एससी एसटी एक्ट व महिला उत्पीड़न के झूठे मुकदमों का है बोलबाला – राजस्थान पुलिस

11 जनवरी 2021 को जयपुर में राजस्थान के डीजीपी मोहनलाल राठौड़ द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई जिसमें साल 2020 के अपराधों पर बात करते हुए मोहनलाल राठौड़ ने आंकड़ों के साथ कुछ चीजें पेश की और वह इस प्रकार थी कि 2020 में राजस्थान में करीबन 7017 मुकदमें एससी एसटी एक्ट सिटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड हुए जांच में पाया गया कि करीबन करीबन 42% के आसपास 3000 से ज्यादा मुकदमे फर्जी तरीके से मांगी है वह सामाजिक दुर्भावना को मध्य नजर रखते हुए बदले की भावना के मद्देनजर रखते हुए किसी व्यक्ति विशेष को बदनाम करने के मध्य नजर रखते हुए फर्जी दर्ज कराए गए इसी के साथ महिला उत्पीड़न में भी फर्जी मुकदमों का दायरा 40% से ज्यादा का रहा कहीं ना कहीं महिला उत्पीड़न हो यह sc-st एट्रोसिटी एक्ट हो यह इस बात को दर्शाता है कि किस प्रकार से जाति के नाम पर अधिकारों के नाम पर लोग कानून का दुरुपयोग करते हैं जब 21 मार्च 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने इन सभी रिपोर्ट से तंग आकर एससी एसटी एक्ट पर संशोधन तथा बिना जांच गिरफ्तारी ना करने की बात कही उसके बाद राजनीति के चाटुकार नेताओं ने केंद्र सरकार तक इस बात की शिकायत करते हुए 2 अप्रैल 2018 को आप सब साक्षी हैं कि किस प्रकार पूरे भारत को आग के हवाले कर दिया गया हिंदुस्तान के संसाधनों को तोड़ा गया थोड़ा गया और करीबन करीबन हजारों करोड रुपए का नुकसान आम जनता के टैक्स से बनी हुई संसाधनों पर किया गया उस समय भी उन तमाम अपराधियों पर जब कानूनी कार्यवाही करने हेतु मुकदमे दर्ज हुए तो राजस्थान की वर्तमान सरकार में अपनी सरकार बनते ही सारे के सारे ऐसे मुकदमों को वापस ले लिया गया इस प्रकार से किसी कानून को राजनीतिक रंग देना इस बात की ओर संकेत करता है कि गुनहगार और अपराधी को सह भी देने वाली यह सरकारें ही मुख्य रूप से देश के संसाधनों को नुकसान पहुंचाने में पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं सुप्रीम कोर्ट को इस बात का भी संज्ञान लेना चाहिए कि ऐसे कौन लोग हैं जो ऐसी अव्यवस्थाओं के पक्षधर है ऐसे लोगों पर भी अंकुश लगाने का प्रयास करना चाहिए

2018 के दौर में केंद्र सरकार के करीबन 16 मंत्री जिसमें मुख्य रुप से अर्जुन राम मेघवाल रामविलास पासवान थावरचंद गहलोत रामदास अठावले तथा अन्य sc-st समुदाय से आने वाले नेताओं और मंत्रियों का एक दल प्रधानमंत्री जी से 28 मार्च 2018 को मिला तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस सुझाव को तुरंत प्रभाव से वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया और जब दबाव बनता नहीं दिखा तो 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद के नाम पर पूरे हिंदुस्तान के संसाधनों को नुकसान पहुंचाने का कार्य किया उसके बाद जो मुकदमे तोड़ने वाले अपराधियों पर दर्ज हुए थे उनको भी वापस लेने की पैरवी इन मंत्रियों द्वारा लगातार की गई वर्तमान की राजस्थान डीजीपी की इस रिपोर्ट से यह भाग बिल्कुल तय हो जाती है कि कहीं ना कहीं एससी एसटी एक्ट के नाम पर इस कानून का भरपूर दुरुपयोग होता आ रहा है क्योंकि मैं बता दूं कि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार के मुकदमे दर्ज होने पर पीड़ित को मुआवजे के नाम पर सहायता राशि दी जाती है और उस सहायता राशि को प्राप्त करने के साथ-साथ किसी से भी किसी भी प्रकार की बदले की भावनाओं को पूरी करने के चक्कर में कोई भी व्यक्ति किसी पर भी एससी एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज करवा कर प्रताड़ित कर सकता है और यह जो 40% झूठे मामले हैं यह कहीं ना कहीं उसी संदर्भ में है

अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम
अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989, जिसे एससी / एसटी अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है, को भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ हाशिए के समुदायों की रक्षा के लिए लागू किया गया था।

कानून में विभिन्न अपराधों या व्यवहारों से संबंधित अपराधों को सूचीबद्ध किया गया है जो आपराधिक अपराधों को दर्शाता है और अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के आत्म-सम्मान और सम्मान को तोड़ता है, जिसमें आर्थिक, लोकतांत्रिक, और सामाजिक अधिकारों, भेदभाव, शोषण और दुर्व्यवहार से इनकार शामिल है। कानूनी प्रक्रिया।

अधिनियम की धारा 18 के तहत, अपराधियों को अग्रिम जमानत का प्रावधान उपलब्ध नहीं है। कोई भी लोक सेवक, जो जानबूझकर इस अधिनियम के तहत अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है, 6 महीने तक कारावास के साथ सजा के लिए उत्तरदायी है। एससी और एसटी के खिलाफ अपराधों के रूप में “अत्याचार” के अधिक उदाहरणों को जोड़कर अधिनियम को अधिक कठोर बनाने के लिए 2015 में मूल अधिनियम में एक संशोधन जोड़ा गया था।

विवादास्पद कानून ने एससी / एसटी समुदायों द्वारा अन्य समुदायों के सदस्यों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करके बड़े पैमाने पर दुरुपयोग के मामलों से संबंधित देश में एक बड़ी बहस को हवा दी है। इसे संज्ञान में लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2018 के फैसले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के कड़े प्रावधानों को कम कर दिया था।

हालांकि, केंद्र सरकार ने SC / ST अत्याचार अधिनियम से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश को रद्द करने के लिए एक और संशोधन अधिनियम लाया। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।

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