अभी दो दिन पहले ही देश के सबसे काले मुँह (काली स्क्रीन करने वाले )चैनल की एक नामचीन खबरची जी ने अपने साथ हुए तथाकथित “कोलावेरी कोलावेरी डी ” होने जाने की दुःख दायी खबर देकर खुद को मुतमईन और बाकी सबको भरपूर खुश होने का मौक़ा दे दिया।
असल में “चमन कैसे कैसे पुरस्कार ” (जिसे आप रेमन मैगसेसे पुरस्कार ) के रूप में भी जानते हैं प्राप्त किए इसी खबरंडी टीवी के मनहूस मगर मसहूर पत्तलकार खबीस कुमार के जैसे ही उनकी पत्रकारा बहिन जी ने बहुत ही बड़ा राजदान , ओह !मेरा मतलब राजफाश कर दिया। इन फीमेल जी को किसी ने ईमेल करके बकलोल बना दिया।
पूरे 21 बरस तक घनघोर रपोटर बनने के बाद उनको हप्प से एक दिन अचानक अमेरिका की एक बहुत बड्डे विश्विद्यालय में प्रफेसरी करने का ऑफर आ गया , बस चट्ट से उन्होंने इसकी खबर अपने ट्विटर पर चैंप कर रेलमपेल मचा दी। बोले तो बहुत जोरदार मान सम्मान ,बधाई , शुभकामनाएं बटोर शटोर लिया। और अभी नई वाली नौकरी ठीक से जमी भी नहीं थी कि पता चला कि ये तो कोई सोना बता कर ढेला थमा गया।
भौत बुरा लगा उनको , लगना भी चईये था। क्या फायदा इत्ते मशहूर होने का , क्या फायदा इतनी साल की पत्रकारिता का , जब अमेरिका की यूनिवर्सिटी ने इत्ते काबिल होने के बावजूद भी , ट्रम्प को छोड़ बिडेनवा के पाल्टी में अपना सपोर्ट जताने के बावजूद भी ,चमन कैसे कैसे पुरस्कार विजेता पत्रकार के चैनल में होने के बावजूद भी उनको दो टूक जवाब देकर कह दिया : Sorry Babu
बड़े भारी फेमस होने का एक नुकसान ये भी है कि , जैसी ही अपने ढाई घर की घोड़े वाली चाल से गधे की तरह गिर कर औंधे मुँह पड़ो कि मैदान छोड़ कर पतली गली से निकल जाना पड़ता है , या कहिए की धोबी के कुत्ते की तरह न घर न घाट का रहने जैसी हालत हो जाती है।
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