प्रार्थना की गई है कि इस देश में शरीया कानूनों की आड़ में बहुपत्नी विवाह को वैध मान्यता देना अन्याय और अनुचित है। ये न सिर्फ महिला अधिकारों के विरूद्ध है बल्कि समानता के नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत और भारतीय संविधान के समानता के बुनियादी आधार के भी प्रतिकूल है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में शरीया कानूनों के तहत दिए गए विशेष प्रावधान के कारण मुस्लिम धर्म में , उस व्यक्ति पर उसकी पत्नी के जीवित होने के बाबजूद भी यदि वो किसी अन्य स्त्री के साथ विवाह करता है, तो उस व्यक्ति की पत्नी या और कोई उसके खिलाफ कोई क़ानूनी कार्यवाही नहीं कर सकता है।
साल 1955 में हिंदू मैरिज कानून (एक्ट) के बनने से हिंदू महिलाओं को उनके पति द्वारा दूसरी शादी करने से रोक दिया गया था, लेकिन अन्य मुस्लिम महिलाओं को उनके पति को दूसरी शादी करने से रोकने के लिए ऐसा अधिकार नहीं दिया गया है।
इसके अलावा शरीया कानून यानि मुस्लिम पर्सनल लॉ की धारा 2 ,भी मुस्लिम पुरुषों को एक से अधिक विवाह करने और एक साथ बहुपत्नी रखने को वैध करार दिया गया है।
उक्त जनहित याचिका में इन दोनों कानूनी प्रावधानों को असंवैधानिक और अवैध घोषित करने की माँग की गई है। ज्ञात हो कि अभी हाल ही में कर्नाटका उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश में कहा गया था कि बेशक शरीया कानून एक से अधिक विवाह की वकालत करता है किन्तु अधिकतर ये बात पहली पत्नी के साथ अन्याय जैसा प्रतीत होता है।
बेचारे मुगलों को अब आसमानी 72 हूरों के ख़्वाबों से ही अपना मन बहलाना होगा , एक तरह लव जिहाद के विरुद्ध कठोर हुआ कानून और दूसरी तरफ ये बंद होती शरीया कानून की मनमानी। ये तो दोहरी मार पड़ने जैसी स्थिति हो गई है। लिल्लाह !!!!!!
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