और फिर आज एक युग का अंत हुआ….बाबासाहेब पुरंदरे नहीं रहे….
बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे, पद्मविभूषण, महाराष्ट्र भूषण जैसे सम्मान प्राप्त, शिवशाहीर जैसे संबोधन से जाने जाने वाले आदरणीय बाबासाहब पुरंदरे का आज सुबह निधन हुआ…100 वर्षों से अधिक समय तक लेखक- इतिहासकार- कलाकार- नाट्यकर्मी- संघ स्वयंसेवक के रूप में जीवन को पूर्णता से जीते हुए वंदनीय आज इस धराधाम से प्रस्थान कर गए !
बचपन से ही छत्रपति श्री शिवाजी महाराज के अनन्य भक्त रहे पुरंदरे जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज पर दर्जनों लेख और किताबें लिखीं…उनका सबसे अधिक लोकप्रिय एवं कालजयी नाटक रहा “जाणता राजा”….
इस नाटक की विराट भूमि को संक्षेप में समझना चाहें तो केवल इतना जान लीजिए कि यह “नाटक” जब अपनी पूरी क्षमता के साथ खेला जाता है, तब इसमें कम से कम 200 कलाकार… सचमुच के हाथी- घोड़े- तलवारें- भाले- मुकुट- कॉस्टयूम इत्यादि का उपयोग होता है… इस “नाटक” में उपयोग होने वाले समूचे सामान को एक शहर से दूसरे शहर ले जाने के लिए लगभग पचास ट्रक लगते हैं… इस कड़ी मेहनत और प्रतिभा के बाद जब नाटक दर्शकों के सामने उतरता है, तो वह दर्शक स्वयं इतिहास का एक हिस्सा बन जाता है और शिव छत्रपति के जीवन, उनकी वीरता एवं गुणों को देखकर आँखों से पानी बरसने लगता है… इस विराट नाटक को देखकर आश्चर्य ही होता है…
जाणता राजा महानाट्य और शिव साम्राज्य के इतिहास को जन जन तक पहुंचाने लिखी क़िताबों, लेखों के रूप में आप सदैव स्मृतियों में जीवित रहेंगे…पूज्य चरणों में नमन
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