ताश के पतों की तरह ढहने की ओर अग्रसर है राजस्थान कांग्रेस… अगस्त में पायलट संभाल सकते है कमान ।

पिछले महीने चिंतन हुआ कांग्रेस का, जगह चुनी राजस्थान… पर शायद ही किसी ने सोचा हो कि राजस्थान में चिंतन शिविर के नाम पर हुए आयोजन से ही इसके परिणाम देखने मिलना शुरू हो जाएंगे, क्योंकि ये आयोजन शुरू हुआ उसी दिन पंजाब कांग्रेस के कद्दावर नेता सुनील जाखड़ ने कांग्रेस की रीति, नीति और कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस को गुड बाय कह दिया, जिसमे अंबिका सोनी द्वारा की गई कार्यवाही को मुख्य भूमिका माना जा रहा था चिंतन शिविर चल ही रहा था कि अगली बिसात बिछी गुजरात कांग्रेस की… गुजरात कांग्रेस के प्रभारी हार्दिक पटेल ने भी कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस की रीति नीति और कार्यशैली पर सवाल उठाया, पंजाब और गुजरात के बाद कहीं ना कहीं कांग्रेस को और कांग्रेस के आलाकमान को पार्टी के संगठनात्मक कार्यों पर चिंतन करने का समय था और कहीं ना कहीं जिस प्रकार से पिछले 8 साल से 10 वर्ष में कांग्रेस के मुख्य रूप से माने जाने वाले नेता एक-एक करके पार्टी से किनारा करते जा रहे हैं यह प्रतीत हो रहा है कि वास्तविक चिंतन पार्टी के संगठन और संगठन की कार्यशैली पर करना चाहिए । अपना नाम ना बताने की शर्त पर पार्टी के बहुत वरिष्ठ राज्यसभा सांसद ने साफ-साफ कहा यह चिंतन शिविर कम और पार्टी पर अधिकार जताने का एहसास कराने का शिविर ज्यादा था एक बार फिर कांग्रेस के अंदर वर्तमान में जितने भी नेता है उनको एक मंच पर खड़ा करके इस बात का एहसास करवाया गया कि आज भी कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के हाथ में ही है और भविष्य में भी किसी भी प्रकार की कल्पना गैर गांधी नेता के हाथ में कांग्रेस की कमान होना नामुमकिन सा नजर आ रहा है उन्होंने बताया कि हमे लगा कि चिंतन शिविर में आलाकमान को हम हमारे साथी नेताओं की शिकायत करेंगे, उनकी कार्यशैली से रूबरू करवाएंगे पर वहां का नजारा अलग था वहां किसी को बोलने का मौका ही नही दिया गया बल्कि वहां सभी को इकठ्ठा करके अहसास करवाया गया कि कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के हाथ है और यहां गांधी परिवार की ही चलेगी ।

संगठन की कार्यशैली पर सवाल

कांग्रेस के संगठन की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठाते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओ ने अब लगभग कांग्रेस आलाकमान से उम्मीद छोड़ दी है अब उन्हे कांग्रेस के वरिष्ठ नेतृत्व की गहराई का अंदाजा हो गया है जिससे नेताओं में आस उम्मीद खत्म सी हो गई है अब राजस्थान को ही देख लो, राजस्थान युवा कांग्रेस अध्यक्ष और विधायक घोघरा का इस्तीफा हो गया । वहीं विधायक रामलाल मीणा बोले, कांग्रेस का बिखरना डूंगरपुर से शुरू हो गया है। विधायक राजेंद्र विधूड़ी का तीखा बयान लगातार आ रहा है वहीं भरतसिंह पहले से ही मोर्चा खोले हैं। लेकिन किसी को भरोसा न था कि अशोक चाँदना ऐसा करेंगे। यह सब किसी बड़े ऑपरेशन का हिस्सा तो नहीं ? क्योंकि इस तरह के ऑपरेशन के तहत एक बार फिर लग रहा है कि राजस्थान कांग्रेस ताश के पतों की तरह ढह जायेगा । वहीं राजस्थान के कद्दावर नेता सचिन पायलट की चुप्पी भी कुछ नए गुल खिला सकती है हालांकि पिछले प्रयास में सचिन पायलट का वार खाली चला गया था पर इस बार तैयारी जोरों पर है और विरोध के यही सुर जारी रहे थे तो कांग्रेस आलाकमान को कड़क फैसला लेते हुए अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर सचिन पायलट को कमान देनी पड़ सकती है कहीं ना कहीं कांग्रेस का बचाव यही है जिसके बूते कांग्रेस का पतन रुक सकता है नही तो प्रत्येक प्रदेश से इस तरह लोग किनारा करेंगे ।

आप हो रही मजबूत, लोग तलाश रहे विकल्प..

भाजपा से किनारा करने वाले अब कांग्रेस की बजाय आम आदमी पार्टी की ओर भी अपना रुझान कर रहे है विकल्प के अभाव में अब उतरी राजस्थान में आम आदमी पार्टी हावी हो रही है जिसके पिछले मुख्य कारण पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार होना भी है श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, सूरतगढ़ क्षेत्र में आम आदमी पार्टी हावी हो रही है जिसका नुकसान भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा । आप लगातार रेलियां व जनसंपर्क कर लोगो की हर छोटी छोटी पीड़ा को उठाकर मुद्दा बना रही है

राजस्थान में मोर्चों की भरमार

भाजपा – कांग्रेस के अलावा, आप – रालोपा व कई कद्दावर नेता जैसे देवीसिंह भाटी व अन्य नाराज नेता भी कहीं ना कहीं मोर्चों का गठन कर तीसरे मोर्चे के रूप में आम लोगो को विकल्प दे सकते है कुल मिलाकर ये सब मौका बीजेपी, कांग्रेस ने ही दिया है जिनसे अपने संगठन की रीति नीति और आपसी परस्परता की कमी ने खड़ा किया है भाजपा के झगड़े अब आम होने चले है पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का तालमेल वर्तमान राजस्थान भाजपा से कम ही मिलता है जिसका नुकसान भी भारी हो सकता है ।

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