इतिहास की पुस्तकों में पढ़ाया जाता है कि सनातन धर्म में व्याप्त आडंबरों के विरोध में भक्ति आंदोलन शुरू हुआ था जबकि ये बात पूरी तरह गलत है।
भक्ति आंदोलन का उदय हुआ था सोए हुए हिन्दू समाज के पुनर्जागरण हेतु एवं अधर्म शक्तियों के विरुद्ध सनातन धर्म को एकजुट करने हेतु।
लेकिन यदि आप स्वतंत्र भारत के प्रथम 5 शिक्षा मंत्री में से 4 के नाम देखेंगे यानि कि 1947 से 1967 तक, तो आप समझ जाएंगे कि आखिर इतिहास को गलत तरीके से क्यों पेश किया गया है और सबसे बड़ी बात उस समय कांग्रेस दल का शासन जो हमेशा सनातन धर्म के विरुद्ध रहा है।

महान सनातन धर्म की गहराइयों को अभी तक कोई माप नही सका है क्योंकि सनातन धर्म दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक धर्म है जो आज भी लाखों करोड़ों वर्षों पश्चात अपनी गौरवमयी आभा से सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशमान कर रहा है।
आज का लेख उन सभी आलोचकों को जवाब है जो सनातन धर्म के रीति रिवाज़ों को आडम्बर बताकर उसका उपहास उड़ाते है।
सनातन धर्म का हर एक कार्य वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार ही होता है, ये आप आगे बिंदुओं में पढ़ सकते है।

1.हवन या यज्ञ करना :-
हवन साम्रगी में जिन प्राकृतिक तत्वों का यथा कर्पूर, तिल, धूप, चंदन की लकड़ी आदि का मिश्रण होता है वो सब वातावरण को सुगंधित एवं शुद्ध बनाते है, साथ ही वातावरण में मौजूद विषैले तत्वों को समाप्त करने में भी सहायक होते है।

2.शिखा धारण करना :-
मानव मस्तिष्क के पीछे के अंदरूनी भाग को संस्कृत में ‘मेरुशीर्ष’ और अंग्रेजी में “Medulla Oblongata” कहते हैं। इसे मनुष्य के शरीर का सबसे ज्‍यादा संवेदनशील हिस्सा माना जाता है, मेरुदंड की सब शिराएं यहीं पर मस्‍तिष्‍क से जुड़ती हैं और यह हिस्सा इतना संवेदनशील है कि मानव मस्तिष्क के इस भाग का कोई ऑपरेशन नहीं हो सकता। प्राचीन परंपराओं के मुताबिक देह में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवेश यहीं से होता है।
शिखा धारण करने से ये भाग और अधिक संवेदनशील हो जाता है एवं अधिक मात्रा में ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को ग्रहण करता है।

3.ललाट पर तिलक लगाना :-
तिलक लगाने से बीटाएंडोरफिन और सेराटोनिन नामक रसायनों का स्राव संतुलित मात्रा में होने लगता है। इन रसायनों की कमी से उदासीनता और निराशा के भाव पनपने लगते हैं अत: तिलक उदासीनता और निराशा से मुक्ति प्रदान करने में सहायक है, साथ ही तिलक धारण करने से मस्तिष्क को शांति एवं शीतलता प्राप्त होती है।

4.रक्षासूत्र या मोली बांधना :-
मानव शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई से होता है अतः यहाँ पर रक्षासूत्र बांधने से व्यक्ति अनेक रोगों यथा कफ, पित्त, डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, हार्टअटैक, लकवा जैसी बीमारियों से सुरक्षित रहता है, क्योंकि रक्षासूत्र एक प्रकार से एक्यूप्रेशर विधि के रूप में कार्य करता है।

5.सूर्य को जल चढ़ाना :-
जब हम सूर्य को अर्घ्य देते हैं तो पानी की धारा से होकर सूर्य की किरणें हमारे शरीर पर पड़ती हैं। वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार, ये ठीक वैसा ही है जैसा सूर्य की किरणें प्रिज्म से होकर सात रंगों में बंट जाती हैं। इस प्रक्रिया से हमें शारीरिक लाभ होता है। साथ ही हमारी रोध प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
सूर्य की किरणों से हमें विटामिन डी मिलता है, साथ ही सूर्य को अर्घ्य देते समय जब हम ऊपर की ओर देखते हैं तो उसकी किरणें पानी से होकर आंखों में जाती है, इससे आंखों से संबंधित रोग होने की संभावना कम हो जाती है।

6.शंख एवं घण्टी बजाना :-
शंख बजाने से मानव के फेफड़े मजबूत होते है तथा सांस सम्बन्धी बीमारियों के निवारण में भी ये लाभदायक है।
घण्टी की ध्वनि मानव मस्त‍िष्क में विपरीत तरंगों को दूर करती हैं और इससे पूजा के लिए एकाग्रता बनती है। घण्टी की आवाज़ 7 सैकंड तक हमारे दिमाग में ईको करती है और इससे हमारे शरीर के सात उपचारात्मक केंद्र खुल जाते हैं, जिससे हमारे दिमाग से नकारात्मक सोच भाग जाती है।
साथ ही शंख एवं घण्टी की ध्वनि से वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल में काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी कीटाणु व विषाणु आदि नष्ट हो जाते हैं, जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।

7.व्रत या उपवास करना :-
आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

ये सब तो मात्र वो उदाहरण है जो आप स्पष्ट तौर पर अपने आसपास देखते है, बाकी सनातन धर्म का हर एक रीति रिवाज या कार्य धार्मिक होने के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी रखता है चाहे वो तुलसी पूजन हो, पीपल पूजन हो, कर्णछेदन संस्कर हो, अंतिम संस्कार हो, चरण स्पर्श हो, नमस्ते मुद्रा हो, सूर्य नमस्कार विधि हो, जमीन पर बैठकर भोजन करना हो और अन्य सभी कार्य, इन सबके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी है।
विश्व के अन्य किसी भी धर्म में इतनी वैज्ञानिकता नही मिलती और ना ही इतने रीति रिवाज, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का अवसर प्रदान करते है।
हमें गर्व है हमारे महान सनातन धर्म पर और हमारे पूर्वजों पर जिन्होंने इतने संघर्षों के बावजूद इस धर्म की महानता को बनाए रखा।
जय श्री सनातन धर्म
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