लाल बहादुर शास्त्री का व्यक्तित्व भारत में और दूसरा नहीं हुआ है उनकी सादगी के अगर 100 किस्से भी सुनाए जाएं तो भी यह कम ही होंगे क्योंकि प्रतिदिन के हिसाब से शास्त्री जी रोज कोई न कोई ऐसा महान कार्य किया करते थे जो शास्त्री जी के छोटे कद को वैश्विक बना ऊंचे कदों में शुमार कर दिया करता था।
शास्त्री जी खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने वाले लोगों में से थे, एक बार जब शास्त्री जी रेल मंत्री थे और बम्बई जा रहे थे। उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्री जी बोले- डिब्बे में काफ़ी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है। उनके पीए कैलाश बाबू ने कहा- जी, इसमें कूलर लग गया है। शास्त्री जी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा- कूलर लग गया है?… बिना मुझे बताए? आप लोग कोई काम करने से पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं? क्या और सारे लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गरमी नहीं लगती होगी?
शास्त्रीजी ने कहा- कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, लेकिन उतना तो नहीं हो सकता, पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा- बड़ा गलत काम हुआ है। आगे गाड़ी जहाँ भी रुके, पहले कूलर निकलवा दिया जाए।
आखिरकार मथुरा स्टेशन पर रेल गाड़ी रुकी और वहां से कूलर हटवाया गया तभी शास्त्री जी ने आगे चलने की अनुमति दी ।आज भी उस डिब्बे में जहां कूलर लगा हुआ था वहां सिर्फ लकड़ी का तख्ता ही मौजूद है।
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