डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को चढ़ाया गया था तथाकथित धर्मनिरेपक्षता की बलि, इन्हे मिली थी देशप्रेम की सज़ा और इनकी मृत्यु तक को बना दिया गया ऐसा रहस्य जिसे आज तक खोलने की किसी की भी हिम्मत नहीं हो पायी है। जी हाँ चर्चा चल रही है नकली धर्मनिरपेक्षता की आंधी और हिन्दू विरोध की सुनामी में अपने आप को स्वाहा कर के कश्मीर को बचा लेने वाले अमर बलिदानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की…. आज भी जब जब और जहाँ जहाँ ये नारे गूँजते हैं की जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है तो उस महापुरुष की याद आ जाती है जिसे पहले जेल और बाद में मृत्यु इसलिए दे डाली गयी क्योकि उन्होंने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए वहां कूच कर देने का एलान कर दिया।
भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6 जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के पश्चात श्री मुखर्जी 1923 में सेनेट के सदस्य बने। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात, 1924 में उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया। 1926 में उन्होंने इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया जहाँ लिंकन्स इन से उन्होंने 1927 में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। 33 वर्ष की आयु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए और विश्व का सबसे युवा कुलपति होने का सम्मान प्राप्त किया। श्री मुखर्जी 1938 तक इस पद को शुशोभित करते रहे।
अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक रचनात्मक सुधार किये तथा इस दौरान ‘कोर्ट एंड काउंसिल ऑफ़ इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस बैंगलोर’ तथा इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड के सक्रिय सदस्य भी रहे।
श्यामाप्रसाद अपनी माता पिता को प्रतिदिन नियमित पूजा-पाठ करते देखते तो वे भी धार्मिक संस्कारों को ग्रहण करने लगे। वे पिताजी के साथ बैठकर उनकी बातें सुनते। माँ से धार्मिक एवं ऐतिहासिक कथाएँ सुनते-सुनते उन्हें अपने देश तथा संस्कृति की जानकारी होने लगी। वे माता-पिता की तरह प्रतिदिन माँ काली की मूर्ति के समक्ष बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते। परिवार में धार्मिक उत्सव व त्यौहार मनाया जाता तो उसमें पूरी रुचि के साथ भाग लेते। गंगा तट पर मंदिरों में होने वाले सत्संग समारोहों में वे भी भाग लेने जाते। आशुतोष मुखर्जी चाहते थे कि श्यामाप्रसाद को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी जाए। उन दिनों कलकत्ता में अंग्रेजी माध्यम के अनेक पब्लिक स्कूल थे।
(शेष अगले अंक में..)
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