महाराष्ट्र सरकार आजकल जो कुछ भी करती है उसमें कुछ न कुछ नॉटीपन दिखा ही देती है। कोरोना महामारी समेत तमाम मुद्दों और समस्याओं पर खुद कुछ करने की बजाय दूसरों पर आरोप लगा कर वो दिल्ली की सरकार और उनके मसीहा को कड़ी टक्कर देने की होड़ में हमेशा ही लगी रहती है। कोई मुंबई आने की बात कहे तो उसके घर पर बुलडोज़र चलाने को तैयार ,कोई अपने घर आने के लिए सबको आमंत्रित करने आए तो हमारा सब कुछ छीन ले रहे हैं इसका रुदाली गान। अपने घर में ही अपने बड़बोले जी को खूब सारा इंटरभू देकर वहीँ से सबका सामना करके इन दिनों इतिश्री कर लेते हैं।

लेकिन बार बार इनके और इनकी सरकार के “ज़रा हट के ” वाले कारनामे समाचार जगत में आ जाते हैं और इन्हें फिर से रोने धोने का मौक़ा दे देते हैं। नए खुलासे में , महाराष्ट्र सरकार द्वारा , 100 दलित बच्चों को अधिकतम 20 लाख तक स्कॉलरशिप देकर पढ़ने के लिए भेजने की योजना के लाभार्थियों में IAS अधिकारियों के बच्चों को जगह दी जा रही है , ये होता है असली विकास।

वर्ष 2014 में इस योजना के प्रावधानों में से सबसे जरुरी न्यूनतम आय वाले दलितों के बच्चों वाली बंदिश खत्म कर दी गई। इसके बाद तो क्या राजनेता ,क्या अधिकारी सबने जिसको जहां गुंजाइश दिखी , दलितों के साथ पूरा न्याय कर डाला।

समाचार के अनुसार वर्ष 2020 के लिए चयनित छात्रों में से कम से कम दो छात्र , जिनका विदेश में पढ़ने लिखने रहने खाने पीने का सारा खर्च महाराष्ट्र सरकार की इस योजना के तहत सरकार खुद वहन करेगी , प्रदेश में नियुक्त दो वरिष्ठ IAS अधिकारियों के बच्चे हैं।

इनमे पहला नाम है शोलापुर के कलेक्टर मिलिंद सम्भारकर जिनकी वार्षिक आय लगभग 24 लाख रुपये है की गरीब सुपुत्री स्टैनफोर्ड विश्विद्यालय से अपने स्नातकोत्तर को पूरा करने जा रही हैं और दूसरे छात्र आयुष तगाड़े सिडनी आस्ट्रेलिया में एक विश्व विद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा ग्रहण करने जा रहे हैं उनके पिता श्याम तगाड़े ,सरकार के सामाजिक अधिकारिता विभाग में प्रधान सचिव के रूप में नियुक्त हैं और बेहद गरीब होने के कारण उनकी वार्षिक आय सिर्फ 38 लाख रुपए है।

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