१९४७ के बाद के भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवन की दो बड़ी दुविधाएँ रहीं :

१. पहली कि वो २ October को पैदा हुए जो गांधी जी का भी जन्मदिन है ,

२. दूसरा , वो नेहरू की “तथाकथित” विरासत को इंदिरा गांधी तक हस्तांतरित होने की राह में आ गए ।

नतीजा ये कि आपको महात्मा गांधी की प्रतिमा पर घड़ियाली आँसू बहाते लोग तो दिख जाएँगे पर शास्त्री जी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाने वाले बड़ी मुश्किल से दिखेंगे । २०१३ के १५ अगस्त के सम्बोधन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने तो नेहरू के बाद इंदिरा और उसके बाद राजीव को ही प्रधानमंत्री गिना दिया था । ख़ैर ।

अब बात करते हैं उस बयान की जिसे इंदिरा गांधी ने लेखक वेद मेहा को उनकी किताब “पोर्ट्रेट ओफ़ इंडिया” के लिए १९७० में दिया था । इसका उल्लेख अनुज धर ने अपनी किताब “Your Prime Minister is Dead” में किया है ।

अपने बयान में इंदिरा गांधी कहती हैं : “शास्त्री जी एक रूढ़िवादी हिंदू थे । आप अंधविश्वासों के आधार पर देश नहीं चला सकते , देश चलाने के लिए आपको एक आधुनिक और वैज्ञानिक सोच रखी होगी” ।

एक हिंदू रूढ़िवादी ही होगा , उसकी सोच अवैज्ञानिक ही होगी और वो आधुनिक नहीं ही होगा : ये सब अगर आपको लगता है कि केवल आज के तथाकथित लिबरल ही सोचते हैं , तो आप ग़लत हैं । ये बातें तो इंदिरा जी से ही इनके पास आयी हैं और कई तो इंदिरा गांधी के बड़े फ़ॉलोअर भी हैं । किताबें लिख चुके हैं उनपर।

अब बयान की बात करते हैं । शास्त्री जी हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के ध्वज वाहक रहे हैं । खाद्यान और दूध के मामले में ना केवल हम आत्मनिर्भर हैं बल्कि निर्यात भी कर रहे हैं , तो इसकी वजह शास्त्री जी की “जय किसान” वाली सोच है। सीमायें सुरक्षित हैं तो उसके पीछे भी “जय जवान” है। इसके इतर इंदिरा गाँधी के निर्णयों में एक तांत्रिक के हस्तक्षेप करने की बातें सामने आती रही हैं।

अब आप खुद ही निर्णय कर लीजिये कौन रूढ़िवादी और अवैज्ञानिक था इनमें से ? इतनी दिक्कत क्यों है कांग्रेस को शास्त्री जी से ?

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